कानून व्यवस्था की धार्मिक व्याख्या गलत

Aam Aadmi Party
Aam Aadmi Party: आप ने केजरीवाल के परिजनों को नजरबंद करने का लगाया आरोप

दुखदायी घटनाओं पर राजनीति करने की बजाय पीड़ितों का दु:ख बांटना इन्सानियत व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रयास करना ही कानून का राज है। राजनीतिक हितों की होड़ में राजनीति से इन्सानियत खत्म नहीं होनी चाहिए। इन्सानियत को सलामत रखने से ही राजनीति का अस्तित्व है। बयानबाजी से अखबारों की सुर्खियां तो हासिल हो सकती हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक दिल्ली वासी की हत्या को लेकर बहुत ही अजीबो गरीब बयान दिया है। उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री का इस्तीफा मांगते तर्क दिया है भाजपा के राज में हिन्दू भी सुरक्षित नहीं है। नि:संदेह एक भी व्यक्ति की हत्या होना पुलिस प्रबंध की बड़ी खामी है लेकिन मृतक के धर्म का हवाला देकर बयानबाजी करना अपने आप में एक नई गलती करना है। कानून के सामने पीड़ित का कोई धर्म नहीं होता वह सिर्फ और सिर्फ देश का नागरिक होता है। कानून लागू करने वाले मंत्री या अधिकारी की जिम्मेवारी किसी धर्म विशेष के लोगों की सुरक्षा यकीनी बनाना नहीं होता। बल्कि हर नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेवारी होती है। इसमें धर्म-जात का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

मृृतक के धर्म का हवाला अगर कोई अनाड़ी या सीनीयर नेता दे तो बात समझ में आती है लेकिन मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर बैठा नेता जब ऐसे बयान जारी करता है तो पद की गरिमा पर सवाल उठना स्वभाविक है। दरअसल यह राजनीति ही है, जिसने जनता को हिन्दू, मुस्लमान, सिख व ईसाई बनाकर पेश किया है व अलग-अलग धर्मों दरमियान दीवारें खड़ी करने का पाप भी राजनेताओं के सिर ही जाता है। इस संकीर्ण सोच वाली राजनीति के कारण ही देश को दंगों का दंश झेलना पड़ा है।

खासकर दिल्ली तो कई बार लहु-लुहान हो चुकी है। बीते समय में घटित हुई घटनाओं के मद्देनजर राजनेताओं को संयम व जिम्मेवारी के साथ बयानबाजी करने की आवश्यकता है। पीड़ितों के आंसू पोंछते वक्त उनका धर्म-जात न देखा जाए। राजनीति इतनी नीचे न जाए कि धर्म-जात की व्याख्या ही राजनीति बन जाए। दुखदायी घटनाओं पर राजनीति करने की बजाय पीड़ितों का दु:ख बांटना इन्सानियत व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रयास करना ही कानून का राज है। राजनीतिक हितों की होड़ में राजनीति से इन्सानियत खत्म नहीं होनी चाहिए। इन्सानियत को सलामत रखने से ही राजनीति का अस्तित्व है। बयानबाजी से अखबारों की सुर्खियां तो हासिल हो सकती हैं लेकिन राजनीति सड़ जाती है। शवों में से धार्मिक मुद्दे नहीं ढूंढें जाने चाहिए।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।