रोहिंग्याओ की उपस्थिति एक बड़ा संकट

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लेख-सतीश भारद्वाज

हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार रोहिंग्याओ ने रखाइन प्रान्त, बर्मा में 99 से ज्यादा हिन्दुओ का कत्लेआम किया था’ ये रिपोर्ट एक छोटा सा नमूना भर है इस बात का कि रोहिंग्या शरणार्थियों के रूप में कितना बड़ा खतरा भारत में पल रहा हैे इस खतरे को समझने के लिए गहराई से हमें रोहिंग्या संकट और उससे जुड़े घटनाक्रम को देखना चाहिए। हिन्दू रखाइन क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैें बौद्ध बहुल म्यांमार का ये प्रान्त रोहिंग्या मुस्लिम बहुल है,

ये कोई एक घटनाक्रम नहीं है जिसमें रोहिंग्याओ ने हिन्दुओ का कत्लेआम किया होे 2016 से अब तक ये श्रृंखलाबद्ध तरीके से किये गए कत्लेआम हैें ये सारे कत्लेआम ‘अराकान रोहिंग्या सैल्वेसन आर्मी’ के द्वारा किये गए हैं इस संगठन का पुराना नाम ‘हराका अल यकीन’ था जो वर्तमान में जेहादी आतंक की राह पर है इसकी स्थापना ‘अताउल्ला अबू अमर जुनूनी’ ने की थी जो रोहिंग्या मुस्लिम है परन्तु उसका जन्म कराची पकिस्तान में हुआ था इस संगठन को पकिस्तान ही पोषित कर रहा है पकिस्तान और रोहिंग्याओं का सम्बन्ध बहुत पुराना है।

रोहिंग्याओ के बारे में कहा जाता है की 11 वीं या 12 वीं सदी में अरब से मुस्लिम सौदागर स्थानीय महिलाओं से शादी करके यहां बस गए ये म्यांमार में इस्लाम की पहली दस्तक थी बाद में ब्रिटिश कोलोनियल राज में भारत के अन्य हिस्सों से मुस्लिम यहां आकार बसने लगे द्वितीय विश्व युद्ध में बौद्ध बहुल म्यांमार में जापानी प्रभाव और प्रवेश को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बहुत से हथियार बंद मुस्लिमों को रखाइन प्रान्त में लाकर बसाया।

जिससे स्थानीय बौद्धों के लिए बड़ा संकट पैदा होने लगा 1942 में रोहिंग्या मुस्लिमो के इन हथियार बंद गुटों ने बड़े स्तर पर म्यांमार के स्थानीय बौद्धों और हिन्दुओ का कत्लेआम किया इस संघर्ष में कितने लोग हताहत हुए इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है लेकिन एक लाख से ज्यादा हत्याओं का अनुमान दोनों तरफ से है। रखाइन में जिन्हें हम रोहिंग्या कहते हैं वो असल में विभिन्न स्थानों से आये मुस्लिमों का समाज है।

1942 के बाद से विभिन्न क्षेत्रो से मुस्लिम इस क्षेत्र में बस रहे थे। 1942 के संघर्ष के बाद बांग्लादेश से मुस्लिमो का इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर पलायन हुआ। इसके पीछे रोहिंग्या मुस्लिमो का उद्देश्य वहां स्वयं को बहुसंख्यक बनाना था। 1947 में म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमो ने रखाइन प्रान्त को पूर्वी पकिस्तान से जोड़ने के लिए भी सशत्र संघर्ष किया था जो 1960 तक चला। इसके बाद 1980 में ‘रोहिंग्या सॉलिडेरिटी समूह’ बना जो एक मुस्लिम देश की मांग को लेकर राजनैतिक रूप से सक्रिय रहा उस ही समय ‘अराकान रोहिंग्या ओर्गनाइजेसन’ नाम का जेहादी गुट भी म्यांमार में आम जन के हत्याकांड और सेना पर सीधे हमलों में सक्रिय था।

बाद में ‘रोहिंग्या सॉलिडेरिटी समूह’ और ‘अराकान रोहिंग्या ओर्गनाइजेसन’ ने मिलकर ‘रोहिंग्या नेशनल आर्मी’ नाम का आतंकी समूह बनाया जिसने बड़े स्तर पर म्यांमार की सेना पर सीधे हमले किए। रखाइन में मुस्लिमों की अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए 1978 में म्यांमार सरकार ने अभियान प्रारंभ किया और बहुत से बंग्लादेशी घुसपैठियों को बांग्लादेश वापिस भेज दिया।

जिन्हें स्वीकार करने से बंगला देश मना करता रहा है और उन्हें अपना निवासी मानने से भी इनकार करता रहा है। ये कुछ ऐसा ही संकट हैं जैसा भारत में बंगलादेशी अवैध घुसपैठियों का संकट हैं। भारत में भी इस अवैध घुसपैठ को स्थानीय मुस्लिमों का समर्थन है तो म्यांमार में भी रखाइन के मुस्लिमों ने अवैध घुसपैठ को समर्थन किया और बढाया। आज रोहिंग्या रखाइन को एक मुस्लिम देश के रूप में अलग मान्यता के लिए जेहादी आतंक के मार्ग पर हैं।

2008 के बाद से म्यांमार के मूल निवासी बौद्धों के मुखर विरोध के बाद से बड़ी संख्यां में रोहिंग्या भारत और बांग्लादेश में आये हैं भारत में कुल रोहिंग्यों की संख्या का कोई सही आंकड़ा नहीं है। पश्चिम बंगाल, कश्मीर, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश के विभिन्न मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इनकी उपस्तिथि है। भारत सरकार के आंकड़े के अनुसार भारत में रोहिंग्याओ की संख्या 40000 है परन्तु ये इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।

रोहिंगया का पुराना इतिहास प्रथक्तावादी और अराजक रहा है। म्यांमार में रोहिंग्या संकट के मूल में रोहिंग्याओ के द्वारा बाहर से मुस्लिमों की अवैध घुसपैठ करवाकर जनसंख्या संतुलन को बिगाड़ना, उनके आपराधिक कृत्य और अलग इस्लामिक देश की मांग है। म्यांमार में नशे की खेती, अवैध हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी जैसे अपराधो में ये समाज लिप्त रहा है।

‘अराकान रोहिंग्या सल्वेसन आर्मी’ पाक पोषित दुर्दांत आतंकी संगठन है और भारत में रोहिंग्याओ की उपस्तिथि इस संगठन के पैर भारत में भी जमायेगी। म्यांमार के सभी रोहिंग्या आतंकी गुटों को भी पकिस्तान ने ही पोषित किया और खड़ा किया है। भारत में भी पाकिस्तान आतंकियों को पूर्ण समर्थन करता रहा है और एक छद्म युद्ध उनके द्वारा भारत से लड़ रहा है। पकिस्तान और अरास जैसे आतंकी समूह रोहिंग्याओ की भारत में उपस्थिति का पूरा फायदा उठा सकते हैं। जो राजनैतिक दल रोहिंग्या मसले को मानवीय दृष्टीकोण से देखने की बात करते हैं वो बस मुस्लिम तुस्टीकरण की राजनीति कर रहें हैं।

भाजपा की केंद्र सरकार भी इस विषय पर अभी तक खाली बयानों के अलावा कोई कड़ा कदम नहीं उठा पायी है। भारत जिसके सामने जनसंख्या और आतंक का संकट पहले से ही विकराल रूप लिए हुए है। इस परिस्तिथि में भारत को इस विषय को मानवीय आधार पर ना देखते हुए एक व्यवहारिक निर्णय लेना चाहिए और अन्य दलों को भी दलगत और तुटीकरण की राजनीति से ऊपर उठकर इस विषय को देखना चाहिए। यदि भारत ने रोहिंग्याओ को भारत से बाहर ना किया तो इनकी पथकतावादी और जेहादी सोच भारत के लिए भविष्य में एक बड़ा संकट होगी।

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