सुस्त गति से बढ़ रहा आरटीआई का कारवां

RTI Low

 देश में 12 अक्टूबर 2005 को आरटीआई कानून लागू किया गया था

नई दिल्ली (एजेंसी)। देश में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून लागू हुये 15 साल हो चुके हैं लेकिन अब तक करीब ढाई प्रतिशत लोगों ने ही इसका इस्तेमाल किया है जिससे स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मजबूत हथियार को व्यापक बनाने की मुहिम काफी धीमी गति से आगे बढ़ रही है। भ्रष्टाचार नियंत्रण के मामलों से जुड़ी शोध संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ (टीआईआई) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में आरटीआई कानून लागू होने के डेढ़ दशक के दौरान 3.32 करोड़ (2.6 प्रतिशत) लोगों ने ही इस अधिकार का इस्तेमाल किया है।

उल्लेखनीय है कि देश में भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिये 12 अक्टूबर 2005 को आरटीआई कानून लागू किया गया था। इसका मकसद सूचना के अधिकार को व्यापक और प्रभावी बनाकर सरकारी तंत्र को पारदर्शी बनाना है। आरटीआई दिवस की पूर्व संध्या पर इस कानून के अब तक के सफरनामे को लेकर संस्था द्वारा रविवार को जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल के दौरान देश में इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या में महज 0.1 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक सर्वाधिक आरटीआई केन्द्र सरकार के विभिन्न महकमों में डाली जा रही है जबकि राज्यों में आरटीआई के इस्तेमाल के मामले में महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु पहले तीन पायदान पर हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी रिक्त पदों को नहीं भरा जा सका

रिपोर्ट में आरटीआई की सुस्त गति के लिये सूचना तंत्र को मजबूती प्रदान करने की नाकामी को प्रमुख वजह बताया गया है। आरटीआई कानून को प्रभावी बनाने के लिये केन्द्र एवं राज्यों के स्तर पर गठित सूचना आयोगों में खाली पड़े पद इसका बड़ा सबूत हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बावजूद सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों के 160 में से 38 रिक्त पदों को नहीं भरा जा सका है। इतना ही नहीं रिक्त पदों की संख्या वर्ष 2019 की तुलना में इस साल बढ़ गयी है। चिंता की बात ये भी है कि केन्द्रीय सूचना आयोग सहित तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड और गोवा में मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी रिक्त है। पिछले साल सूचना आयुक्तों के कुल 155 में से 24 पद रिक्त थे।

राजस्थान और गुजरात का ही रिपोर्ट कार्ड बेहतर

आरटीआई कानून में केन्द्र और राज्य सरकारों की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वे आरटीआई के बारे में वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर उसे सार्वजनिक करे। इस बारे में सरकारी तंत्र के लचर रवैये को उजागर करते हुये रिपोर्ट कहती है कि अधिकांश राज्यों ने पिछले कई सालों से वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है। इस मामले में छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात का ही रिपोर्ट कार्ड बेहतर है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 साल में अब तक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं की है।

अरुणाचल प्रदेश इस मामले में सबसे पीछे

रिपोर्ट के अनुसार बिहार सहित तीन राज्यों में सूचना आयोग की वेबसाइट ठप्प पड़ी है। इतना ही नहीं कोरोना संकट के शुरू होने के बाद अधिकांश राज्यों के सूचना आयोगों में आॅनलाइन सुनवाई भी बंद हो गयी है जबकि कोरोना संकट के दौरान आॅनलाइन सुनवाई को प्रभावी बनाने की जरूरत थी। रिपोर्ट में दिये गये आंकड़ों के मुताबिक केन्द्र सरकार में अब तक 92.63 लाख आरटीआई आवेदन किये गये। राज्यों में आरटीआई आवेदन की बात की जाय तो महाराष्ट्र (69.36 लाख), कर्नाटक (30.50 लाख) और तमिलनाडु (26.91 लाख) सबसे आगे हैं। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश इस मामले में सबसे पीछे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार आरटीआई संबंधी आंकड़े प्रकाशित ही नहीं कर रहे हैं।

आरटीआई के पिछले 15 साल के अनुभव से साफ जाहिर है कि देश में सरकारों और सरकारी अधिकारियों का सरकारी तंत्र में पारदर्शिता को लेकर रवैया बदल नहीं रहा है। सूचनाएं सार्वजनिक करने में अधिकारी वर्ग की टालमटोल करने की प्रवृत्ति में सुधार नहीं आने के कारण आरटीआई को व्यापक तौर पर प्रभावी बनाने में बाधा उत्पन्न होती है
-रमा नाथ झा,आरटीआईआई के कार्यकारी निदेशक

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।