दोनों जहान का सच्चा साथी है सतगुरु

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि वो इन्सान अति भाग्यशाली होते हैं जिसे पूर्ण मुर्शिद-ए-कामिल मिल जाया करते हैं। हर इन्सान सहारा चाहता है, पशु परिंदे भी सहारे के बिना नहीं रहते। लोग आपस में वो सहारा ढूंढते हैं। पति, पत्नी, दोस्त, मित्र, रिश्तेदार में सहारा बन जाता है। ऐसा साथी जो इस जहान नहीं बल्कि अगले जहान में भी साथ दे, ऐसा दोस्त सच्चा मुर्शिद-ए-कामिल होता है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हमें वो शाह सतनाम जी महाराज, शाह मस्ताना जी महाराज के रूप में मिला, जो है और हमेशा रहेगा। ऐसा दोस्त शायद रूहानियत में कभी सुनने को भी नहीं मिला। जिन्होंने फरमाया कि हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे। ऐसा सतगुरु मिला जिसको अरबों-खरबों बार नमन करें तो कम है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि कई बार इन्सान के अंदर आता है कि मैं अपने मुर्शिद-ए-कामिल को कोई उपहार दूं। तो सतगुरु को जो आप में जो बुराइयां हैं, आपकी जो कमियां हैं वो दे जाओ।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संतों का काम सबका भला करना होता है और वो कभी किसी से रूठते नहीं। जब इन्सान गलतियां करता है, वचनों को नहीं मानता तो उसे अपने कर्मों का फल उठाना पड़ता है। इसलिए अपनी कमियों को दूर करों, वचनों पर पक्के रहते हुए सुमिरन करो और अपने मुर्शिद का शुक्राना करो। अपनी तमाम कमियों को दूर करते जाओ और दूसरों के गुण देखो ताकि वो गुण आपके अंदर आ जाएं और अवगुण दूर हो जाएं। आप जी ने फरमाया कि भगवान को भावना पसंद है, दिखावा नहीं।

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