…जब बिन मौसम के जमींदार ने पूज्य साईं जी से जाहिर की मतीरा खाने की इच्छा

Mastana ji

करिश्मा मेरे साईं जी का : बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की रहमतें पाकर पड़ोसी भी हुए मुरीद

सरसा। शाह मस्ताना जी धाम सरसा के पड़ोसी सीधे-सादे स्वभाव का भक्त गुरदयाल सिंह जमींदार व उसका साथी सरसैण सिंह अपनी जमीन में नहरी पानी की बारी आने पर पानी लगाने जाते। गुरदयाल सिंह जमींदार के खेतों में नहरी पानी सप्लाई करने वाला खाला (नाला) आश्रम में बाग के बीचों-बीच होकर गुजरता। उस समय आश्रम का द्वार पूर्व की और कच्चे रास्ते पर था। पक्की सड़क पश्चिम की ओर बाद में बनी थी। पूर्व की ओर एक तरफ आश्रम की पक्की दीवार व गेट था। आश्रम के तीनों और ऊँची काँटेदार झाड़ियों की बाड़ होती थी।

साईं जी ने फरमाया, इन्हें आने दो, ये हमारे पड़ोसी हैं

सन् 1955 में एक बार का जिक्र है कि गुरदयाल सिंह अपने साथी सरसैण सिंह के साथ प्रात: 10 बजे पानी का खाला (नाला) संभालने के लिए आश्रम पहुँचा। शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज बेरियों वाले बाग में एक वृक्ष के नीचे विराजमान थे। कुछ सेवादार बाग में सेवा कर रहे थे। दोनों जमींदारों के आश्रम में दाखिल होने पर एक पहरेदार ने उन्हें रोकना चाहा। तभी आप जी ने दूर से ही फरमाया, इन्हें आने दो, ये हमारे पड़ोसी हैं। दोनों का हाल-चाल पूछा और फरमाया, वरी! कैसे आए? जमींदार भाईयों ने बताया कि नहरी पानी की बारी है, खाला (नाला) संभालने के लिए आए हैं। हमें कुछ बताओ जी।

जिस बात को करने से तुम्हारे दिल से सतगुरु की याद भूलती हो वो गुनाह है

आप जी ने उन्हें समझाया, जिस बात को करने से तुम्हारे दिल से सतगुरु की याद भूलती हो वो गुनाह है। जिस आदमी के पास बैठने से परमेश्वर की याद आए वो तुम्हारा यार है। कृपालु दाता जी ने दो सेवादारों को पानी का खाला (नाला) संभालने के लिए इन जमींदारों के स्थान पर भेज दिया। राम-नाम की चर्चा होती रही। सरसैण सिंह ने स्वभाविक तौर पर मतीरों का मौसम न होते हुए भी आप जी से मतीरा खाने की इच्छा प्रकट की। आप जी ने एक सेवादार को तेरावास से उन दोनों जमींदारों के लिए मतीरा लाने के लिए फरमाया। सेवादार तेरावास में गया और एक मतीरा ले आया। गुरदयाल सिंह बोला कि बाबा जी, कृपया आप जी अपने कर-कमलों से ही हमें प्रसाद दें जी।

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दाता जी ने दोनों को एक-एक मतीरे का पीस अपने पवित्र कर-कमलों से दिया और उन्हें खुशियों से लबालब कर दिया। दोनों जमींदारों के बाद आने वाली पानी की बारी हरचंद सिंह खाजाखेड़ा वाले जमींदार की हुआ करती थी। इस कारण इन दोनों का हरचंद सिंह से भी मेलजोल हो गया था। हरचंद सिंह की ज़मीन आश्रम के बिल्कुल सामने थी। गुरदायल सिंह ने अपने मित्र हरचंद से भी इस बात की चर्चा की कि कैसे सच्चे फकीर शाह मस्ताना जी महाराज ने हमें बेमौसमी मतीरा खिलाया। यह तो करिश्मा हो गया !

रूहानी वचन सुनकर तीनों को खुशी का हुआ अहसास

फिर वह भी दोनों के साथ आश्रम में आप जी के दर्शन करने के लिए आया। उस समय आप जी आश्रम में थोड़ी साध-संगत के साथ वचन-विलास कर रहे थे। आप जी बता रहे थे कि किसी का दिल न दुखाओ। जो किसी भक्त को सताता है, उसकी इबादत (प्रार्थना) कबूल नहीं होती। सबसे बेहतर वह दिल है जो बदी और गुनाह से खाली है। रूहानी वचन सुनकर तीनों को खुशी का अहसास हुआ। मौका मिलने पर तीनों पड़ोसी जमींदारों ने आदर सहित आप जी को नारा लगाया। आप जी ने तीनों पर कृपा दृष्टि डालते हुए उनका हाल-चाल पूछा। गुरदयाल सिंह ने आप जी को बताया कि ये हरचंद सिंह हमारा साथी है। हमने इसको मतीरे वाला चमत्कार बताया। अब यह आप जी पास दर्शनों के लिए आया है। मतीरे वाली बात टालते हुए आप जी ने फरमाया तुसीं अपने मन की बात रखी और हमने खिला दिया। यह चमत्कार वाली बात नहीं है।गुरदयाल सिंह ने कहा कि हरचंद सिंह की ज़मीन धाम के बिल्कुल सामने ही है, अपना पड़ोसी है।

वरी! इस (खाद) का क्या करते हो?

आप जी ने हरचंद सिंह की तरफ देखते हुए वचन फरमाया, इस ज़मीन की कद्रो-कीमत समय आने पर बहुत बढ़ ज़ाएगी, यहां बड़ी-बड़ी कोठियाँ बनेंगी। संतो के वचन कभी खाली नहीं जाते। आज यहां शहर बसा हुआ है। एक बार गुरदयाल सिंह अपने पिता के साथ बैलगाड़ी के द्वारा गोबर की गली-सड़ी खाद अपने खेत में डालने के लिए दरबार के आगे से जा रहा था। उसे समय पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज डँगोरी लिए मुख्य द्वार पर खड़े थे। बिल्कुल भोले-भाले बनते हुए बैलगाड़ी वाले जमींदार से पूछा, वरी! इस (खाद) का क्या करते हो?

बेपरवाह जी ने सच्चा प्रेम देखते हुए बहुत रहमतें प्रदान कीं

गुरदयाल सिंह के पिता लक्ष्मण सिंह ने बताया कि सांई जी, इसको खेत में डालते हैं।जिससे फसल अच्छी होती है। आप जी ने फरमाया, हवरी, फिर एक गाड़ी हमारे पौधों के लिए ला दो। गुरदयाल सिंह सहज सरल हदय वाला जमींदार था। सत् वचन कहकर एक गाड़ी खाद आश्रम में सरसा दे आया। आप जी ने अगले दिन दो सेवादारों को गुरदयाल सिंह जमींदार के घर भेजते हुए कहा, उसको प्रेम से आश्रम में बुलाकर लाओ। वो हमें खाद दे गया है, हमने उसके बदले में खुशियां देनी हैं।ह आश्रम में आकर जमींदार ने हाथ जोड़कर आदर सहित कहा कि सतगुरू जी, आप जी का दिया सब कुछ है। आप जी हमेशा अपनी मेहर यूं ही बनाए रखना। बेपरवाह जी ने उसका सच्चा प्रेम देखते हुए उसे बहुत रहमतें प्रदान कीं। इसके बाद गुरदयाल के खेतों में बरकत आने लगी व उसके सभी कष्ट दूर हो गए। आप जी की कृपा से उसकी इज्जत बढ़ने लगी व अंदर-बाहर से खुशियां प्राप्त होने लगीं।

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