धर्म का कांटा : Scale of Religion

Religion
रात को साढ़े 10 बजे जब आलोक का मोबाइल बजा, सुरभि चौंकी, बोली, ‘इस समय कौन है?’ तब तक ‘हैलो’ कहते हुए आलोक बात करना शुरू कर चुका था। आलोक की एकतरफा बात ही सुरभि के कानों में पड़ रही थी, ‘हां, हां, एकदम बढ़िया, ठीक रहेगा, आ जाओ सब, बोल दो सबको, ठीक है, मिलते हैं, ओके।’ फिर आलोक उत्साहित हो कर सुरभि से बोला, ‘परसों संडे को अपनी मंडली यहीं घर में लंच करेगी। पूरा महीना हो गया सब से मिले हुए। चलो, कल भी छुट्टी है, कल ही डिस्कस करेंगे कि क्या-क्या बनाना है।’ आलोक स्वभाव से शांत और मृदुभाषी था। वह सुरभि का भी खयाल रखता था। पर उस की एक कमजोरी यह भी थी कि वह अपने दोस्तों के बिना नहीं रह सकता था। पर सुरभि उन के दोस्तों से घुलमिल नहीं पा रही थी। सुरभि का मन बुझ गया, पर फिर भी ‘‘हां, ठीक है, कल डिस्कस करेंगे,’’ कह कर वह सोने के लिए लेट गई। पर हमेशा की तरह आलोक की बात से उस की नींद उड़ गई थी।
क्या करे वह, क्यों वह आलोक के बचपन के ग्रु्रप में सहज नहीं रह पाती। पर किस से कहे और क्या कहे। आलोक से विवाह हुए एक साल ही तो हुआ था। आलोक और सुरभि मुंबई के गौरीपड़ा इलाके में शादी के बाद एक अपार्टमैंट में रहने आ गए थे। मेरठ से मुंबई आने पर आलोक के दोस्तों के इस गु्रप ने ही तो उस की गृहस्थी जमाने में मदद की थी। विवाह के एक महीने बाद ही तो आलोक का मुंबई ट्रांसफर हो गया था। सुरभि के माता-पिता ने ही आलोक को पसंद किया था। आलोक के स्वभाव, व्यवहार पर सुरभि को अपनी पसंद पर गर्व ही हुआ था। सुरभि ने अच्छी-खासी शिक्षा ले रखी थी। वह समय के साथ आधुनिक तो दिखती थी लेकिन धर्म के मामले में असहज हो जाया करती थी। जिस कारण वह दूसरों से ज्यादा घुलना-मिलना पसंद नहीं करती थी। सुरभि अपने वैवाहिक जीवन से पूरी तरह खुश थी, पर आलोक की इन दोस्तों ने उस का चैन लूट रखा था। बचपन से ले कर आज तक आलोक के ये तीनों दोस्त एक परिवार की तरह ही रहते आए थे। सब एकएक कर के मुंबई आ गए थे। चारों एक ही सोसायटी में अलग-अलग बिल्डिंग में रहते थे। सुयश और मेघा, विपिन और रिया, टोनी और जेनिस, सब जब उस के विवाह में आए थे।
सब की मस्ती देखते ही बनती थी। इन की मस्ती, शरारतों से दोनों के घर वाले आनंद उठाते रह गए थे। उस समय तो सुरभि ने ध्यान नहीं दिया था, पर यहां आने के कुछ दिनों बाद ही उसे सब की दोस्ती बोझ लगने लगी थी। सब से बड़ी बात जो थी वह यह कि सुरभि के कट्टरपंथी माता-पिता ने उस के दिल में धर्मांधता कूट-कूट कर भरी थी। उसे टोनी और जेनिस के घर जाकर खाना-पीना या उनका अपने घर खाना-पीना बिलकुल नहीं सुहाता था। पर मजबूर थी। इस चौकड़ी को तो धर्मजाति से बिलकुल मतलब ही नहीं था। मेघा और रिया कामकाजी थीं। दोनों सुरभि की उम्र की ही थीं। दोनों बड़ी खुशमिजाज थीं। आज में जीती थीं। घर और बाहर के काम में निपुण थीं। जेनिस सुरभि की तरह हाउसवाइफ थी। लेकिन उसकी स्मार्टनैस भी मेघा और रिया से कम नहीं थी। अकसर लौंग स्कर्ट पहनती थी, जो उस पर बहुत फबती थी। हर 15 दिनों में सब किसी एक के घर लंच या डिनर जरूर करते थे। अभी सिर्फ मेघा की ही 4 साल की बेटी चारू थी। मेघा टीचर थी। उसने चारू का एडमिशन अपने स्कूल में ही करवा दिया था। सुरभि स्वभाव से अंतमुर्खी थी ही, टोनी और जेनिस के कारण इस गु्रप में अपने आप को बिलकुल अनफिट पाती थी। अब तो उसे इस मंडली से छुटकारा दूर-दूर तक मिलता नहीं दिख रहा था। वह शुरू-शुरू में काफी चुप रही तो सुयश ने पूछ भी लिया था, ‘सुरभि, यह चौकड़ी पसंद नहीं आई क्या?’ सुरभि झेंप गई थी, ‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है। आप सब तो बहुत अच्छे हैं।’
आलोक ने भी कई बार उस का उखड़ापन नोट किया था, पूछा भी था, ‘‘सुरभि, तुम इन लोगों के आने पर इतना सीरियस क्यों हो जाती हो?’’ नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है।’’ कुछ तो है, बताओ। ‘‘शायद मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है,’’ सुरभि ने कह तो दिया था पर आलोक के चेहरे पर तनाव छा गया था। वह वहां से उठ कर चला गया था। दोस्तों के लिए उस के मन में एक अलग ही जगह थी। सुरभि का उन को ले कर रूखापन उसे कुछ अच्छा न लगा। उसके बाद जब भी सब के इकट्ठे होने की बात हुई, आलोक ने बहाना कर दिया कि वह बहुत व्यस्त है। सुरभि को आत्मग्लानि तो हुई, फिर उस ने स्वयं को समझा लिया कि ठीक है, सब को थोड़े दिनों में आदत हो जाएगी। उसे इतनी भीड़ के साथ नहीं रहना है। इस के बाद आलोक उसे कई बार उदास और गंभीर लगा तो सुरभि को दुख तो हुआ पर बोली कुछ नहीं। उसने सोचा, एकदम से यह सब बंद नहीं होगा, टाइम लगेगा। वह आलोक के सामने टोनी और जेनिस के प्रति अपनी भावनाएं भी स्पष्ट नहीं करना चाह रही थी, इसलिए उस ने बहुत सोच समझकर आलोक से सब को बुलाने के लिए हां कह दी थी। आलोक ने सब को मिलने के लिए फोन कर दिया था। अब चौकड़ी उस के घर जमने वाली थी। फिर टोनी और जेनिस के बारे में खयाल आया। सुरभि की तो नींद ही उड़ गई थी। टोनी और जेनिस ईसाई दंपत्ति थे और आलोक के सबसे खास मित्रों में से एक।
अगले दिन सवेरे ही आलोक नाश्ते के बाद उत्साह से सुरभि के साथ बैठ कर संडे का मैन्यू बनाने लगा। सुरभि भी झूठा उत्साह दिखाती रही। वह नहीं चाहती थी कि आलोक का मूड खराब हो। संडे को सब 12 बजे आ गए, चारू तो अपने खिलौने ही उठा लाई थी। जिस का जहां मन किया, बैठ गया। किसी को कोई फौर्मेलिटी आती ही नहीं थी। सब मस्त और खुशमिजाज थे। मेघा और रिया किचन में सुरभि के साथ व्यस्त हो गर्इं। टोनी और जेनिस चर्च गए हुए थे। वे थोड़ी देर बाद आने वाले थे। सुरभि उन्हें अनुपस्थित देखकर मन ही मन खुश हुई थी। पर जब उसे पता चला कि वे थोड़ी देर बाद आएंगे, उस का मूड खराब हो गया। उसके संस्कार, उस की परवरिश, आलोक के क्रिश्चियन दोस्तों से घुलने-मिलने में दीवार बन कर खड़े थे। वह उन्हें देख कर कुढ़ती ही रहती थी।
वे दोनों जब आए, तब सब ने खाना खाया। दोनों सुरभि की आंखों में खटकते रहे, पर वह आलोक की खुशी के आगे मजबूर थी। दीवाली की छुट्टियों में सुयश और मेघा, विपिन और रिया दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे। आलोक को आॅफिस का जरूरी काम था। सो, वे दोनों दीवाली पर मुंबई में ही थे। दीवाली की शाम सब लोग मिल कर नीचे पटाखे छोड़ते थे। दीवाली की शाम बच्चों का हर तरफ शोर था। शाम को ही टोनी और जेनिस भी उन के घर आ गए थे। सुरभि का फ्लैट तीसरी फ्लोर पर था। बच्चे खूब धमाचौकड़ी कर रहे थे।
जैसे ही आलोक सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था, ऊपर से बच्चे भागते हुए उतरे। उन में से ही किसी का भागते हुए आलोक को तेज धक्का लगा। जब तक वह खुद को संभालता तब तक उस का संतुलन बिगड़ गया। कई सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ वह काफी नीचे तक गिर गया। सिर फट गया, खून की धारा बह चली और पैर के तेज दर्द से वह कराह उठा। उस के पीछे ही टोनी, जेनिस और सुरभि उतर रहे थे। सुरभि की चीख निकल गई। आलोक खून से लथपथ हो गया। सुरभि घबरा गई। पलभर की देर किए बिना टोनी ने आलोक को बांहों में उठाया और तेज आवाज में बोला, ‘‘जेनिस, जल्दी से कार निकालो, भागो।’’ जेनिस 2-2 सीढ़ियां एक साथ कूदती हुई भागी। आलोक का दर्द से बुरा हाल था। बांहों में आलोक को उठाए हुए टोनी ने सुरभि से कहा, ‘‘सुरभि, जल्दी गाड़ी में बैठो, हौस्पिटल चल रहे हैं।’’ पीछे की सीट पर आलोक को लिटा कर टोनी ने ड्राइविंग सीट संभाली और गाड़ी दौड़ा दी। सुरभि के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
यह क्या हो गया, वह तो यहां किसी को जानती भी नहीं। क्या करेगी अकेली। आलोक के सिर पर चोट गहरी थी। 8 टांके लगे थे। पैर में भी फ्रैक्चर था, यह जान कर सुरभि का तो सिर ही चकरा गया। अब आलोक क्या करेगा। पैर पर प्लास्टर चढ़ गया था। डाक्टर ने 2 दिनों बाद ड्रेसिंग के लिए बुलाया था। सुरभि तो खाली हाथ ही हौस्पिटल भाग आई थी। पेमैंट के समय उस ने खुद को बहुत असहज महसूस किया। टोनी ही सब कर रहा था। टोनी ने ही सहारा देकर आलोक को गाड़ी में बिठाया और सब घर आ गए। जेनिस ने बहुत ही स्नेहपूर्वक सुरभि का कंधा थपथपाया, ‘‘चिंता मत करो, सुरभि, सब ठीक है।’’ रात काफी हो गई थी, हर तरफ दीवाली की धूमधाम थी। जो डिनर सुरभि ने बनाया था, सब रखा था। टोनी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘बहुत तेज भूख लगी है, सुरभि, कुछ खाने को मिलेगा?’’ सुरभि झट से सब के लिए खाना लगाने लगी। टोनी ने फिर आलोक को छेड़ा, ‘‘बड़े भारी हो गए हो यार, तुम्हें उठा कर लाने लेजाने में हालत खराब हो गई।’’
आलोक को हंसते-बोलते देख सुरभि की जान में जान आई। आलोक को अपने हाथ से खिलाकर सुरभि ने टोनी और जेनिस के साथ ही थोड़ा बहुत खाया। रात एक बजे के करीब आलोक के सोने के बाद ही टोनी और जेनिस घर गए। सुरभि पूरी घटना को सोचते हुए रातभर सोती-जागती रही। अगले दिन सुबह 7 बजे ही टोनी आ गया। आलोक को सहारा देकर बाथरूम तक ले गया। आलोक से कुछ नंबर लेकर आलोक के आॅफिस में कुछ लोगों को इस दुर्घटना के बारे में बता दिया। थोड़ी देर में जेनिस सब के लिए सैंडविच बना कर ले आई, बोली, ‘‘लो सुरभि, तुम रातभर ठीक से सो नहीं पाई होगी। सब यहीं साथ खा लेंगे।’’ नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘मैं ने आज की छुट्टी ले ली है आलोक। सेवा करवा लो बच्चू। सब को बताऊंगा कैसे तुम ने हमारी दीवाली की शाम खराब की है, उन लोगों को भी आने दो लौट कर।’’ आलोक जोर से हंस पड़ा, सुरभि को अच्छा लगा। सुयश और विपिन को भी टोनी ने फोन पर बता दिया था।
उन लोगों के फोन आते रहे। आलोक ने अपने घर बताने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि उस की मम्मी की तबीयत कुछ खराब चल रही थी, वे परेशान ही होतीं। आलोक के कपड़े बदलने में टोनी ने ही उस की मदद की। लंच जेनिस ने सुरभि के साथ मिल कर ही बना लिया। फिर आलोक ने ही जबरदस्ती दोनों को आराम करने के लिए भेज दिया। दवाइयों के असर से आलोक की आंख लग गई थी। 6 बजे टोनी फिर आ गया, ‘‘सुरभि, शाम को आलोक के कलीग्स उसे देखने जरूर आएंगे। तुम व्यस्त रहोगी। इसलिए जेनिस ही डिनर बना कर लाएगी।’’ सुरभि सोचती रह गई कि इन दोनों को बिना कुछ कहे-सुने एक-दूसरे के सुख-दु:ख का एहसास कैसे हो जाता है। शाम को यही तो हुआ। आलोक के कलीग्स और कुछ पड़ोसी आते-जाते रहे। सुरभि पूरी शाम सब के चाय-नाश्ते में ही व्यस्त रही। उसे बहुत थकान भी हो गई थी। 9 बजे सब के जाने के बाद चारों ने जेनिस का लाया हुआ शानदार डिनर किया। पूरा खाना आलोक की पसंद का था।
सुरभि यह देख कर मुस्कुरा दी। रात को आलोक के सोने के बाद उस के बराबर में लेटी सुरभि के मन में तो नए विचारों ने हलचल मचा रखी थी। कल से अब तक एक बार भी सुरभि के दिल में टोनी और जेनिस का दूसरे धर्म का होने का विचार भी नहीं आया था। वह तो पूरी तरह से दोनों के स्नेह में आकंठ डूबी हुई थी। यह क्या किया उसके माता-पिता ने, क्यों उस की इतनी कट्टरपंथी सोच के साथ परवरिश की कि धर्म का कांटा उस के दिल में ऐसे चुभता रहा और वह इतने प्यारे दोस्तों से कभी खुल कर मिल नहीं पाई। कितने दिन उस ने इस सोच पर खराब कर दिए। आलोक का भी दिल दुखाया। वह स्वयं सुशिक्षित थी, उस ने क्यों आंखें बंद कर अपने माता-पिता की पुरातनपंथी सोच का अनुसरण किया। उसे अपनी सोच पर आत्मग्लानि होती रही।
8 बजे के आसपास टोनी और जेनिस भी आ गए। जेनिस ने एक टिफिन सुरभि को देते हुए कहा, ‘‘तुम बस चाय बना लो, पोहा बना कर ले आई हूं।’’ आलोक को पोहा इतना पसंद था कि वह इसे रोज खा सकता था। सब एक-दूसरे की पसंद कितनी अच्छी तरह जानते हैं, यह देख कर सुरभि को मन ही मन हंसी आ गई। नाश्ता करते हुए टोनी ने कहा, ‘‘जेनिस, यह गलत बात है, इसके ठीक होने तक क्या इसी की पसंद की चीजें खानी पड़ेंगी?’’ जेनिस ने भी शरारत से जवाब दिया, ‘‘हां, सही समझे।’’ टोनी ने फिर पूछा, ‘‘आलोक, छुट्टी ले लूं या आॅफिस चला जाऊं?’’ जवाब सुरभि ने दिया, ‘‘छुट्टी ही ले लो आप, दिन में साथ बैठेंगे, क्यों जेनिस?’’ जेनिस मुस्कुरा दी। सुरभि का यह अपनापन शायद जेनिस के दिल को छू गया था। आलोक ने हैरानी से सुरभि को देखा, सुरभि मुस्कुरा दी तो आलोक के चेहरे पर एक अलग ही चमक आई, जिसे सिर्फ सुरभि ने महसूस किया था।
-लेखिका : पूनम अहमद

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