श्रीराम और परशुराम

Shri Ram and Parashuram
कहते हैं शौर्य के साथ वाणी में संयम विरले लोगों में ही होता है। सीता स्वंयवर में शिवाजी का धनुष श्रीराम के हाथों टूट चुका था। तभी परशुराम का आगमन हुआ। उन्होनें पूरी सभा के सामने प्रश्न रखा कि किसने धनुष तोड़ा? लक्ष्मण और परशुराम का संवाद चलता है, लेकिन श्रीरामजी चुपचाप हैं। परशुराम लक्ष्मण को ‘रे नृप बालक काल वश तूने ऐसा किया है,’कह देते हैं। तब श्री राम खड़े होकर कहते है ‘नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइएँ कोउ एक दास तुम्हारा अपने आपको क्रुद्ध परशुराम का दास कहना श्रीराम का शालीन उत्तर है। वे इस तरह एक साथ ही शौर्य और शील का प्रदर्शन करते हैं, जिस पर परशुराम सोचने लगे,‘यह कोई महापुरूष ही हो सकता है। शिवाजी का धनुष तोड़ना अति विरल कार्य है। संभव है ये अवतारी पुरूष हों।’
वे परीक्षा लेने के लिए एक धनुष राम की ओर बढ़ाते हैं कि वह प्रत्यंचा चढ़ा दें, लेकिन यह क्या? धनुष अभी हाथ से छूटा ही नहीं, किस आकर्षण शक्ति सें यह खींच लिया गया है। श्रीराम की शालीनता के साथ वीरतापूर्ण व्यवहार से क्रुद्ध परशुराम का हृदय परिवर्तित होता है। वे श्रीराम के चरणों मे साष्टांग प्रणाम करते हैं और अपने सदगुणों के विकास के लिए तप करने चले जाते हैं। कितना उत्तम होगा यदि आज श्रीराम के अनुयायी अपने अंदर इन सदगुणों का विकास करें। तभी अनेक सद्व्यवहार और वाणी के प्रभाव से अन्य लोग ओर आकर्षित होंगें।

बुद्ध का शिष्य

कर्म को विचारों की सबसे सुंदर व्याख्या माना गया है। भगवान बुद्ध के एक शिष्य को आवश्यकता से ज्यादा बोलने की आदत थी। इसी आदत के कारण के खूब जोर-जोर से बोलकर भीड़ एकत्र करते और फिर लोगों को धर्मोपदेश देते। कुछ श्रद्धालुओं को तथागत के शिष्य की यह बात अखरी और उन्होनें इसक शिकायत तथागत से की।

अत:तथागत ने एक दिन उस शिष्य को अपने पास बुलाया और फिर बड़े प्रेम से पूछा कि अगर कोई ग्वाला मार्ग में जा रही गायों को गिनता रहे तो क्या वह उससे उनका असली स्वामी बन जाएगा? ‘नही’,भंते! मात्र गायों को गिनने भर से कोई उनका स्वामी कै से हो सकता है। उनका वास्तविक स्वामी तो वह होगा जो उनकी देखभाल करे और हमेशा उनकी सेवा मेें जुटा रहे, शिष्य ने उत्तर दिया। तथागत बोले ,‘तुम ठीक कह रहे हो, अत: आज से तुम भी धर्र्म का पाठ लोगों को जीभ से नहीं, बल्कि जीवन से सिखाओ। लोगों की सेवा-साधना में तन्मयतापूर्वक जुटे रहकर उन्हें धर्म का संदेश दो। याद रखो वाणी से अधिक कर्म का असर होता है।’ कहावत भी है कि कर्म की ध्वनि शब्दों से ऊँची होती है।

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