मुस्लिम दुनिया में खिंच गई तलवारें

Swords drawn in muslim world
इज्ररायल और यूएई के बीच हुए कूटनीतिक समझौते से मुस्लिम दुनिया में तलवारें खिंच गई हैं। मुस्लिम आतंकवादी संगठन, इस्लामिक संगठन, मुस्लिम देश सभी तलवारें भांज रहे हैं। यह कहने से चूक नहीं रहें हैं कि यूएई ने दुनिया के मुसलमानों के साथ धोखा किया है, उस इज्ररायल के साथ कूटनीतिक समझौता किया है जिस इज्ररायल के खिलाफ दुनिया भर के मुसलमान वर्षों से लड़ते आये हैं।
खासकर ईरान और तुर्की का विफरना बहुत ही चिंता की बात है और ईरान-तुर्की जैसे देश मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की भाषा ही बोल रहे हैं, ईरान का अखबार कायहान लिखता है कि यूएई पर आक्रमण बोल देना चाहिए। जानकारी योग्य बात यह है कि कायहान अखबार इस्लाम की कट्टरवादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है और कायहान अखबार के संपादक की नियुक्ति ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खेमनई करते हैं, उसके संपादकीय पर भी अयातोल्लाह खमेनई का नियंत्रण होता है। इसलिए कायहान अखबार के दृष्टिकोण को ईरान की इस्लामिक सरकार का दृष्टिकोण माना जाता है।
जहां तक मुस्लिम आतंकवादी संगठन अलकायदा, आईएस, हूजी और हमास तथा हिजबुल मुजाहिदीन आदि का प्रश्न है तो ये सभी मुस्लिम आतंकवादी संगठन न केवल आगबबूला हैं बल्कि इज्ररायल के खिलाफ पूरी मुस्लिम दुनिया को भड़काने और इज्ररायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का आह्वान कर रहे हैं। ईरान-तुर्की जैसे कट्टरवादी मुस्लिम देशों की नाराजगी या फिर इनकी युद्ध जैसी धमकियां इज्ररायल के लिए कोई अर्थ नहीं रखती हैं और न ही इज्ररायल को चिंता में डालने जैसी हैं। इज्ररायल अपने दृष्टिकोण पर अडिग और अटल रहता है उसे कोई डिगा नहीं सकता है। ईरान, तुर्की और मलेशिया जैसे देश तो इज्ररायल के खिलाफ नियमित कूटनीतिक हिंसा पर सवार ही रहते हैं। हमास, हिजबुल मुजाहिदीन, हूजी और आईएस जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठन तो नियमित तौर पर इज्ररायल के खिलाफ आतंकवादी हिंसा के तौर पर सक्रिय ही रहते हैं। यूएई ने भी इस तरह की कट्टरपंथी मानसिकता को झेलने के लिए विचार कर ही लिया होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर यूएई ने कभी भी इज्ररायल के साथ कूटनीतिक समझौता करने का खतरा नहीं लिया होता?
यूएई और इज्ररायल के बीच कूटनीतिक साझेदारी का समझौता कई अर्थ रखते हैं। मुस्लिम दुनिया के साथ ही साथ शेष दुनिया के लिए कई गंभीर और लाभकारी अर्थ हैं, जिनकी अभी तक कोई व्याख्यता नहीं हुई हैं। कहने का अर्थ यह है कि यह समझौता सही में मील का पत्थर साबित होगा, मुस्लिम दुनिया की कट्टरपंथी मानसिकताओं पर चोट करने जैसा साबित होगा, मजहब के आधार पर बर्बर गोलबंदी के खिलाफ एक सशक्त हथियार बनेगा, सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं उन सबकी मजहबी मानसिकताएं भी कमजोर होंगी, उन मजहबी आतंकवादी संगठनो के हिंसा और नेटवर्क को भी जमींदोज करने का अवसर मिलेगा।
सबसे बड़ा अवसर अरब दुनिया की सुरक्षा और विकास के क्षेत्र में है। अरब देश अभी भी अपनी सुरक्षा दृष्टिकोण के मायने में बेहद कमजोर हैं और उन्हें मेरा इस्लाम अच्छा और तुम्हारा इस्लाम खराब की मानसिकता का खतरा हमेशा रहता है। जानना यह भी जरूरी है कि यूएई और सउदी अरब जैसे सुन्नी मुस्लिम देशों के सामने ईरान-तुर्की और पाकिस्तान प्रायोजित मुस्लिम आतंकवाद का खतरा हमेशा खड़ा रहता है। सउदी अरब ने अपने यहां मजहबी कट्टरपंथियों को जमींदोज करने के लिए कठोर कानूनों का सहारा लिया है फिर मजहबी कट्टरपंथी अपनी आतंकवादी हिंसा से बाज नहीं आते हैं। इज्ररायल के पास सुरक्षा टैक्नोलॉजी है, इज्ररायल के पास मुस्लिम आतंकवाद से लड़ने का सत्तर साल से भी अधिक समय का अनुभव है।
इस समझौते की गूंज सिर्फ मुस्लिम दुनिया में ही नहीं दिखायी दी है, इस समझौते की गूंज अमेरिका और यूरोप में दिखायी दी है। खासकर डोनाल्ड ट्रम्प की यह एक शानदार जीत के तौर पर देखा जा रहा है और फिलिस्तीन समस्या के समाधान के प्रति सकारात्मक पहलू की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। अब आप यह प्रश्न उठायेंगे कि समझौता इज्ररायल और यूएई के बीच हुआ है तो फिर डोनाल्ड ट्रम्प की शानदार जीत कैसे हुई है? अगर इस कूटनीतिक समझौते पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि यह समझौता डोनाल्ड ट्रम्प की ही देन है, यह समझौता डोनाल्ड ट्रम्प ने ही कराया है। इस अर्थ में डोनाल्ड ट्रम्प बेहद ही सफल राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं, डोनाल्ड ट्रम्प की वीरता यह है कि उसने अरब समूह के एक महत्वपूर्ण देश यूएई को इज्ररायल के खिलाफ बनी-बनायी अवधारणा को तोड़ देने और इज्ररायल के साथ समझौता करने के लिए प्रेरित किया ।
पिछले तीन-चार दशकों में अमेरिका में कई राष्ट्रपति हुए जैसे जार्ज बुश, बिल क्लिंटन, बराक ओबामा आदि पर ये भी बडी कोशिश की थी कि इज्ररायल को लेकर अरब समूह के देशों का दृष्टिकोण बदले, इज्ररायल के साथ समझौते करे और इज्ररायल को अक्षुण्ण मानने जैसी मुस्लिम देशों की कट्टर मानसिकताओ का पतन हो पर इस मामले में बिल क्लिंटन , जार्ज बुश और बराक ओबामा असफल ही साबित हुए थे। निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प ने एक पक्के राजनीतिज्ञ की भूमिका निभायी है। मीडिया और राजनीति में इसके पहले डोनाल्ड ट्रम्प को एक अति अगंभीर और भस्मासुर राजनीतिज्ञ माना जाता था। पर अब मीडिया और राजनीतिक क्षेत्र को भी डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति दृष्टिकोण बदल लेना चाहिए। डोनाल्ड ट्रम्प अरब समूह के अन्य मुस्लिम देशों का नजरिया भी बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने यह संदेश देने में भी सफल हुए हैं कि युद्धकाल में अरब देशों को इज्ररायल की सुरक्षा शक्ति की जरूरत होगी।
यूएई ऐसा तीसरा मुस्लिम देश बन गया है जिसका कूटनीतिक संबंध इज्ररायल के साथ है। इसके पहले मिश्र और सीरिया का कूटनीतिक संबध इज्ररायल के साथ बना है। खासकर मिस्त्र में इज्ररायल गैस और तेल उत्खनन में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। सीरिया और मिस्त्र भी कभी इज्ररायल के खिलाफ ईरान, तुर्की, मलेशिया जैसे मुस्लिम देशों की ही मानसिकता से ग्रसित थे। सीरिया और मिस्त्र भी अपने आप को मुस्लिम दुनिया का बादशाह बनने का सपना देखा करते थे। फिलिस्तीन के प्रश्न पर सीरिया और मिश्र ने इज्ररायल के साथ युद्ध मोल ले लिया था। उस काल में पूरी मुस्लिम दुनिया मिस्त्र और सीरिया के साथ खड़ी थी तथा इज्ररायल का सर्वनाश चाहती थी। पर इज्ररायल ने अकेले मिस्त्र और सीरिया सहित पूरी मुस्लिम दुनिया को पराजित कर दिया था।
इज्ररायल का नरम होना, अरब समूह के देशों के साथ समझौते की राह पर खड़ा होना दुनिया के लिए एक अच्छी कूटनीतिक पहल है। फिलिस्तीन समस्या के प्रति भी रूख सकारात्मक है। इज्ररायल ने वायदा किया है कि फिलिस्तीन की मुस्लिम बस्तियों को इज्ररायल में मिलाने का कार्य स्थगित कर देगा। हाल के वर्षो में मुस्लिम दुनिया की मजहबी रूख को प्रदर्शित करते रहने पर इज्ररायल ने भी कड़ा रूख अपना लिया था। इज्ररायल ने विवादित मुस्लिम बस्तियो को अपने में मिलाने का कार्य तेज कर दिया था। इस कारण फिलिस्तीन और इज्ररायल के बीच हिंसा चरम पर पहुंच गयी थी। यह हिंसा शांतिपूर्ण दुनिया के लिए भी चिंता का विषय थी। फिलिस्तीन समस्या का हिंसक समाधान कभी भी नहीं हो सकता है। हिंसा के बल पर इज्ररायल को डराया नहीं जा सकता है। इज्ररायल के साथ समझौते की कसौटी पर ही फिलिस्तीन समस्या का समाधान संभव है।
आज यूएई समझौते के राह पर आया है कल अन्य अरब समूह के देश भी इज्ररायल के साथ समझौते की राह पर बैठेंगे। इज्ररायल के प्रति अरब समूह के देशों का बढ़ता रूझान और बदलता नजरिया दुनिया की कूटनीति और शांति के लिए मिसाल बनेगा। ईरान, तुर्की और मलेशिया जैसे मुस्लिम देशों और हमास हिजबुल मुजाहिदीन, हूजी, अलकायदा और आईएस जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठन का नेटवर्क और इनकी कट्टपंथी मानसिकताएं भी कमजोर होंगी।

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