सीरिया युद्ध: मानव जीवन पर सबसे बड़ा प्रहार

Syria War

सीरिया में आठ वर्षों से लगातार जारी युद्ध में लगभग तीन लाख सत्तर हजार लोग अपनी जान गवा चुकें हैं जिसमें से नागरिकों की संख्या एक लाख बारह हजार से भी ज्यादा है। बीते शुक्रवार को यह आंकडे सीरिया के मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था सीरियन आॅबजर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइटस की ओर से जारी किए गए हैं। आंकडों के अनुसार इस युद्ध में अभी तक 21 हजार बच्चों के अलावा 13 हजार महिलाओं की भी मौत हो चुकी है। ज्ञात हो कि विभिन्न गुटों के बीच जारी हिंसक संघर्ष की शुरूआत आज से लगभग आठ साल पहले 15 मार्च 2011 को हुई थी। उस दिन सीरिया के दक्षिणी शहर दारा में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की प्रारंभिकता हुई थी। यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया जिसे असद सरकार ने हिंसक तरीके से दबाने की कोशिश भी की थी लेकिन यह मिशन पूर्ण रुप से फेल हो गया था। गृह युद्ध में तब्दील हो चुके माहौल में अलग-अलग गुटों ने अपना-अपना दावा ठोकना शुरू कर दिया। इसके बाद फिर इस गृह युद्ध में वैश्विक ताकतें भी शामिल हो गईं।

दुर्भाग्य से झूझते सीरिया के आंकड़ों से पूरे विश्व में बैचेनी हो गई है। क्या इसको रोकने में विश्व की शक्तियों ने आतंक के आगे घुटने टेक दिए या कौन से ऐसी लाचारी है जिससे मानव जीवन की लगातार होने वाली क्षति को रोका नही जा रहा। विश्व के अहम देशों को नियंत्रण सभी देशों पर होता है व उनकी मर्जी के बिना प्रतिबंधित कार्य होता है तो उस देश की आफत हो जाती है। लेकिन सीरिया में लगातार आंतक का साया हटने का नाम ही नही ले रहा। वहां के नागरिकों का कहना है कि हम रोज सुबह जब भी उठते हैं तो अपनी जिंदगी का आखिरी दिन समझकर जीते है क्योंकि लगातार हो रहे मौत के तांडव से हमें नही पता होता कि हम अगला दिन देख पाएगें या नही।

आपको ज्ञात हो कि बशर अल-असद ने सन् 2000 में अपने पिता हाफेज अल असद की सीट संभाल ली थी। अरब के तमाम देशों में सत्ता के खिलाफ शुरू हुई बगावत से प्रभावित होकर मार्च 2011 में सीरिया के दक्षिणी शहर दराआ में भी लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन की शुरूवात हुई थी व साथ ही संघर्ष के शुरू होने से पूर्व अधिकतर सीरियाई नागरिकों में बेरोजगारी,राजनीतिक स्वतंत्रता के अभाव व भ्रष्टाचार के चलते राष्ट्रपति असद के दमन के खिलाफ बड़े स्तर पर निराशा थी। ट्रंप से लेकर पुतिन तक ने इस मामलें में कई बार हस्तक्षेप किया और असद की तानाशाही प्रक्रिया को रोकने के लिए हवाई हमले भी किये लेकिन स्थिति कभी निर्णायक नही बन पाई। 2117 में 50 टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों ने सीरिया के एयर बेसों को निशाना बनाया था। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इन हमलों के बाद टीवी पर दिए इंटरव्यू में कहा था कि सीरिया के राष्ट्रपति असद एक तानाशाह हैं जिन्होंने मासूम लोगों पर रासायनिक हथियारों से हमला किया था।

यह घटना एक विश्वस्तरीय विफलता का सबसे बड़ा व सजीव उदाहरण बन चुका है। सीरिया में मात्र पौने दो करोड़ लोग बचे है वो भी रोजाना घटते जा रहे है। मानवता के हनन की बात की जाए तो गरीबी व भूखमरी इतनी बढ़ चुकी है कि थोडे से खाने व पैसों के लिए महिलाओं को यौन शौषण हो रहा व कैंप में रही महिलाओं के साथ भी गलत हरकते होती रहती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक लैंगिक हिंसा का विश्लेषण किया गया था, जिसमें कई घटनाओं का भी जिक्र था। रिपोर्ट में बताया गया था कि खाने-पीने की सामग्री के लिए महिलाएं और लड़कियां से अधिकारी कुछ समय के लिए शादी करके बाद में छोड़ देते थे। राहतकर्मी उनके फोन नंबर मांगते थे और उन्हें घर ले जाते थे। विधवा और तलाकशुदा महिलाएं निशाने पर ज्यादा होती थीं।द इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी ने ऐसा ही सर्वे जून 2015 में किया था जिसमें 190 महिलाएं और लड़कियों से पूछताछ हुई थी। सर्वे के अनुसार 40 फीसदी महिलाओं ने माना था कि मदद के बदले वो यौन हिंसा की शिकार हुई थीं। सर्वे का निष्कर्ष था कि दक्षिण सीरिया में यौन हिंसा व्यापक चिंता का विषय है।

इसके अलावा भी तमाम ऐसी बातें है जिसको हम लिख या बता नही सकते क्योंकि हर वो घृणित तस्वीर जिसका सीरिया की जनता उदाहरण बनता जा रही है जिसको दरिंदगी की सबसे घिनौनी तस्वीर कहेगें। कहते है कि किसी भी चीज का अंत होता है लेकिन यहां तो युद्ध के आठ वर्ष ऐसे बीते चुके मानो किसी देश में तरक्की का कोई बहुत बड़ा प्रोजक्ट आ रहा हो। कभी कभी तो यहां की खबरें लिखते वक्त ऐसा लगने लगा कि किसी डरावनी फिल्म की स्क्रीप्ट लिख रहे हो। सबसे दुखदायी यह है कि यदि आज इतनी कम जनसंख्या वाले देश पर नियंत्रण लगाना इतना मुश्किल है तो यदि अधिक जनसंख्या वाले देशों का क्या होगा। यूनस्को के बावजूद भी यदि यह युद्ध शांत नही हो पा रहा तो निश्चित तौर पर देश व जनता ऐसी संस्थाओं को गंभीरता से लेना बंद कर देगी। इंसान की कीमत व स्वतंत्रता को न समझने वाले हर उस तानाशाह पर नियंत्रण करना होगा जो कलयुग में राक्षस का रोल निभा रहा है वरना हम आज भी कहेगें कि हम इंसानियत के सबसे बुरे दौर में पैदा हुआ हैं।

 

 

 

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