54वां पावन अवतार दिवस : खुद खुदा ‘‘सतगुरु’’ बन अनामी से आए

Dera Sacha Sauda, Gurmeet Ram Rahim, Meditation

आए रूहानी रहबर

पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन ‘अवतार दिवस’ पर समस्त साध-संगत को सच कहूँ परिवार की ओर से हार्दिक बधाई

‘‘मिट गया अंधेरा, ऐसी हुई रूशनाई। डॉ. एमएसजी के रूप में, रब्बी जोत आई। जो भी दर्शन पाए, खुशियों में नाचे गाए। देख नूरी स्वरूप दिल खिल-खिल जाए। प्यारे इतने हैं, पिया मन भाए जी। शहंशाह जी दर्श दिखाएं जी।।’’

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संत महापुरुषों का आगमन सदा से ही सृष्टि कल्याण व जीवोद्धार के लिए होता आया है। जब-जब मानव लोक में बुराइयों का दायरा बढ़ा तब-तब संत आगमन हुआ, इतिहास इस बात का गवाह रहा है। आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण जी व श्रीरामचंद्र जी ने अवतार लिया। बिछुड़ी हुई रूहों को मालिक से मिलाने के लिए, समाज से बुराइयों, कुरीतियों को दूर करने के लिए संत अवतार के रूप में 15 अगस्त 1967 को राजस्थान प्रांत के जिला श्रीगंगानगर के एक छोटे से गांव श्रीगुरूसर मोडिया में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इस धरा पर अपने पावन चरण टिकाए। आप जी ने अशांत, विवेकहीन, दुर्विचारों की गंदगी को साफ कर समाज को खुशहाली की एक नई राह देने का कार्य किया। पीड़ितों के दु:ख को अपना दु:ख मानकर उसे दूर करने का बीड़ा उठाकर मर रही इन्सानियत को पुनर्जीवित किया। रूहानी संत इन्सान का रूप धारण कर सृष्टि पर आते हैं और अपने वचन-कर्म से मानवता पर अनगिनत उपकार करते हुए उनका उद्धार करते हैं। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन सान्निध्य में डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु वर्तमान समय में रक्तदान, पौधारोपण, नेत्रदान, देहदान, वेश्यावृत्ति उन्मूलन, किन्नर उत्थान, नशों व भ्रूण हत्या रोकने, गरीबों को मकान बनाकर देने, बीमारों का इलाज करना, प्राकृतिक आपदाओं में मदद करना सहित मानवता भलाई के 135 कार्य निरंतर कर रहे हैं जिसकी मिसाल विश्व पटल पर अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।

23 वर्ष आपके, फिर करेंगे ‘अपने’ काम

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का पावन अवतार 15 अगस्त 1967 को राजस्थान प्रांत के जिला श्रीगंगानगर के एक छोटे से गांव श्रीगुरूसर मोडिया में हुआ। आप जी का जन्म परम पूज्य माता नसीब कौर जी इन्सां व परम पूज्य बापू स. मग्घर सिंह जी नंबरदार के घर हुआ। पूजनीय माता-पिता जी प्रारंभ से ही ऊंचे एवं धार्मिक ख्यालों के धनी इंसान थे। यही वजह रही कि आप जी हर समय हर एक की सहायता करने के लिए तैयार रहते। घर में सुविधाओं का कोई अभाव नहीं था परन्तु संतान प्राप्ति की इच्छा पूजनीय माता-पिता जी को हर वक्त कचोटती रहती। गांव में रहने वाले संत त्रिवेणी दास जी के साथ पूजनीय बापू जी का शुरू से ही बहुत प्रेम-प्यार था। पूजनीय बापू जी जब भी उनसे औलाद प्राप्ति की इच्छा बारे बात करते तो वे हर बार एक ही उत्तर देते-‘फिक्र न करो जी, आप जी के घर ऐसा-वैसा बच्चा जन्म नहीं लेगा, बल्कि वह तो मालिक का अपना ही रूप होगा, परंतु वह आएगा तब जब परमात्मा खुद उसे भेजेगा।’ करीब 18 सालों के लंबे इंतजार के बाद आखिर वो घड़ी आ गई जिसके लिए दुनिया भी पलकें बिछाए बैठी थी। सतगुरू के अवतार धारण से चारों दिशाएं भी शंखनाद कर उठी। संत त्रिवेणी दास जी ने पूजनीय बापू जी को कुल मालिक के रूप में मिली पुत्र रत्न की सौगात पर बधाई देते हुए कहा, यह आप जी के पास 23 साल की उम्र तक रहेंगे, उसके बाद ये (पूज्य गुरु जी) उस मालिक के पास चले जाएंगे।

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डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने सन् 1960 में चोला (बॉडी) बदलने के समय फरमाया था कि हम ठीक सात साल बाद फिर इस धरा पर आएंगे। ये वचन हूबहू उस समय साक्षात हुए जब पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ठीक 7 साल बाद 15 अगस्त, 1967 को राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर के गांव श्री गुरूसर मोडिया की पावन धरा पर अवतार धारण किया।

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15 अगस्त सन् 1967 को शाह सतनाम जी धाम सरसा में सुबह के समय, पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज मजलिस के लिए तेरावास (गुफा) से बाहर आए, चेहरे पर विशेष रूहानी तेज, मंदमंद मुस्कान आते ही सेवादारों को हुक्म फरमाया, ‘‘आज स्टेज का मुंह पश्चिम की ओर करो, बेपरवाह मस्ताना जी ने जिस तीसरी बॉडी के लिए वचन किए थे, उस ताकत ने आज इधर (अंगुली से पश्चिम दिशा की ओर इशारा करते हुए) जन्म लिया है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने ये भी वचन फरमाए थे कि ‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’ जो हमेशा चरितार्थ होते रहेंगे।

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सन् 1959 की बात है एक दिन पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज सुबह 10 बजे डेरा सच्चा सौदा आश्रम में लगी बगीची में टहल रहे थे। इस दौरान पूज्य सार्इं जी के पीछे-पीछे भक्त खेमचंद व चार अन्य सेवादार भी चल रहे थे। चलते-चलते भक्त खेमचंद ने कहा कि सार्इं जी! हमारा दिल तो नहीं चाहता, परन्तु पूछना चाहते हैं कि आपके बाद यहां क्या बनेगा। पूज्य बेपरवाह जी ने खेमचंद की तरफ नूरी मुख करके फरमाया, ‘‘ खेमा कैसे ? तुम्हारी बात हमारी समझ में नहीं आई’’ खेमचन्द ने कहा कि सार्इं जी! आप के बाद यहाँ कहीं पूजा का स्थान न बन जाए। जिस प्रकार अन्य धार्मिक स्थानों में लोग पैसे रखकर माथा टेकते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं उसी प्रकार यहां भी न होने लग जाए। यह बात सुनकर पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज जोश में आकर बोले, ‘‘कितने वर्षांे से तू हमारे साथ रहता है। तुमने हमें आदमी ही समझा है। यहाँ जो सच्चा सौदा बना है, यह किसी आदमी का बनाया हुआ नहीं है। यह खुद-खुदा सच्चे पातशाह के हुक्म से बना है, खुद-खुदा के हाथों से बना है। जब तक धरती आसमान रहेगा, सच्चा सौदा कायम रहेगा’’

ममतामयी छांव तले पले सतगुरू

पूज्य गुरु जी का पूरा बचपन पूजनीय बापू जी और पूजनीय माता जी की ममतामयी प्यार की छांव तले गुजरा। आपजी को बचपन से ही कसरत का बहुत शौक था। बचपन के दिनों में ही आपजी सैकड़ों उठक-बैठक लगा लेते थे। पूज्य गुरु जी के बाल मुख से ईश्वरीय नूर महकता रहता। जो भी कोई आपजी को एक टक निहार लेता तो बस देखता ही चला जाता। पूज्य बापू जी तो आपको कंधों पर बिठाकर गांव का चक्कर लगाते, खेतों में ले जाते। पूज्य बापूजी गांव के नबंरदार होने के कारण उनकी पहचान ‘जिसके कंधों पर बेटा सवार वही गांव का नबंरदार’ बन गई। पूज्य गुरूजी को खेलों का शौक होने के कारण कभी कभार घर लौटने में देर हो जाने पर पूज्य माता-पिता जी बैचेन हो उठते।

‘भाई! मुहुर्त तो नंबरदार जी के लड़के से ही करवाएंगे’

एक बार गाँव में पानी के लिए डिग्गी बनाने के लिए विचार हुआ। डिग्गी के निर्माण कार्य के उद्घाटन को लेकर पूरे गांव ने फैसला किया कि संत त्रिवेणी दास जी से पहला टक लगवाकर कार्य शुरू करवाया जाए। गांववासी संत त्रिवेणी दास जी के पास इसके लिए विनती करने पहुंचे तो संत जी ने कहा, भाई! मुहुर्त तो नंबरदार मग्घर सिंह जी के लड़के (पूज्य गुरु जी) से करवाएंगे। उस समय पूज्य गुरु जी की उम्र केवल पाँच वर्ष थी। गांववासियों के यह कहने पर कि नंबरदार साहब के लड़के की तो अभी उम्र बहुत छोटी है तो त्रिवेणी दास जी ने फिर से अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, भाई! टक तो उन्हीं से ही लगवाएंंगे। आपको अभी उनके बारे में पता नहीं कि वह कितनी महान हस्ती हैं। इस पर गांववालों ने बाल अवस्था में पूज्य हजूर पिता जी के पवित्र कर-कमलों से खुदाई कार्य का पहला टक लगवाकर डिग्गी का शुभारंभ करवाया। संत त्रिवेणी दास जी ने इस दौरान फिर कहा कि भाई हम डिग्गी का मुहुर्त जिस महान हस्ती से करवा रहे हैें उस हस्ती का समय आने पर पता चलेगा।

रूहानी बाल अठखेलियों ने सबको बनाया मस्त

बचपन की अठखेलियों के बीच तीन-चार पाव मक्खन खा जाना, आधा किलो घी पी जाना, मण भर के बाट को दूर तक फेंक देना, छोटी उम्र में ही घर के कामकाज जैसे खेती-बाड़ी के कार्य को संभाल लेना व पूज्य माता जी से मिली हर वस्तु को अपने सहपाठियों में बांट कर खाना, जरूरतमंद की सहायता करने को हमेशा तैयार रहना आदि कार्य सामान्य जन से अलग करते हुए आपजी के रब्बी गुणों को प्रदर्शित करते रहे लेकिन कोई समझ नहीं पाया। आपजी खेतीबाड़ी में बाल्यावस्था में जुट गये। ऐसे में अनेकों बार आपजी ट्रैक्टर चलाते हुए नजर भी न आते और लोगों को लगता कि बिना चालक के ट्रैक्टर दौड़ा चला आ रहा है। पूज्य गुरूजी क्रिकेट, कब्बड्डी, बैडमिंटन, फुटबाल, बास्केटबॉल व एथलैटिक्स की विभिन्न स्पर्धाओं में न केवल भाग लेते थे बल्कि अपनी टीम का नेतृत्व भी किया करते। खेलों के साथ-साथ पूज्य गुरूजी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते। बचपन से कार्य के प्रति लग्न व कार्यशीलता जैसे गुणों के चलते आप जी ने केवल आठ वर्ष की आयु में ही कृषि का कार्य अपने कंधों पर ले लिया। आपजी खेतों में ट्रेक्टर का कार्य भी खुद ही करते। जिस काम को आप जी शुरू कर लेते, उसे पूरा करके ही दम लेते। आप जी बचपन से ही हँसमुख स्वभाव के मालिक रहे हैं। जो भी कोई आप जी के संपर्क में आता, वह आप जी के इस अनोखे व ईश्वर प्रदत गुण से इतना प्रभावित होता कि आप जी के साथ बातें करता रहता। वास्तविकता तो यही थी कि उन्हें आप जी के नूरानी नूर से एक अनोखी खुशी, आनंद और ईश्वर के प्यार की महक आती रहती।

दुनिया को जोड़ रहे राम-नाम से

पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां जीवों को दुनियावी नशों को त्यागकर राम नाम का नशा बताते हैं। डेरा सच्चा सौदा आकर पूज्य गुरू जी से गुरूमंत्र की अनमोल दात ग्रहण कर करोड़ों युवाओं ने अपना जीवन संवारा है। ये पूज्य गुरू जी की पावन शिक्षाओं का ही असर है कि यहां आने वाले युवा खुद भी राम नाम का गुणगान करते हैं और दुनिया को भी राम नाम से जोड़ रहे हैं। यहां आने वाले बड़े-बड़े नशेड़ी सिर्फ राम नाम की दवाई के बलबूते ही नशा छोड़ गए। कभी लोगों की घृणा का पात्र रह चुके उन युवाओं की जिंदगी आज दूसरों के लिए सबक बनी है।

जब रब्ब ने रब्बी जोत को पास बैठाया

पूज्य गुरु जी ने बाल्यावस्था में ही रामनाम की धुन को पकड़ लिया। केवल सात साल की उम्र में 31 मार्च 1974 को मासिक सत्संग पर परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम शब्द प्राप्त कर लिया। पूजनीय परम पिता जी ने आपजी को गुरूमंत्र देते समय बुलाकर अपने पास बिठाया और अथाह ईश्वरीय प्रेम प्रदान हुए करते वचन फरमाए, बच्चा अग्गे नूं आ जाओ, केहड़ा पिंड है, और तां सब ठीक है? अर्थात कुल मालिक पूजनीय परम पिता जी ने अपने गद्दीनशीन को पहले ही ढूंढ लिया था।

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महान् त्याग व गद्दीनशीनी

पूज्य गुरु जी ने घर परिवार का त्याग करते हुए 23 सितम्बर 1990 को अपना सर्वस्व पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के आदेश पर परमपिता जी के चरणों में समर्पित कर दिया। छोटे से साहिबजादे व छोटी साहिबजादियों को देखकर हर किसी का दिल पसीज जाता लेकिन पूज्य गुरू जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल के वचन को ही अपना सब कुछ समझा और मानव कल्याण व जीवोद्धार के लिए डेरा सच्चा सौदा में आ गए। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने साध-संगत के समक्ष रूहानी मजलिस में आपजी को डेरा सच्चा सौदा का गद्दीनशीन घोषित करते हुए हुक्मनामा जारी कर अपना रूप घोषित कर दिया। गद्दीनशीनी के बाद आप जी ने डेरा के चहुंमुखी विकास व साध-संगत की सुविधाओं की ओर ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया। पूज्य गुरूजी ने रूहानी सत्संग के दौरान साध-संगत को आने वाली मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए पूजनीय परम पिता जी के हुक्मानुसार परम पिता शाह सतनाम जी धाम की स्थापना की। पूज्य गुरूजी के पावन नेतृत्व व रहमत का ही कमाल था कि लगभग 50-50 फीट ऊंचे टीले दिनों में ही खत्म हो गए और कुछ वर्षों में बाग-बगीचों का रूप धारण कर गए। उड़ीसा का चक्रवात, गुजरात का भूकंप व उदयपुर के आदिवासी लोगों की दुर्दशा को देखने के बाद पूज्य गुरू जी ने सेवादारों की अनोखी फोर्स शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग की स्थापना की। फोर्स की स्थापना को मनमुखी लोगों ने खूब चर्चा का विषय बनाया, लेकिन उन्हें क्या पता था कि मानवता के पुंज द्वारा गठित की गई यह फोर्स अपनी स्थापना को स्वयं ही सार्थक कर देगी। आदिवासी पुनरूत्थान, राजस्थान में पड़ा सूखा, उड़ीसा की सुनामी व हरियाणा व पंजाब में आई बाढ़ के दौरान इन जांबाजों ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जो कार्य किया वह अवर्णनीय है।

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मानवता भलाई के विश्व कीर्तिमान

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 6 करोड़ लोगों को बुराइयों की दलदल से निकालकर मानवता, सच्चाई व नेकी के मार्ग चलाया। पूज्य गुरु जी 135 मानवता भलाई कार्य शुरू कर सामाजिक व नैतिक क्रांति का आगाज किया। जो आज पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। मानवता भलाई कार्यों में आज डेरा सच्चा सौदा के नाम एक-दो नहीं बल्कि 79 गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स व एशिया बुक आॅफ रिकॉडर्स दर्ज हैं। अब तक मिले 79 वर्ल्ड रिकॉर्डों में से पूज्य गुरू जी के नाम रक्तदान, नेत्रदान, महा सफाई अभियान, पौधारोपण, रक्तचाप (ब्लडप्रैशर) जांच, कोलेस्ट्राल जांच, डाइबीटिज जांच व दिल की इको जांच सहित विभिन्न क्षेत्रों में गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स दर्ज हैं। जिनमें से पर्यावरण संरक्षण मुहिम के तहत दुनियाभर में किए गए पौधारोपण में चार विश्व रिकॉर्ड भी शामिल हैं। वर्ष 2009 से शुरू हुए पौधारोपण अभियान के सफर के तहत अब तक डेरा सच्चा सौदा के पर्यावरण प्रहरियों द्वारा अब तक सवा चार करोड़ के करीब पौधे रोपित किए जा चुके हैं तथा उनकी सार-संभाल का सिलसिला लगातार जारी है।

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महासफाई अभियान चकाचक हुए 32 शहर

धरा को स्वच्छ व साफ-सुंदर बनाने के लिए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 21 सितंबर 2011 को अपने पावन कर कमलों से देश की राजधानी दिल्ली से ‘हो पृथ्वी साफ, मिटें रोग अभिशाप’ महासफाई अभियान का आगाज किया जिसके अब तक 32 चरण पूरे हो चुके हंै। इन चरणों में साफ हो चुके शहरों में दिल्ली,जयपुर, बीकानेर, गुड़गांव, जोधपुर, सरसा, कोटा, होशंगाबाद, पुरी (उड़ीसा), हिसार, ऋषिकेश, गंगा जी, हरिद्वार, अजमेर, पुष्कर, रोहतक, फरीदाबाद, नरेला, करनाल, कैथल, नोएडा, नई दिल्ली, सीकर, अलवर, दौसा, सवाई माधोपुर, श्योपुर व टोंक, मुंबई व पानीपत, जयपुर, करनाल व दिल्ली शामिल हैं। इन सफाई महाभियानों की बदौलत न केवल ये 32 शहर पूरी तरह से चकाचक हुए अपितु यहां के नागरिकों ने भी अपने घर व आस-पास साफ-सफाई रखने का लिखित में संकल्प लिया। सफई अभियानों के दौरान सेवादारों का हौंसला देखते ही बन रहा था।

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बेटियों को दिलाया समानता का अधिकार, नारी उत्थान की दिशा में उठाए ऐतिहासिक कदम

प्राचीनकाल से ही नारी समाज में बराबर का दर्जा नहीं पा सकी है। मध्य काल और आधुनिककाल में नारी जाति ने चाहे शिक्षा, खेलों व अन्य क्षेत्रों में खुद को पुरूष के समानांतर ला खड़ा किया हो लेकिन मानवीय सोच ने उसे आज तक पूरी तरह इस समानता के रूप में स्वीकार नहीं किया है। यही कारण है कि गर्भ में मादा भ्रूण की हत्या करना व लड़के के बगैर परिवार को अधूरा मानने की सोच आज भी पुरूष प्रधान समाज में व्याप्त है। पूज्य गुरु जी ने इन मानवीय कुरीतियों को दरकिनार करते हुए ऐसी लड़कियों को, जिन्हें या तो कोख में ही मरवा दिया जाना था, या फिर समाज में दर-दर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया जाना था, अपनी बेटियों का दर्जा दिया और उनके लिए शाही बेटियां बसेरा की स्थापना की। आज वही लड़कियां शिक्षा और खेलों में राष्टÑीय, अंतरराष्टÑीय स्तर पर कामयाबी की बुलंदियां छू रही हैं। पूज्य गुरू जी ने महिलाओं को समानता का अधिकार देने के लिए एक और मुहिम शुरू की है, जिसके तहत लड़कियां भी माँ-बाप की अर्र्थी को कंधा देने की अधिकारी हैं। समाज में पूर्व में यह अधिकार केवल पुत्रों को ही प्राप्त था। डेरा सच्चा सौदा के इस प्रयास से अब बेटियां भी माँ-बाप की अंतिम क्रिया-कलापों में बराबर की भागीदार बन रही हैं। इतना ही नहीं वेश्यावृत्ति की दलदल में धंसी युवतियों को भी पूज्य गुरु जी ने बाहर निकालकर उन्हें ‘शुभ देवी’ बनाया और पिता के रूप में अपना नाम देकर उनका कन्यादान किया। आप जी ने ‘कुल का क्राऊन’ मुहिम का भी शुभारंभ कर समाज को नई दिशा दी। इस मुहिम के तहत अब बेटियां बरात लेकर आती हैं और दुल्हे को अपने घर ले जाती हैं। ‘

Humanity

-संकलन: विजय शर्मा, डिजाईनिंग: रोहित सैनी

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