असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर मचा घमासान

Citizen Register, Assam

असम सरकार ने कड़ी सुरक्षा के बीच असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे एवं अंतिम मसौदे को जारी कर दिया है, ताकि अवैध तौर पर वहां पर रह रहे लोगों का पता लगाया जा सके। हालांकि सरकार ने यह साफ कर दिया है कि अभी लोगों को इसमें अपना नाम शामिल कराने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाएगा और फिलहाल किसी को असम से निकाला नही जाएगा। रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इंडिया शैलेख ने कहा कि 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार छह सौ सात लोगों को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में योग्य पाकर शामिल किया गया है। करीब 3 करोड़ 29 लाख लोगों ने इस सूची के लिए आवेदन किया था। शैलेश ने कहा कि जिन लोगों का नाम इस सूची में शामिल नहीं है उन्हें पर्याप्त मौका दिया जाएगा ताकि वह अपने दावे और विरोध दर्ज करा सकें।

असम में करीब तीन साल से एनआरसी को पूरा करने की प्रक्रिया चल रही थी। इस बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि 30 जुलाई को सिर्फ फाइनल ड्राफ्ट या मसौदा प्रकाशित किया गया है। इसके बाद सभी तरह के दावों और आपत्तियों पर विचार होगा और उसके बाद अंतिम एनआरसी प्रकाशित किया जाएगा। मसौदे के प्रकाशन के मद्देनजर असम में जबरदस्त सुरक्षा बढ़ा दी गई है। असम के पड़ोसी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय और मणिपुर के साथ ही सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी गयी है।

एनआरसी की दूसरी सूची जारी होते उन 40 लाख लोगो में भय व्याप्त हो गया है जिनका नाम सूची में आने से रह गया है। सूची में शामिल होने से रहे लोगों में किसी एक जाति या धर्म के लोग नहीं बल्कि हिन्दु-मुस्लिम सभी शामिल हैं। सभी लोगों के सामने मुंह बाये यक्ष प्रश्र खड़ा है कि अब हम जायें तो कहां जायें। अब हम क्या करेगें। वर्षो से असम में रह रहें लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि एक ही परिवार के कुछ लोगों का नाम सूची में शामिल हो गया तो कुछ को शामिल क्यों नहीं किया गया। सरकार के पास भी इस का कोई जवाब नहीं हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि 30 जुलाई को जो लिस्ट जारी हुयी है वह महज एक ड्राफ्ट है। उन्होंने कहा था कि फाइनल ड्राफ्ट को जारी करने से पहले सभी भारतीयों को अपनी नागरिकता साबित करने का मौका दिया जाएगा। सिंह ने कहा था कि चिंता की कोई बात नहीं है, एनआरसी के जारी होने के बाद प्रभावित लोगों को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज कराने का पूरा मौका मिलेगा। असम सरकार उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी जिनके नाम एनआरसी की सूची में नहीं आये हैं।

एनआरसी के कोआॅर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने कहा है कि ड्राफ्ट में जिनके नाम नहीं है वो घबराएं नहीं बल्कि संबंधित सेवा केंद्र पर जाएं और वहां मिलने वाले फॉर्म को भरें। ये फॉर्म 7 अगस्त से 28 सितम्बर के बीच उपलब्ध होंगे। लेकिन अधिकारियों को उन्हें इसका कारण बताना होगा कि ड्राफ्ट में उनके नाम क्यों छूटे। इसके बाद उन्हें एक अन्य फॉर्म भरना होगा जो 30 अगस्त से 28 सितम्बर तक उपलब्ध होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने असम में बने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह गए 40 लाख से ज्यादा ऐसे लोगों लोगों को भरोसा दिलाते हुये कहा है कि उनको चिंता करने की जरूरत नहीं है। अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है वह इन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा है कि वह इन 40 लाख लोगों की आपत्तियों को बिना किसी भेदभाव के दर्ज करे।

जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस रोहिंगटन एफ नरीमन की बेंच ने कहा कि सूची के बाहर रह गए लोगों को नियम के मुताबिक नोटिस भेजकर उनका पक्ष सुना जाना चाहिए। 1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद भी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश से असम में लोगों का अवैध तरीके से असम में आने का सिलसिला जारी रहा। इससे वहां पहले से रह रहे लोगों को परेशानियां होने लगीं। जिसके बाद असम में विदेशियों का मुद्दा तूल पकड़ने लगा। वर्ष 1979 से 1985 के बीच 6 सालों तक असम अवैध घुसपैठियों के खिलाफ एक बड़ा छात्र आंदोलन चला। उस दौरान यह सवाल उठा कि यह कैसे तय किया जाए कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन विदेशी।

15 अगस्त 1985 को असम में आॅल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के तहत ही 25 मार्च 1971 के बाद असम आए लोगों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाना तय हुआ। 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से भी दाखिल हो गए लोगों का नाम नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजनशिप में जोड़ा जाएगा। लेकिन यह विवाद सुलझने की बजाय बढ़ता गया। बाद में यह मामला कोर्ट पहुंच गया। वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में आईएएस अधिकारी प्रतीक हजेला को एनआरसी अपडेट करने का काम सौंपा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2015 में असम में नागरिकों के सत्यापन का काम शुरू किया गया। तय हुआ कि उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों। इसके अलावा 12 दूसरे तरह के सर्टिफिकेट या कागजात जैसे जन्म प्रमाण पत्र, जमीन के कागज, स्कूल-कॉलेज के सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, अदालत के पेपर्स भी अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए पेश किए जा सकते हैं।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर टीएमसी नेता एस.एस. रॉय ने कहा कि केन्द्र सरकार जानबूझकर 40 लाख लोगों को धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के आधार पर एनआरसी सूची से हटा रहा है। इसके गंभीर नतीजे असम में हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में नागरिकता से वंचित लोगों को बंगाल में बसाने तक की बात कही है। ममता दीदी तो असम के नागरिकता के मुद्दे को लेकर इतने गुस्से में है कि उन्होने केन्द्र सरकार को गृह युद्व होने तक की धमकी दी है। ममता बनर्जी के साथ समाजवादी पार्टी व अन्य विपक्षी दलों के सांसद राज्यसभा को बाधित कर रहे हैं।

उधर तृणमूल कांग्रेस पार्टी की असम इकाई के अध्यक्ष व पूर्व विधायक द्विपेन पाठक प्रमुख नेता दिगंता सैकिया, प्रदीप पचानी ने एनआरसी के प्रति पार्टी सुप्रीमों ममता बनर्जी के रुख के खिलाफ पार्टी से इस्तीफा दे दिया। तृणमूल कांग्रेस के रुख पर असम के कई दलों और संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ब्रह्मपुत्र घाटी के चारैदेव और सोनितपुर जिलों में छात्र संगठनों ने ममता बनर्जी के पुतले फूंकते हुये ममता बनर्जी को असम के मामले में दखल नहीं देने की चेतावनी दी है।

वहीं भाजपा का कहना है कि असम समझौता कांग्रेस के नेता राजीव गांधी का किया हुआ था। अपने राजनीतिक फायदे के लिये राजनीतिक दलों ने इसे इतने समय से लटकाये रखा था। भाजपा सरकार ने हिम्मत कर इस पर समयबद्ध कार्यवाही की है। जो भारतीय नागरिक हैं उन्हे कहीं नहीं जाना पड़ेगा।

असम के इस शोर को सारी पार्टियां अपनी सियासत के लिए इस्तेमाल करने में लग चुकी हैं। सियासत अब घुसपैठियों बनाम भारतीयों की होगी। लेकिन जहां यह लागू हुआ है उस असम में मातम छाया हुआ है। असम में ऐसे कई लोग है जिनका नाम एनआरसी के ड्राफ्ट में नहीं है। एक परिवार के कुछ सदस्यों का नाम तो लिस्ट में है लेकिन कुछ का नहीं है। असम में रहने वाले एक परिवार के लोगों का कहना है कि सभी भाईयों के पास भारत के नागरिक होने का प्रमाण पत्र है।

सबने एक ही प्रमाण पत्र दिये थे लेकिन दो भाईयों का लिस्ट में नाम है बाकी का गायब है। इस सूची में सेना में कार्यरत जवान, बहुत से सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, विभिन्न राजनीतिक दलो के सदस्यों का नाम भी शामिल होने से रह गया है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार एनआरसी के जरिए असम के मुसलमानों को निशाना बना रही है। दिल्ली में बैठकर जो लोग इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश में लगे हैं। वो ये क्यों नहीं जानते कि उन 40 लाख लोगों की सूची में हिंदू-मुस्लिम अमीर,गरीब सभी जाति,धर्म,के लोग शामिल हैं।

रमेश सर्राफ धमोरा

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