पर्यावरण संरक्षण में विकसित देशों को सहयोग करना होगा

Environment
पर्यावरण आधारित विकास की पहल हो

सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मामले में कुछ प्रगति नहीं हो पा रही है। ऐसे में जी-20 एक ऐसा वैकल्पिक मंच बन गया है, जहां सभी महत्वपूर्ण देश, जिसमें विकसित और विकासशील दोनों शामिल हैं, अहम मुद्दों पर वार्ता करते हैं। यहां आर्थिक मुद्दे सबसे महत्वपूर्ण तो हैं ही, जलवायु परिवर्तन जैसे मसलों पर भी चर्चा होती है। ग्लासगो में कॉन्फ्रेंस भी शुरू हो गयी है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी समेत अनेक देशों के प्रमुख शामिल हो रहे हैं। जी-20 की चर्चा में राजनीतिक, क्षेत्रीय, सामरिक मुद्दे भी प्रमुखता से शामिल होते हैं। इस दौरान अनेक देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता का भी अवसर मिल जाता है। कोविड के बाद पहली बार बड़े स्तर पर बैठक आयोजित हो रही है और तमाम देशों के नेता वहां पहुंचे हुए हैं। हालांकि, कुछ देशों के प्रमुख बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं।

रूस के राष्ट्रपति पुतिन नहीं पहुंचे, उनकी वर्चुअल माध्यम से मौजूदगी रही। अभी वैक्सीन उत्पादन की स्थिति बेहतर हो गयी है। शुरू में हम सक्रियता से वैक्सीन डिप्लोमेसी में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन कोविड की दूसरी लहर के कारण इसे रोकना पड़ा। हमें अपनी प्राथमिकता में बदलाव करना पड़ा। हालांकि, देश में अब टीकाकरण बेहतर स्थिति में है और संक्रमण के मामलों में काफी गिरावट आ चुकी है। रोजाना के आंकड़े गिरकर 13 से 14 हजार के आसपास आ गये हैं। शुरू में लगा कि काफी मुश्किल आनेवाली है, क्योंकि उस वक्त वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी। भारत की अपनी कोवैक्सीन को अभी तक डब्ल्यूएचओ से मंजूरी नहीं मिली है। ऐसा लगता है कि प्रतिस्पर्धी कंपनियां वाणिज्यिक हितों के कारण इसे किसी तरह रोकने में लगी हुई हैं। हालांकि, इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए डब्ल्यूएचओ से इसे जल्द मंजूरी मिल सकती है। अहम बात आपूर्ति शृंखला की है। क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला में चीन की काफी दखल हो चुकी है। वहीं भारत की अपनी घरेलू प्राथमिकताएं और चिंताएं रही हैं।

मार्केट साझा करने पर बाहर हमारी कंपनियों के लिए अनुकूल हालात नहीं होंगे, तो उससे कंपनियां कह सकती हैं कि हमें क्या फायदा हुआ। भारतीय कंपनियां केवल घरेलू मार्केट तक सक्रिय रही हैं। बाहर के बाजार में जाना आसान नहीं होता है। मुक्त व्यापार समझौता करके हम मार्केट तक पहुंच सकते हैं, लेकिन वहां बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन होता है। अमेरिका में भी यही दिक्कत आ रही है, क्योंकि विनिर्माण लागत उनकी भी बहुत अधिक है और हमारे यहां भी। सुधार के लिए जरूरी है कि आपूर्ति शृंखला में साझेदारी बनायी जाए। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ कोयला आधारित अर्थव्यवस्था से नवीकरणीय ऊर्जा में बदलाव को भी स्वीकार करना है। भारत का पक्ष है कि विकसित देशों ने पर्यावरण को अपेक्षाकृत अधिक नुकसान पहुंचाया है, अगर इसमें बदलाव चाहते हैं, तो विकसित देशों को सहयोग करना होगा।

 

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