मालिक के प्यार में चलना मुश्किल, लेकिन असंभव नहीं

Anmol Vachan

सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं, कि इस घोर कलियुग में मालिक के प्यार-मोहब्बत में चलना बड़ा मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है। मुश्किल इसलिए है, क्योंकि काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया ऐसे दुश्मन हैं, जो नजर नहीं आते, लेकिन बहुत बड़ा घात करते हैं। ये इन्सान को दु:खी, परेशान रखते हैं और इनके साथ-साथ मनमते लोग भी होते हैं। जब इन्सान इस सारे चक्रव्यूह में फंस जाता है तो मालिक का प्यार-मोहब्बत उसे बकबका लगने लगता है और दुनियादारी का साजो-सामान बड़ा मीठा लगता है।

पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि मालिक का प्यार-मोहब्बत, उसका नाम दोनों जहान में हमेशा अमर रहने वाला है। हमेशा मस्तो-मस्त रहने वाला है। कुनैन कोई नहीं लेना चाहता, लेकिन जब लेनी पड़ती है, तो बुखार का खात्मा कर देती है। पहले कुनैन बहुत कड़वी होती थी। इसलिए दूध को मीठा करके उसके साथ कुनैन लिया जाता था। आजकल बड़ा आसान है, कुनैन पर पहले से ही चीनी का थोड़ा लेप चढ़ा होता है। उसी तरह पहले समय में अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम लेना बड़ा मुश्किल होता था। सारी-सारी उम्र उसकी याद में बैठना पड़ता था और तब कहीं जाकर मालिक के प्यार-मोहब्बत की एक झलक मिलती थी। इस कलियुग में संतों ने आसान तरीका बना दिया, तीन शब्द बना दिए। आप उनका अभ्यास करें। उठते-बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए अभ्यास करें, तो जो उम्र बीत जाने के बाद मिलता था, वो कुछ घंटों की भक्ति-इबादत से भी हासिल किया जा सकता है।

सुमिरन के पक्के बनो

आप जी फरमाते हैं कि कलियुग में इन्सान को गम, दु:ख, दर्द, परेशानियों का सामना तो करना पड़ता है। मन-इंद्रियां बड़े फैलाव में हैं, लेकिन इसके साथ ही कलियुग में मालिक का नाम जपना बड़ा आसान भी है। आप किसी भी तरीके से नाम का जाप करें, उसका असर लाजमी होगा और उसका फल आपको जरूर मिलेगा। इसलिए आप चलते, बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए मालिक के नाम का सुमिरन करें। सुमिरन करने से ही मालिक का प्यार बढ़ता है। आप जी फरमाते हैं कि आप बुराई, निंदा करने वालों का साथ देने लग जाते हैं तो सारी करी-कराई भक्ति का नाश हो जाता है। इन्सान बेचैन, परेशान होने लगता है और मालिक के प्यार से दूर होता चला जाता है।

आप मालिक से ओढ़ निभाना चाहते हैं, तो सुमिरन के पक्के बनो, सेवा करो और दुनियादारी में रहते हुए व्यवहार के सच्चे बनो। ठगी, बेइमानी, भ्रष्टाचार से दूर रहो। निंदा-चुगली से जितना हो सके दूर रहो और यह सब संभव है, जब आप सुमिरन करते हैं। सुमिरन के बिना यह संभव नहीं है। अगर आप सुमिरन नहीं करते तो आपकी मन-इंद्रियां फैलाव में रहेंगी, क्या पता कब दगा दे जाएं। जो लोग तन-मन-धन से परमार्थ करते हैं, उनके लिए भी जरूरी है कि आप भी थोड़ा सुमिरन करें, ताकि आपने जो परमार्थ किया है, वो कई गुणा बढ़े-फूले और इस संसार में रहते हुए आप खुशियों से मालामाल हो जाएं। यह सोने पे सुहागे की तरह है कि आप तन-मन-धन से सेवा के साथ-साथ सुमिरन भी करें। फिर अंदर-बाहर कोई कमी नहीं रहती और अपने-आप अच्छे विचार आते रहते हैं और इन्सान उन अच्छे विचारों पर चलता हुआ एक दिन परमानन्द की प्राप्ति जरूर कर लेता है।

 

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