समर्थन मूल्य से नीचे सरसों बेचने पर मजबूर किसान

Farmer

नयी दिल्ली (एजेंसी)

समर्थन मूल्य पर सरसों खरीद न होने से तिलहन उत्पादक किसान बेहाल हैं और उन्हें 4200 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य से 800-900 रुपए नीचे अपना उत्पाद बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। देश में इस वर्ष सरसों का उत्पादन 87 लाख टन होने की उम्मीद है। सरकार ने सरसों का समर्थन मूल्य 4200 रुपए प्रति क्विटंल तय किया हुआ है लेकिन किसान को मंडियों में 3300..3400 रुपए प्रति क्विंटल के दाम ही मिल रहे हैं। सरकार से किसान जल्द ही समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद शुरू करने की आस लगाये हुए हैं।

राजस्थान के बहरोड के सरसों उत्पादक एक बड़े किसान महेंद्र शेखावत ने बताया कि राज्य की कोटा, भरतपुर, कैरथल अलवर, बांदीकुई, दौसा आदि मंडियों में माल की आवक जोर पकड़ने लगी है लेकिन समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने से किसान को माल 4200 रुपए की तुलना में आठ-नौ सौ रुपए प्रति क्विंटल नीचे 3300-3400 रुपए पर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।

शेखावत ने बताया कि 1990 में देश खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता के निकट आ गया था लेकिन किसानों को तिलहन उत्पादन के लिए प्रेरित करने पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 160 लाख टन पाम आयल और सोयाबीन तेल का आयात करना पड़ रहा है।

घरेलू तिलहनों से मात्र 30 प्रतिशत खाद्य तेल की मांग ही पूरी होती है। पेट्रोलियम पदार्थों के बाद खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए सबसे अधिक विदेशी मुद्रा इनके आयात पर खर्च करनी पड़ रही है। देश में सालाना खाद्य तेल की मांग 230 लाख टन के आसपास है जबकि घरेलू उपलब्धता केवल 70 लाख टन के करीब ही है। उन्होंने कहा कि यदि उस समय से देश में तिलहनों की खेती को बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया गया होता तो आयात पर इतनी अधिक विदेशी मुद्रा खर्च नहीं करनी पड़ती।

मजे की बात यह है कि 1990 में जब देश में प्रति व्यक्ति औसतन खाद्य तेल की खपत सात किलोग्राम सालाना थी और घरेलू तिलहनों से मांग लगभग पूरी कर ली जाती थी। वर्तमान में यह खपत बढ़कर प्रति व्यक्ति 19 किलोग्राम वार्षिक हो गयी। मांग बढ़ने के साथ-साथ देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर नहीं दिया गया और आयात पर आत्मनिर्भरता बढ़ती गयी। उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार ने 15 मार्च से समर्थन मूल्य खरीदने का वादा किया था लेकिन अभी खरीद शुरू नहीं हुई है। वर्ष 2018-19 में सरसों की पैदावार 80 लाख टन थी तो सरकार ने साढ़े आठ लाख टन सरसों की खरीद की थी।

शेखावत ने कहा कि सरकार को नेफेड के जरिये 25 से 30 लाख टन सरसों की खरीद करनी चाहिए। सरसों खराब नहीं होती है। ऐसे में सरकारी खरीद से कमी के दौरान खाद्य तेलों की कमी को पूरा करने में मदद तो मिलेगी ही किसान को भी उसकी उपज के उचित दाम मिल जायेंगे। खाद्य तेल का कारोबार करने वाले जयपुर के व्यापारी राकेश अरोड़ा ने कहा कि देश के किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार को आयातित खाद्य तेलों पर शुल्क बढ़ाना चाहिए।

 

 

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