मुद्दा गायब, राजनीति चमकी

Politics
सांकेतिक फोटो

फिल्मी अभिनेता सुशात सिंह राजपूत की मौत का मामला इतना पेचीदा हो गया है कि मूल मुद्दा जो पुलिस या किसी अन्य जांच एजेंसी की जांच से सुलझना थी, जो अब नजर ही नहीं आ रहा है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वह समय दूर नहीं जब राजनीतिक पार्टियां चुनावों में अपनी जीत-हार के लिए भी इस मुद्दे के नाम पर वोट मांगने से भी गुरेज नहीं करेंगी। मृतक सुशांत सिंह बिहार से संबंधित है। जांच का सामना कर रही रिया चक्रवर्ती बंगाल से है। इससे अलग ब्यानबाजी के कारण महाराष्ट्र सरकार के साथ उलझ रही फिल्मी अभिनेत्री कंगना रानौत हिमाचल प्रदेश से संबंधित है। बिहार में सत्ताधारी भाजपा सुशांत सिंह के परिवार के साथ खड़ी है। कोलकाता कांग्रेस ने रिया चक्रवर्ती के समर्थन में रैलियां निकालने की शुरूआत कर दी है।

महाराष्ट्र में शिवसेना कंगन रानौत को भाजपा के समर्थित होने का इशारा कर रही है। बिहार और पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव नजदीक आ रही हैं। तीनों राज्यों की पार्टियां बॉलीवुड की त्रिकोणीय घटना को अपने-अपने समर्थन में जुटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। हालांकि अभिनेताओं का एक बड़ा और गैर-राजनीतिक दायरा होता है जिसमें मुख्य रूप से उनके प्रशंसक होते हैं लेकिन इस राजनीतिक बयानबाजी के दौर में प्रशंसकों का मंच नहीं नजर आ रहा है और न ही कोई आवाज सुनाई दे रही है। वास्तव में राजनीतिक शोर और मीडिया ट्रायल ने गाड़ी को पटरी से उतार दिया है। अभिनेता की मौत दुख:द मामला है जिसकी गुत्थी बिना किसी पक्षपात से सुलझनी चाहिए थी। महाराष्ट्र की क्षेत्रवादी राजनीति ने भी मामले को पेचीदा कर दिया है।

सुशांत के परिवार के साथ हमदर्दी के नाम पर मामले को उलझाने की बजाय इसकी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। अपने-अपने राज्य के व्यक्ति के लिए भावनात्मक मुहिम चलाना तर्कहीन व मामले की सही जांच को उलझाना है। बेहतर होगा यदि राजनीतिक पार्टियां वोटों का लालच त्यागकर संयम व जिम्मेदारी से काम करें। सुशांत मौत मामले को चुनावी मुद्दा बनाने से गुरेज करना चाहिए। यदि ऐसे मामले में राजनीतिक रोटियां सेकी गई तब यह संवेदनहीनता की एक ओर बुरी मिसाल इतिहास में दर्ज हो जाएगी।

 

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