सामाजिक विकास का स्तंभ है साक्षरता

Literacy is the pillar of social development

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (8 सितम्बर) पर विशेष

लोगों को साक्षरता के महत्व के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 8 सितम्बर को विश्वभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ आज 54वां ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जा रहा है। पहली बार यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 17 नवम्बर 1965 को 8 सितम्बर को ही अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी, जिसके बाद प्रथम बार 8 सितम्बर 1966 से शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने तथा विश्वभर के लोगों का इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष इसी दिन यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। वास्तव में यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ही प्रमुख घटक है।
निरक्षरता को खत्म करने के लिए ईरान के तेहरान में शिक्षा मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान वर्ष 1965 में 8 से 19 सितम्बर तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा कार्यक्रम पर चर्चा करने के लिए पहली बार बैठक की गई थी और यूनेस्को ने नवम्बर 1965 में अपने 14वें सत्र में 8 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस घोषित किया। उसके बाद से सदस्य देशों द्वारा प्रतिवर्ष 8 सितम्बर को ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जा रहा है। मानव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने तथा साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। साक्षरता दिवस के अवसर पर निरक्षरता समाप्त करने के लिए जन जागरूकता को बढ़ावा देने तथा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाता है। यह दिवस लगातार शिक्षा को प्राप्त करने की ओर लोगों को बढ़ावा देने के लिए तथा परिवार, समाज और देश के लिए अपनी जिम्मेदारी को सम’ाने के लिए मनाया जाता है।
दुनियाभर में आज भी अनेक लोग निरक्षर हैं और यह दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत, सामुदायिक तथा सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विश्व में सभी लोगों को शिक्षित करना ही है। साक्षरता दिवस के माध्यम से यही प्रयास किए जाते हैं कि इसके जरिये तमाम बच्चों, व्यस्कों, महिलाओं तथा वृद्धों को भी साक्षर बनाया जाए। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में फिलहाल करीब चार अरब लोग साक्षर हैं लेकिन विड़म्बना यह है कि आज भी विश्वभर में करीब एक अरब लोग ऐसे हैं, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते। तमाम प्रयासों के बावजूद दुनियाभर में 77 करोड़ से भी अधिक युवा भी साक्षरता की कमी से प्रभावित हैं अर्थात प्रत्येक पांच में से एक युवा अब तक साक्षर नहीं है, जिनमें से दो तिहाई महिलाएं हैं। आंकड़े बताते हैं कि 6-7 करोड़ बच्चे आज भी ऐसे हैं, जो कभी विद्यालयों तक नहीं पहुंचते जबकि बहुत से बच्चों में नियमितता का अभाव है या फिर वे किसी न किसी कारणवश विद्यालय जाना बीच में ही छोड़ देते हैं। करीब 58 फीसदी के साथ सबसे कम व्यस्क साक्षरता दर के मामले में दक्षिण और पश्चिम एशिया सर्वाधिक पिछड़े हैं।
सामाजिक प्रगति प्राप्ति पर ध्यान देने के लिए 2006 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का विषय ‘साक्षरता सतत विकास’ रखा गया था। वर्ष 2007 और 2008 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की विषय-वस्तु ‘साक्षरता और स्वास्थ्य’ थी, जिसके जरिये टीबी, कॉलेरा, एचआईवी, मलेरिया जैसी फैलने वाली बीमारियों से लोगों को बचाने के लिए महामारी के ऊपर ध्यान केन्द्रित करने का लक्ष्य रखा गया था। वर्ष 2009 में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देने के लिए इसका विषय ‘साक्षरता और सशक्तिकरण’ रखा गया था जबकि 2010 की थीम ‘साक्षरता विकास को बनाए रखना’ थी। 2011 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के लिए थीम ‘साक्षरता और महामारी’ पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए थी। 2012 में लैंगिक समानता और महिलाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए थीम थी ‘साक्षरता और सशक्तिकरण’। 2013 में शांति के लिए साक्षरता के महत्व पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए ‘साक्षरता और शांति’, 2014 में ‘21वीं शताब्दी के लिए साक्षरता’, 2015 में ‘साक्षरता और सतत विकास’, 2016 में ‘अतीत पढ़ना, भविष्य लिखना’, 2017 में ‘डिजिटल दुनिया में साक्षरता’ तथा 2018 में ‘साक्षरता और कौशल विकास’ अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम थी।
साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है बल्कि सफलता और जीने के लिए भी साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है। यह लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हुए सामाजिक विकास का आधार स्तंभ बन सकती है। भारत हो या दुनिया के अन्य देश, गरीबी मिटाना, बाल मृत्यु दर कम करना, जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करना, लैंगिक समानता प्राप्त करना आदि समस्याओं के समूल विनाश के लिए सभी देशों का पूर्ण साक्षर होना बेहद जरूरी है। साक्षरता में ही वह क्षमता है, जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा बढ़ा सकती है। आंकड़े देखें तो दुनिया में 127 देशों में से 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने के लक्ष्य से अभी दूर हैं और चिंता की बात है कि भारत भी इनमें शामिल है।
अगर बात भारत की करें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से निरक्षरता समाप्त करना भारत के लिए प्रमुख चिंता का विषय रहा है। हमारे यहां ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण’ राष्ट्रीय स्तर की शीर्ष एजेंसी है और यह प्राधिकरण वर्ष 1988 से ही लगातार ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाता रहा है। हालांकि आजादी के बाद साक्षरता दर देश में काफी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में करीब 74 फीसदी नागरिक साक्षर हैं जबकि ब्रिटिश शासन के दौरान सिर्फ 12 फीसदी लोग ही साक्षर थे। केरल में साक्षरता प्रतिशत सर्वाधिक 93.91 फीसदी जबकि बिहार में सबसे कम 63.82 फीसदी है। देश में विद्यालयों की कमी, विद्यालयों में शौचालयों आदि की कमी, निर्धनता, जातिवाद, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाओं का डर, जागरूकता की कमी इत्यादि साक्षरता का लक्ष्य हासिल न हो पाने के मुख्य कारण हैं। गरीब और अमीर भारत का यह फासला शिक्षा और आर्थिक असमानता में स्पष्ट रूप से देखा जाने लगा है। देश में अमीर और गरीब में बहुत ज्यादा फासला है, बल्कि यह तेजी से बढ़ रहा है। इसका असर शिक्षा पर भी देखने को मिल रहा है।
एक तरफ उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी महिलाएं हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई है तो दूसरी ओर देश में ऐसे लाखों बच्चे हैं जिन्हें प्राथमिक शिक्षा का मूल अधिकार भी नहीं मिल पा रहा है।न केवल सरकार, बल्कि हर साक्षर नागरिक को निरक्षरता के दानव से जूझने में योगदान करना चाहिए। हमारे आदर्श वाक्य होना चाहिए ‘प्रत्येक एक को सिखाना’, अगर हम एक विकसित देश बनना चाहते हैं। आवश्यकता है कि हमें अशिक्षा को रोग के तौर पर देखना होगा और इसे जड़ से खत्म करना होगा। भारत को आर्थिक संसाधनों के साथ अपने मानव संसाधन को भी विकास की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार करना होगा। अनपढ़ और अकुशल भीड़ पर गर्व करने की प्रवृत्ति सरकारों और जिम्मेदारों को त्यागनी होगी। हमारे आदर्श वाक्य होना चाहिए ‘प्रत्येक एक को सिखाना’, अगर हम एक विकसित देश बनना चाहते हैं। अत: इनके निदान के लिए गंभीर प्रयास होने नितांत आवश्यक हैं ताकि भारत एक पूर्ण साक्षर राष्ट्र बनने का गौरव हासिल कर सके।
योगेश कुमार गोयल

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