लघुकथा : घोंसला और घर

उस आलीशान अट्टालिका के एक कोन में बनाए हुए घोंसले में चिड़ियों का एक जोड़ा सहमा हुआ सा रह रहा था। चिड़ियों का वह जोड़ा उस अट्टालिका में रहने वाले पति-पत्नी के आचार व्यवहार से हैरान था। पति काम से आते ही क्लब चला जाता। पत्नी किटी पार्टियों में चली जाती। फूल जैसा छोटा सा बच्चा आया की गोद में कुम्हला सा जाता।

देर रात गए जब पति-पत्नी उस अट्टालिका में वापस आते तो बच्चा सो गया होता। राज किसी न किसी बात पर वे जोरे-जोर से लड़ते। अंग्रेजी में एक-दूसरे को गालियां देते। जब झिक-झिक से थक जाते तो सो जाते। तब चिड़ियों का वह जोड़ा और घबरा जाता।

धीरे-धीरे चिड़ियों के उस जोड़े में भी कलह होने लगी। तब एक दिन मादा चिड़िया बोली, ‘‘सुनो जी! यहां के वातावरण और आदत का प्रभाव हम पर पड़ रहा है। हम प्रेम से रहने वाले पक्षियों पर इस अट्टालिका में रहने वाले मनुष्यों का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हम यहां नहीं रहेंगे।’’

नर चिड़िया ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘‘देखा, मैने तुमसे पहले ही कहा था, आम के वृक्ष पर घोंसला बनायेंगे पर तुम तो इस अट्टालिका की सुंदरता पर मुग्ध थी। अब तुम समझ गई होगी कि यह अट्टालिका ‘घर’ नहीं सिर्फ अट्टालिका है।’’
अब चिड़िया के जोड़े ने अट्टालिका में बनाया अपना घोंसला छोड़ दिया।

शैल चन्द्रा, रांवणभांठा नगरी, जिला धमतरी (छत्तीसगढ़)

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