आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता जरूरी

Solidarity against terrorism is necessary
म्यांमार सरकार ने वांछित 22 आतंकियों को भारत को सौंपकर आतंकवाद के खिलाफ मुहिम में सहयोग दिया है। इस निर्णय के बाद पूर्व उत्तर में आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी। दरअसल आतंकवादी पूर्वी उत्तरी राज्य में घटनाओं को अंजाम देने के बाद म्यांमार में जा छिपते हैं। यह क्षेत्र पहाड़ी, जंगली व नदी-नालों का होने के कारण सुरक्षा बलों के लिए गश्त करने में बड़ी रुकावट बना हुआ है भारत के म्यांमार के साथ सम्बन्ध अच्छे हैं। आतंकवाद किसी का भी धर्म, जाति व मित्र नहीं हो सकता इसीलिए शांति व मानवता के समर्थन में हिंसा को रोकने के लिए पड़ोसी देशों का सहयोग देना आवश्यक है।
भारत की म्यांमार के साथ लगती सीमा 1600 किलोमीटर लम्बी है। पिछले कुछ समय में भारत को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए म्यांमार की सीमा में दाखिल होकर भी कार्रवाई करनी पड़ी है। गरीब देश होने के कारण म्यांमार में सुरक्षा प्रबंध मजबूत नहीं हैं जिस कारण आतंकवादी म्यांमार को अपना सुरक्षित टिकाना बना लेते थे। यदि सभी देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हों तब वह दिन दूर नहीं जब आतंकवाद दम तोड़ देगा। इससे पूर्व बांग्लादेश कई आतंकवादी भारत को सौंप चुका है लेकिन कई ऐसे देश हैं जो आतंकवाद के मामले में अभी भी दोहरी नीतियां अपना रहे हैं। वे दोहरी नीति इस हद तक अपनाते हैं कि एक ही व्यक्ति को एक देश आतंकवादी घोषित कर देता है और दूसरा उसे क्लीन चिट देता है। इस दोहरी नीति का दर्द वही देश व लोग समझते हैं जो आतंकी हमलों में अपने परिवारिक सदस्यों को खो चुके हैं। जो आतंकी सरेआम हमलों को देता अंजाम व दूसरों के प्रति जहर उगलता है उसे दूध का धुला हुआ बताने का प्रयास किया जाता है।
कई ऐसे आतंकी पाकिस्तान में बैठे हैं, जिनका पाकिस्तान सरकार बचाव करती है। इस मामले में चीन भी बेशर्मी की हालत में पहुंच चुका है और भारत को वांछित आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के बाद भी बार-बार रुकावट बनता रहा है परन्तु अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे चीन को पाकिस्तानी आतंकी सैय्यद सलाहुद्दीन को आतंकी मानना ही पड़ा। यही हाल पाकिस्तान का है, जो मुंबई 26/11 हमले के आरोपी को जेल से बाहर निकालकर शाही-ठाठ से उसकी चापलूसी करता आ रहा है। यही दोहरी नीतियां न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिणी एशिया में आतंकी घटनाओं का कारण बनी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के दावे खूब होते हैं लेकिन जब उस फैसले को मानने की बात आती है तब सबूतों के अभाव की दुहाई दी जाती है। बेहतर होगा यदि म्यांमार की तरह अन्य देश भी आतंकवाद को खत्म करने में मदद करें व स्पष्ट व ठोस नीतियां बनाएं, क्योंकि आतंकवाद को पनाह देने से किसी भी देश का भला नहीं हो सकता।

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