जहां बहती है प्यार-मोहब्बत की गंगा

Dera Sacha Sauda

जाह गिरजे, जाह ठाकुरद्वारे, जाह मस्जिद जाह गुरुद्वारे।
वचन सुणीं ते अमल कमाई, की कहंदे ने संत प्यारे।
नाम दी साबुन ला के बंदेआ, मैल जन्म-जन्म दी लाह।
राम दा नाम ध्या, ओ बंदे राम दा नाम ध्या… !!

गीत की धुनों के साथ डेरा सच्चा सौदा की फिजां में गूंजता यह भजन प्यार, मोहब्बत, भाईचारे और रूहानियत की मधुर तरंगें छेड़ रहा है। भजन की पंक्तियां और डेरे (Dera Sacha Sauda) में उभर रही अनेकता में एकता की तस्वीरें दिल को सुकून दे रही हैं। डेरे में हर तरफ मानवता के संदेश की झलक मिल रही है। श्रद्धालुओं में हिन्दू भी हैं और दस्तारें सजाए सिक्ख भाई भी, मुसलमान भी और ईसाई भी। ना किसी का धर्म बदला और न ही बदलने की प्रेरणा दी, क्योंकि हर धर्म महान है।

बड़ा ही सुंदर नज़ारा है, यदि इसे अजूबा कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। पूरी दुनिया की एकता, सर्व धर्म एकता और भाईचारे का संदेश, हर धर्म का सम्मान, हर धर्म के साथ प्यार, हर धर्म की मिसाल देकर समझाना और सभी धर्मों के महापुरुषों से प्रेरणा लेने का संदेश देना इन्सानियत के रिश्ते को मजबूत करता है। डेरा सच्चा सौदा में अजब नजारा है कि यहां आए हर व्यक्ति को कहा जाता है कि अपने-अपने धर्म की शिक्षाओं को मानो और उसको जीवन में अपनाओ।

धार्मिक स्थलों को करो सजदा

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जहां भी मंदिर, गुरुद्वारा, गिरजाघर, मस्जिद आते हैं वहां सजदा जरूर करो। आप जी फरमाते हैं कि जिस भी धार्मिक स्थान पर जाओ वहां महापुरुषों की वाणी को पूरी श्रद्धा के साथ सुनो और उस पर अमल करो गुरु को मानो और गुरु की भी मानो।

सारी सृष्टि परमात्मा की औलाद | (Dera Sacha Sauda)

रूहानियत और इन्सानियत के इस शुभ पाक-पवित्र दरबार डेरा सच्चा सौदा की स्थापना पूजनीय परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 29 अप्रैल 1948 को की थी। आप जी ने संदेश दिया कि परमात्मा एक है और सारी सृष्टि उसकी औलाद है, कोई ऊँचा नहीं, कोई नीचा नहीं। सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपने मुर्शिद-ए-कामिल के इस पवित्र संदेश को हजारों सत्संगों के माध्यम से घर-घर पहुँचाया और 11 लाख से ज्यादा लोग बुराइयां छोड़कर भक्ति मार्ग के साथ जुड़े। सच्चे रूहानी रहबर पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां आज पूरी दुनिया में राम-नाम का डंका बजा रहे हैं। आपजी की प्रेरणा से साढ़े छह करोड़ से अधिक लोग खुद बुराइयां छोड़कर अन्य लोगों को भी राम-नाम से जोड़ रहे हैं।

डेरा सच्चा सौदा के बारे में साईं जी के पावन वचन

यह वह सच्चा सौदा है, जो आदिकाल से चला आ रहा है। यह कोई नया धर्म, मज़हब या लहर नहीं है। सच्चा सौदा का भाव है सच का सौदा। इसमें सच है भगवान, ईश्वर, वाहेगुरु, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड और सच्चा सौदा है उसका नाम जपना अर्थात् नाम का धन कमाना। दुनिया में भगवान के नाम के सिवाय सब सौदे झूठे हैं। कोई भी वस्तु इस जहान में सदा स्थिर रहने वाली नहीं है। ईश्वर, वाहेगुरु, ख़ुदा, गॉड के नाम का सौदा करना ही सच्चा सौदा है।

 बुरा करने वालों का भी भला हो

डेरा सच्चा सौदा का बुनियादी असूल ही यही है कि सभी का भला करो, यहां उनका भी भला किया जाता है, जो हमेशा डेरा सच्चा सौदा के बारे में बुरा सोचते रहते हैं। साध-संगत चाहे रक्तदान करे, जरूरतमंदों को राशन बांटे या सड़क हादसों में घायल लोगों की संभाल करे, इस दौरान साध-संगत किसी भी जात-पात, धर्म या वैर-विरोध नहीं देखती।

‘ख़ुद-ख़ुदा का बनाया हुआ है डेरा सच्चा सौदा’

एक बार की बात है कि सरसा शहर के कुछ भक्तों ने पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज के समक्ष विनती की कि सार्इं जी! अपना आश्रम शहर से बहुत दूर है। यहां आना-जाना बहुत मुश्किल है। जंगल तथा वीरान क्षेत्र होने के कारण शहर से माता-बहनों का आना बहुत ही कठिन है और वर्षा के समय सारा रास्ता कीचड़ से भर जाता है। अत: आश्रम शहर के पास बनाओ। उस समय आप जी बड़े गेट के पास खड़े थे। आप जी ने वहां से बेरी का एक सूखा डंडा उठाया और सेवादारों को कहकर उसे जमीन में गड़वा दिया।

फिर आप जी ने उस डंडे की ओर इशारा करके भक्तों को फरमाया, ‘‘अगर यह बेरी का सूखा डंडा हरा हो गया तो सच्चा सौदा दरबार यहीं रखेंगे और अगर डंडा हरा न हुआ तो आप जहां कहेंगे, डेरा वहां बना लेंगे।’’ कुछ ही दिनों के पश्चात वह सूखा डंडा अंकुरित होने लगा। बड़ा होने पर उस पर बहुत ही मीठे बेर लगे। आप जी फरमाया करते, ‘‘यह जो डेरा सच्चा सौदा बना है यह किसी इंसान का बनाया हुआ नहीं है। यह सच्चे पातशाह के हुक्म से ख़ुद-ख़ुदा का बनाया हुआ है।’’

‘शाह सतनाम जी धाम’ बारे वचन | (Dera Sacha Sauda)

सत्संगी हंंसराज गाँव शाहपुर बेगू ने बताया कि सन् 1955 की बात है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव नेजिया खेड़ा में सत्संग फ रमाने के लिए जा रहे थे। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव के नजदीक एक टीले पर विराजमान हो गए, जहां अब शाह सतनाम जी धाम में अनामी गुफा (तेरा वास) है। सभी सत्ब्रह्मचारी सेवादार तथा अन्य सेवादार अपने पूज्य मुर्शिदे-कामिल की हजूरी में आकर बैठ गए। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सभी सेवकों को फरमाया, ‘‘आप सभी हमारे साथ मिलकर इस पवित्र स्थान पर सुमिरन करो।’’

सभी ने बैठकर पन्द्रह-बीस मिनट तक सुमिरन किया। फिर पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने हँसते हुए फरमाया, ‘‘बल्ले! इत्थे रंग-भाग लग्गणगे।’’ पूज्य मस्ताना जी महाराज ने आगे फरमाया, ‘‘भई! रंग-भाग तां लग्गणगे, पर नसीबां वाले देखेंगे। बाग-बगीचे लग्गणगे। लक्खां संगत देखेगी।’’

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