शाकाहार ही उत्तम जीवन शैली

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भले ही करोना वायरस की चपेट में फिलहाल चीन आया है लेकिन विश्व भर में इस वायरस के कारण दहशत पाई जा रही है। चाहे वायरस के स्रोत संबंधी अलग-अलग राय हैं, फिर भी इस बात की चर्चा जरूर शुरू हो गई है कि मांसाहार ही इस भयानक बीमारी की जड़ है। यह कहा जा रहा है कि चीन में समुद्री जीवों को खाने वाले लोगों में यह वायरस दाखिल हुआ है और आगे यह बीमारी बढ़ रही है। दरअसल धर्म व विज्ञान के अनुसार प्राकृति भी नियमों का उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं करती। जब मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड़ का प्रयास करता है तब-तब कुदरत भयानक तबाही भी लाती है।

स्वाईन फ्लू व कई अन्य रोगों में पहले भी ऐसा हो चुका है जब मांसाहार के कारण ही मानवीय समाज को बीमारियों का सामना करना पड़ा। दरअसल धर्मों व विज्ञान के अनुसार मानव शाकाहारी प्राणी है। किसी जीव को वही कुछ हजम हो सकता है जिसके लिए उसका शरीर कुदरत ने बनाया है। कुदरत ने पहाड़ों में रहने वाले पशु-पक्षियों को मौसम का सामना करने के लिए शारीरिक तौर पर कोई न कोई खास चीज दी है। आज वैज्ञानिक कई रोगों में मरीज को कच्चे फल सब्जियों का सेवन करने पर जोर देते हैं जिसका परिणाम भी बहुत अच्छा आ रहा है। भारत की संस्कृति आध्यात्मिक संस्कृति है यहां महापुरुषों, ऋषि मुनियों ने कुदरत की महत्वता को समझते हुए मनुष्य के लिए शाकाहारी भोजन ही उत्तम माना। उन्होंने मांसाहारी को तो मानव की श्रेणी में ही नहीं रखा। ऐसे हालातों में मांसाहार ने मनुष्य के लिए खतरा तो बनना ही था।

जहां तक करोना वायरस का संबंध है यह विदेशी भूमि की उपज है, विशेष तौर पर उस देश (चीन) में सामने आया जहां समुद्री जीवों के साथ-साथ शिकार के बाद गले सड़े जीवों को खा लिया जाता है। यह बात स्पष्ट है कि मनुष्य के स्वास्थ्य का सम्बन्ध उसके भोजन से है जिस प्रकार का भोजन किया जाएगा, उसका वैसा ही प्रभाव देखने को मिलेगा। यूं भी बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के द्वारा भी कुदरत ने मनुष्य को झटका तो दिया था कि मुर्गे न खाओ लेकिन सरकारें मांसाहार को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष डिग्री तापमान तक मास को पकाने की हिदायतें देती रहीं। भले ही देश की संस्कृति किसी पर थोपी नहीं जानी चाहिए परंतु कम-से-कम इसका प्रचार तो होना ही चाहिए। शाकाहार व मांसाहार का अंतर बताने के लिए भी सरकारों को पैसा तो खर्च करना ही चाहिए क्योंकि यह देशवासियों के स्वास्थ्य का मामला है।

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