पांच हजार वर्ष पूर्व चीन में हुई थी ‘चाय’ की खोज

आविष्कार शब्द के पीछे गहन अध्ययन और कड़ी मेहनत होती है, तभी किसी नयी चीज की खोज संभव हो पाती है लेकिन जब कोई बहुत बड़ा आविष्कार अनजाने में हो जाये तो इसे किसी रोमांचक चमत्कार से कम नहीं समझना चाहिए और आज ऐसे ही एक दिलचस्प आविष्कार की बात करते हैं जिसने हमारी लाइफ को इतनी उम्दा खोज दी है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ी राहत बढ़ गयी है। एक खास आविष्कार से जुड़ा ये किस्सा है चाय का, जिसे किसी ने खोजा नहीं है बल्कि चाय ने खुद आकर हमें खोज लिया है। चाय का ये दिलचस्प इतिहास चीन से शुरू हुआ।
आज से करीब 5000 साल पहले, जब एक बार चीन के सम्राट शैन नुंग अपने गार्डन में बैठे थे। उन्हें गर्म पानी पीने की आदत थी और उस दिन उनके गार्डन के एक पेड़ की कुछ पत्तियां उनके उबले पानी में आकर गिर गई और उस पानी का रंग बदल गया लेकिन उसमें से आने वाली खुशबू इतनी अच्छी थी कि सम्राट उसे चखे बिना नहीं रह सके। सम्राट ने वो पानी पीया, उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया और उसे पीने से उन्हें शरीर में स्फूर्ति का अहसास भी हुआ। उस समय चीन के सम्राट ने इस अनोखे पेय को ‘चाअ’ नाम दिया जिसका चाइनीज भाषा में अर्थ होता है- चेक करना, इन्वेस्टीगेट करना। ऐसे में चाय की खोज का श्रेय चीन के सम्राट शैन नुंग को दिया गया।
1610 में डच व्यापारी चीन से चाय को यूरोप ले गए और उसके बाद धीरे-धीरे चाय दुनिया के फेमस पेय पदार्थों में शामिल होती चली गई। भारत में 1815 में कुछ अंग्रेज यात्रियों ने असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों को देखा जिसे वहां के कबाइली लोग पेय बनाकर पीते थे। उसके बाद भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में भारत में चाय के उत्पादन के लिए कमेटी बनाई और 1835 में असम में चाय की खेती शुरू कर दी गयी। इस तरह चीन से भारत आयी चाय एक लम्बे समय तक उच्च वर्ग के लोगों की पसंद बनी रही और धीरे-धीरे हर वर्ग तक अपनी पहुंच बनाने वाली चाय आज भारत के पसंदीदा और प्रसिद्ध पेय पदार्थों में बड़ी शान से शामिल है।

 

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