बेजुबानों का भी दुश्मन हैं ‘मोबाइल रेडिएशन’

Industry in Punjab

गुरुग्राम(सच कहूँ/संजय मेहरा)। आपकी जेब में रहने वाला मोबाइल और इसके लिए नेटवर्क देने वाले मोबाइल टावर सिर्फ हम इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि बेजुबान जानवरों, पक्षियों के लिए भी खतरनाक हैं। इन टावर्स से निकलने वाली रेडिएशन बेजुबानों में कई बीमारियां पैदा करके उनकी जीवनलीला खत्म कर देती है। यह बात सिर्फ हम नहीं कह रहे, बल्कि भारत का पर्यावरण मंत्रालय भी इस बात से इत्तेफाक रखता है। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन वन्य प्राणियों के लिए घातक हैं।

विशेषकर चिड़िया और मधुमक्खियां इससे अधिक प्रभावित होती हैं। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इस विषय पर टेलिकॉम विभाग को एडवाइजरी भी दी गई है कि वर्तमान में लगे हुए मोबाइल टावर्स के एक किलोमीटर के दायरे में नया टावर लगाने की अनुमति ना दी जाए। यानी एक किलोमीटर के दायरे में एक ही टावर हो। इसके अलावा इन टावर्स से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन को रोकने के लिए अन्य विकल्प भी तलाशने व उन्हें लागू करने की सलाह भी दी गई है।

एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर लिया संज्ञान

पर्यावरण मंत्रालय की एडवाइजरी के अनुसार नए टावर बहुत सावधानी और सुरक्षा के साथ लगाए जाने चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये मोबाइल टावर चिड़ियों के उड़ने के रास्ते में न आएं। मोबाइल टावर से निकली रेडिएशन का वन्य प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर हुई रिसर्च में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरों से गौरैया चिड़िया के गायब होने में मोबाइल टावर से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन मुख्य रूप से जिम्मेदार है। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पूर्व में यह सलाह भी दी गई थी कि मोबाइल टावर्स को पब्लिक प्लेस में लगाने से बचना चाहिए।

अब कम ही नजर आती है गौरैया चिड़िया

हमारे देश में अभी तक घरों में घोंसले बनाकर रहने वाली चिड़िया गौरैया अब कम ही नजर आती है। शहरी क्षेत्रों में तो गौरैया को देखने के लिए आंखें तरस जाती हैं। हां, खेतों में बने घरों में कुछ हद तक गौरैया चहचहाती दिख जाती है। गौरैया की संख्या में आ रही कमी का सही कारण पता नहीं है, क्योंकि भारत में ऐसी कोई रिसर्च नहीं की गई है। विशेषज्ञों की राय है कि 2.0 फिल्म के जरिए एक सही मुद्दे को बहस का विषय बनाया गया है। अभी भी इस पर और अधिक रिसर्च की जरूरत है।

मोबाइल व टावर से निकलती हैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन

वर्ष 2011 में पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की गई थी। इसके अनुसार पक्षियों की संख्या घटने के पीछे मोबाइल रेडिएशन की भी एक बड़ी भूमिका है। इतना ही नहीं, ईएमआर की वजह से मधुमक्खियों में अंडे देने की क्षमता में भी कमी पाई गई। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली नेचर फोरएवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर ने कहा है कि ईएमआर को हमेशा ही नुकसानदायक बताया जाता है। चीन व स्विट्जरलैंड जैसे देशों में ईएमआर को लेकर अलग नियम हैं, जबकि भारत के नियम अलग हैं।

रिपोर्ट से यह साफ हो चुका है कि जब किसी इलाके में मोबाइल और मोबाइल टावर बढ़े हैं, वहां गौरैया चिड़िया में कमी आई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि गौरैया की संख्या में कमी की वजह मोबाइल टावर भी एक वजह है। इसके अलावा खाना और घोंसला बनाने के लिए जगह नहीं मिल पाना भी गौरैया का अस्तित्व खतरे में डाल चुका है। पंजाब के सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड वोकेशनल स्टडीज में बताया गया है कि घरों में घूमने वाली गौरैया के 50 अंडों को 5 से 10 निमट तक ईएमआर में रखा गया। इसके बाद तथ्य सामने आए कि सभी अंडों को ईएमआर की वजह से नुकसान पहुंचा।

2.0 में भी दिखाया गया है रेडिएशन का खतरा

फिल्म 2.0 में पक्षीराजन नाम का एक शख्स पक्षियों से बहुत प्यार करता है। पक्षियों का जीवन बचाने को वह सदा भटकता रहता है। वह जागरुक करता है लेकिन उसकी बातों को किसी पर कोई असर नहीं होता। अंत में वह खुद की ही जान दे देता है। इसके बाद पैदा होता है मोबाइल रेडिएशन से मारे गए हजारों पक्षियों की आत्मा खुद में समा लेने वाले विलेन।

पक्षी के रूप में विलेन लोगों की जान लेने लगता है। यहां से फिल्म में आपको एक पक्षी नहीं, बल्कि हीरो रजनीकांत से लड़ता हुआ विलेन दिखा। पक्षीराजन और मारे गए पक्षियों ने हर उस शख्स को अपना दुश्मन मान लिया, जो स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि 2.0 फिल्म के जरिए एक सही मुद्दे को बहस के विषय के रूप में लिया गया है। हालांकि बहुतेरे लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। फिल्म में दिखाया गया है कि मोबाइल रेडिएशन की वजह से पक्षी मर रहे हैं। इस फिल्म में दिखाई गई कहानी से अभी तक सरकार और मोबाइल कंपनियों ने कोई ध्यान नहीं दिया है।

रेडिएशन से पक्षियों में आती हैं कई बीमारियां: डॉ. राजकुमार

गुरुग्राम में पक्षियों के अस्पताल के डॉक्टर्स की मानें तो मोबाइल टावर्स के नजदीक रहने वाले पक्षियों को अधिक नुकसान होता है। डॉ. राजकुमार बताते हैं कि मोबाइल टावर रेडिएशन एक धीमा जहर है। यानी यह धीरे-धीरे नुकसान देता है। बहुत से पक्षी अंधे हो जाते हैं तो बहुतों को ट्यूमर हो जाती है। इसके अलावा लकवा, स्किन एलर्जी भी होती है। अरावली क्षेत्र में पक्षी जितने सुरक्षित हैं, उससे कहीं अधिक असुरक्षित शहरी आबादी में हैं। क्योंकि यहां मोबाइल टावर की रेडिएशन ज्यादा रहती है।

डा. राजकुमार का कहना है कि लॉकडाउन में पक्षियों को बहुत फायदा हुआ। बीमारियां कम हुई। क्योंकि प्रदूषण नहीं था। यहां तक कि उनकी ब्रिडिंग यानी प्रजनन अधिक हुआ। पक्षी अस्पताल के सीनियर डॉक्टर सतबीर बताते हैं कि रेडिएशन से होने वाली बीमारियों से ग्रसित सालाना काफी पक्षी यहां अस्पताल में लाए जाते हैं। इन पक्षियों की औसतन आयु जो होती है, वह कम हो जाती है। अगर रेडिएशन ज्यादा निकलती हैं तो उससे प्रभावित पक्षियों की मौत जल्दी हो जाती है।

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