OMG News: (सच कहूं/अनु सैनी)। एक दौर था जब पूरी पृथ्वी केवल समुंदर के ही अंदर थी, यानी सतह पर केवल पानी ही पानी था, उसके बाद धरती के कुछ हिस्से सबसे पहले समुंद्र से बाहर निकले,लेकिन सवाल ये है कि वो कौन सा इलाका था जो सबसे पहले समुंद्र से बाहर निकला था? दरअसल अब तक हम सब यहीं मानते आ रहे हैं कि सबसे पहले अफ्रीका और आॅस्ट्रेलिया समुद्र से बाहर आए, लेकिन अब एक नई रिसर्च में सामने आया है कि झारखंड में सिंहभूम जिला समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा है, 13 देशों के 8 रिसर्चर्स 7 साल की रिसर्च के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
रिसर्च खोज की कहानी.. OMG News
सिंहभूम में रिसर्च टीम की अगुआई करने वाल आॅस्ट्रेलिया के पीटर केवुड ने कहा, कि हमारा सौरमंडल, पृथ्वी या दूसरे ग्रह कैसे बने? इन सवालों की खोज में वे और उनकी टीम के 1 साथी, जिनमें 4 भारत से थे, इन सबने 7 साल तक झारखंड के कोल्हान और ओडिशा के क्योंझर समेत कई दूसरे जिलों के पहाड़-पर्वतों को छान मारा। उन्होंने कहा कि पृथ्वी से जमीन कब बाहर निकली, इस सवाल का जवाब खोजने के लिए जुनून जरूरी था, ये जगह नक्सल प्रभावित हैं, लेकिन हमने तय किया था कि करना है, सो करना है।
वहीं अपने 6-7 साल के फील्ड वर्क में लगभग 300-400 किलो पत्थरों का लेबोरेट्री में टेस्ट किया हैं, इनमें कुछ बलुआ पत्थर थे और कुछ पत्थर ग्रेनाइट थे, उन्होंने जो बलुआ पत्थर देखें, उनकी खासियत यह थी कि उनका निर्माण नदी या समुद्र के किनारे हुआ था, उनका कहना हैं कि नदी या समुद्र का किनार तभी हो सकता हैं, जब आसपास भूखंड हों।
सिंहभूम 320 करोड़ साल पहले बना था | OMG News
वहीं पीटर ने कहा, कि जब उन्होंने बलुआ पत्थरों की उम्र निर्धारित करने की कोशिश की, तो तब उन्हें पता चला कि सिंहभूम आज से लगभग 320 करोड़ साल पहले बना था, इसका मतलब यह हुआ कि आज से लगभग 320 करोड़ साल पहले यह हिस्सा एक भूखंड के रूप में समुद्र की सतह से ऊपर था।
वहीं अब तक माना जाता रहा है कि अफ्रीका और आॅस्ट्रेलिया के क्षेत्र सबसे पहले समुद्र से बाहर निकले, लेकिन हमने पाया कि सिंहभूमि क्षेत्र उनसे भी 20 करोड़ साल पहले बाहर आया, उन्होंने दावा किया कि सिंहभूम क्रेटान समुद्र से निकला पहला द्वीप है, यह हमारी पूरी टीम के लिए बड़ा ही रोमांचक पल था।
सिंहभूम महाद्वीप के नाम से जाना जाता है ये इलाका
उन्होंने जब सिंहभूम के ग्रेनाइट पत्थर की जांच की तो यह पता चला, कि सिंहभूम महाद्वीप आज से तकरीबन 350 से 320 करोड़ साल पहले लगातार ज्वालामुखी गतिविधियों से बना था, इसका मतलब यह हुआ कि 320 करोड़ साल पहले सिंहभूम महाद्वीप समुद्र की सतह से ऊपर आया, लेकिन उसके बनने की प्रक्रिया उससे भी पहले शुरू हो गई थी।
बता दें कि यह क्षेत्र उत्तर में जमशेदपुर से लेकर दक्षिण में महागिरी तक, पूर्व में ओडिशा के सिमलीपाल से पश्चिम में वीर टोला तक फैला हुआ है, इस क्षेत्र को हम सिंहभूम क्रेटान या महाद्वीप कहते हैं, पीटर ने बताया, कि शोध के लिए उन्होंने पिछले 6-7 साल में कई बार सिंहभूम महाद्वीप के कई हिस्सों में फील्ड वर्क किया जैसे कि समलीपाल, जोड़ा, जमशेदपुर, क्योंझर इत्यादि… अध्ययन के दौरान हमारा केंद्र जमशेदपुर और ओडिशा का जोड़ा शहर था, यहीं से कभी बाइक से कभी बस-कार से फील्ड वर्क पर निकलते थे।
आगे की रिसर्च के लिए खुली राह | OMG News
सिंहभूम दुनिया का पहला द्वीप हैं, जो समुद्र से बाहर निकला, यानी यहां के आयरन ओर की पहाड़ियों समेत दूसरी पहाड़ियां 320 करोड़ साल से भी ज्यादा पुरानी हैं, इस रिसर्च के मॉड्यूल से पहाड़ी से इलाकों अथवा पठारी क्षेत्र में आयरन, गोल्ड माइंस खोजने में सहूलियत होगी। इसके अलावा बस्तर, धारवाड़ इलाकों में भूमिगत घटनाओं की उत्पति की जानकारी मिलेगी, भू-गर्भीय अध्ययन के लिए भी यह रिसर्च बहुत उपयोगी साबित होगी।
कोलकाता-बारीपदा से कूरियर के जरिए आॅस्ट्रेलिया भेजे जाते थे पत्थर
उन्होंने बताया कि उनकी टीम अलग-अलग समय पर शोध के लिए भारत पहुंची, इस दौरान तीन से 4 क्विंटल पत्थर रिसर्च के लिए इकट्ठे किए, उन्हें बारीपदा और कोलकाता के रास्ते आॅस्ट्रेलिया के लिए कूरियर से भेजा। उन्होंने बताया कि वे सब होटल या किसी ढाबे में खाना खाते थे, और रिसर्च के लिए जंगल-पहाड़ों को निकलते थे। उन्होंने बताया कि उनका फिल्ड वर्क 2017 और 2018 में ज्यादा रहा। उन्होंने खासतौर पर बताया कि नक्सल प्रभावित एरिया होने के बावजूद भी उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।
सैंपल कलेक्शन करने में स्थानीय लोगों ने की मदद
वे पत्थरों को उनके प्राकृतिक रूप में समझने की कोशिश करते थे, जैसे उनका स्वरूप कैसा है, उनका रंग क्या है, वे कितनी आसानी से टूट सकते हैं, कितनी दूर तक फैले हुए हैं, हम अलग-अलग समय में आते थे, कभी बरसात, तो कभी गर्मी के दिनों में फील्ड वर्क में सबसे कठिन काम यह ढूंढना होता था कि पत्थर कहां पर मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास मैप होते थे, लेकिन ज्यादातर समय छोटी चट्टानें या फिर सड़कों के किनारे या नदी नालों के किनारे स्थित पत्थरों तक पहुंचने के लिए हमें स्थानीय लोगों की मदद लेनी पड़ी। सिंहभूम में फील्ड वर्क करने के दौरान ऐसी परिस्थितियां आई, जब स्थानीय लोगों ने हमें पत्थर ढूंढने में बहुत मदद की थी।
5-5 किलो के थैलों में कलेक्ट करते थे सैंपल
उन्होंने बताया कि पत्थरों को प्राकृतिक रूप में जांचने के बाद वे उनका सैंपल कलेक्ट करते और लैबोरेट्रीज में ले जाते थे। वे 5-5 किलो के थैलों में सैंपल कलेक्ट करते थे, सैंपल कलेक्ट करने के लिए वे पत्थरों को हथौडेÞ से मारकर उनके टुकड़े करते थे, उनका कहना है कि ये काम भी बहुत कठीन था।
उन्होंने बताया कि उन्हें कभी-कभी ऐसे पत्थर मिलते थे, जिन्हें तोड़ने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी इन सैंपल को हम लैबोरेट्री में ले जाते थे, वहां यह खोज की जाती थी, कि वे किन-किन रासायनिक तत्वों से बने थे जैसे, लोहा, मैग्नीशियम, आॅक्सीजन वगैरह, आखिरकार हमारे संघर्ष का मुकाम सुखद रहा। इस तरह हमने पाया कि समुद्र से निकलने वाला द्वीप हमारा सिंहभूम ही था।
रिसर्च टीम में ये वैज्ञानिक रहे शामिल
सिंहभूम पर 7 साल तक रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों की टीम में आॅस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिविर्सिटी के पीटर केवुड़, जैकब मल्डर, शुभोजीत राय, प्रियदर्शी चौधरी और आॅलिवर नेबेल, आॅस्ट्रेलिया की ही यूनिवर्सिटी आॅफ मेलबर्न की ऐल्श्री वेनराइट, अमेरिका के कैलिफोर्निया इंस्टूट्यूट आॅफ टेकनोलॉजी के सूर्यजेंदु भट्टाचार्यों के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के शुभम मुखर्जी शामिल हैं।