भावी पीढ़ियों का भविष्य दांव पर

Population Drowth, Future Generation

पूरी दुनिया की आबादी इस समय करीब 7.6 अरब है, जिसमें सबसे ज्यादा चीन की आबादी 1.43 अरब है जबकि भारत आबादी के मामले में 1.35 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे स्थान पर है। विश्व की कुल आबादी में से 17.85 फीसदी लोग भारत में रहते हैं और दुनिया के हर 6 नागरिकों में से एक भारतीय है। यदि भारत में जनसंख्या की सघनता का स्वरूप देखें तो जहां 1991 में देश में जनसंख्या की सघनता 77 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, 1991 में बढ़कर वह 267 और 2011 में 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गई। भारत में बढ़ती आबादी के बढ़ते खतरों को इसी से बखूबी समझा जा सकता है कि दुनिया की कुल आबादी का करीब छठा हिस्सा विश्व के महज ढ़ाई फीसदी भू-भाग पर ही रहने को अभिशप्त है।

जाहिर है कि किसी भी देश की जनसंख्या तेज गति से बढ़ेगी तो वहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी उसी के अनुरूप बढ़ता जाएगा। आंकड़ों पर नजर डालें तो आज दुनियाभर में करीब एक अरब लोग भुखमरी के शिकार हैं और अगर आबादी इसी प्रकार बढ़ती रही तो भुखमरी की समस्या एक बहुत बड़ी वैश्विक समस्या बन जाएगी, जिससे निपटना इतना आसान नहीं होगा। बढ़ती आबादी के कारण ही दुनियाभर में तेल, प्राकृतिक गैसों, कोयला इत्यादि ऊर्जा के संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत हैं। जिस अनुपात में भारत में आबादी बढ़ रही है, उस अनुपात में उसके लिए भोजन, पानी, स्वास्थ्य, चिकित्सा इत्यादि सुविधाओं की व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है। पिछले कुछ दशकों में देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर में निरन्तर सुधार हुआ है, उसी का असर माना जा सकता है कि धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि दर में थोड़ी गिरावट आई है लेकिन यह उतनी भी नहीं है, जिस पर जश्न मनाया जा सके।

बेरोजगारी और गरीबी ऐसी समस्याएं हैं, जिनके कारण भ्रष्टाचार, चोरी, अनैतिकता, अराजकता और आतंकवाद जैसे अपराध पनपते हैं और जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किए बिना इन समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। दशकों में यातायात, चिकित्सा, आवास इत्यादि सुविधाओं में व्यापक सुधार हुए हैं, लेकिन तेजी से बढ़ती आबादी के कारण ये सभी सुविधाएं भी बहुत कम पड़ रही हैं। जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान स्थिति की भयावहता को मद्देनजर रखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञों की इस चेतावनी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यदि जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार में अपेक्षित कमी लाने में सफलता नहीं मिली तो निकट भविष्य में एक दिन ऐसा आएगा, जब रहने के लिए धरती कम पड़ जाएगी। जनसंख्या का विस्तार हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता को भी चौपट कर रहा है।

पर्यावरण प्रदूषण, रेगिस्तानीतकण, सार्वभौमिक गर्माहट, जलवायु परिवर्तन और जीव-जातियों के विलुप्तिकरण का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट ही है। देश के लिए सबसे कीमती क्या हो सकता है, जिसकी रक्षा करना सरकार का सर्वोपरि कर्तव्य है? निश्चित रूप से भावी पीढ़ियों का भविष्य। लेकिन भावी पीढ़ियों का भविष्य तो वर्तमान जनसंख्या विस्फोट और असमान नागरिक संहिता ने धूमिल करके रख दिया है। जरूरी है कि एक प्रभावशाली जनसंख्या नियंत्रण कानून अति शीघ्र बने। इसको सफल बनाने के लिए आवश्यक समान नागरिक संहिता को संविधान में पिरोना देश, काल और समाज की सर्वोपरि मांग है।

 

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