चीन की आर्थिक नीतियों के चलते बढ़ेगा क्वॉड का महत्व

China's economic policies
China's economic policies

भारत के वैश्विक सम्मेलन रायसीना डायलॉग अवधारणा पर रूस द्वारा किए गए सवाल से एक बार फिर से हिंद प्रशांत चर्चा में आ गया है। नई दिल्ली से रूस के विदेश मंत्री का यह बयान निश्चित रूप से भारत को आश्चर्यचकित करता है। 2 वर्ष पहले अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पहली बार एशियाई सरजमीं से एशिया पेसिफिक की जगह पर हिंद पेसिफिक नाम सुझाया था। उसी के बाद से इस क्षेत्र विशेष को इंडो पैसिफिक क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री अपने विभिन्न विदेशी दौरों पर इंडो पेसिफिक को लेकर अपना नजरिया स्पष्ट करते रहे हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री के अनुसार इंडो पेसिफिक का क्षेत्र अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तट तक है। भारतीय प्रधानमंत्री के अनुसार इस क्षेत्र को एक क्षेत्र विशेष के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए। समग्रता से देखें तो इंडो पेसिफिक का जन्म ट्रंप के मनीला दौरे के बाद हुआ। जब अमेरिका ने चीन को घेरने के लिए चार देशों के समूह क्वॉड का गठन किया। जिस प्रकार से चीन अपनी आर्थिक गतिविधियों के द्वारा क्षेत्र विशेष के सभी देशों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। इससे अमेरिका की चिंताएं बढ़ी और चीन को बढ़त हासिल करने से रोकने के लिए अमेरिका ने नए-नए तरीके इजाद करने शुरू कर दिए। अमेरिका को यह आभास था कि चीन का विरोध कोई एक देश अकेला मिलकर नहीं कर सकता। इसलिए उसने एशिया के दो बड़े देशों भारत और जापान को क्वॉड के माध्यम से जोड़कर चार देशों का नया समूह बनाया।

बीसवीं सदी में जहां बड़ी शक्ति का पैमाना सैन्य शक्ति होती थी। आज 21वीं सदी में यह पैमाना बदल चुका है और अब वही देश बड़ी शक्ति के रूप में जाना जाता है जो सैन्य शक्ति के साथ-साथ बड़ी आर्थिक शक्ति भी होता है। नए मापदंडों के अनुसार रूस और अमेरिका अब बड़ी शक्ति नहीं रहे हैं। जहां रूस की निर्भरता चीन पर बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी देशों का दबदबा भी अब समाप्त होता जा रहा है। ऐसे में अपने दबदबे को बरकरार रखने के लिए पुरानी बड़ी शक्तियां मौजूदा समय के उभरते देशों को अपने साथ जोड़ने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। क्वॉड से जुड़ना और इंडो पेसिफिक रीजन का समर्थन करना भारत के अपने सामरिक और आर्थिक हितों के लिए आवश्यक था। इसका उद्देश्य किसी देश विशेष का विरोध करना नहीं है। जहां एक तरफ भारत का ध्यान तकनीकी प्राप्त करने के लिए अमेरिका से बेहतर संबंध रखने की तरफ है। वही अपनी सैन्य और व्यापारिक जरूरतों के लिए रूस और चीन के साथ भी बेहतर संबंधों के लिए भारत प्रतिबद्ध है।

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