भारत में वृद्धजनों की दुर्दशा चिंतनीय

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नीचे गिरे सूखे पत्तों पर जरा अदब से पैर रखिए, कभी कड़ी धूप में इन्हीं से छाव मांगी थी तुमनें। किसी लेखक की यह पंक्तियां कृतज्ञता के भावों को श्रेष्ठ रूप में अभिव्यक्त करने के साथ वर्तमान पीढ़ी के अपने कर्तव्यों से विमुख होने पर सटीक ईशारा करती है। हाल ही में हेल्पेज इंडिया ने बुजुर्गो के प्रति व्यवहार पर देश के चुनिंदा शहरों में सर्वेक्षण किया।

नतीजे कोई खास अच्छे सामने निकल कर नहीं आये। सर्वेक्षण के परिणाम में मंगलुरु पहले पायदान पर रहा, जहाँ 47 फीसद वृद्धजनों के साथ बुरा बर्ताव होता है। इस क्रम में दूसरे स्थान अहमदाबाद को मिला है जहाँ 46 फीसद वृद्धजन अपनों के द्वारा ही सताये हुए है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल 39 फीसद के साथ तीसरे तथा अहमदाबाद को 35 फीसद के साथ इस सूची में चौथा स्थान मिला है।

सबसे आश्चर्य जनक आँकड़े तो यह है कि समाज की मान्यता के अनुसार जहा परिवारों में बहुएं अपने सास-ससुर से खराब बर्ताव के लिए प्रथम दृष्टया संदेह के घेरे में आती है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। हेल्पेज इण्डिया के अनुसार बुजुर्गो को सताने में 52 फीसदी बेटों का योगदान है तो बहुओं का प्रतिशत 34 फीसद है। बेटों की चाह में इतने आगे निकल आये हम कि आज यह आँकड़े स्थति को बयां कर रहे है! सताये हुए 82 प्रतिशत बुजुर्ग शिकायत ही नहीं करते और 34 प्रतिशत तो ऐसे है जिनको यह भी ज्ञात नहीं की इस समस्या से कैसे निपटा जाए!

गांवो को देहात और वहां के लोगो को असभ्य करार दिया जाता है लेकिन वहां के वृद्धजन सुखी है उनके कम पढ़े लिखे बच्चे उनके कहने में है। आबो हवा तो शहरों की खराब हुई है,आधुनिक होने के चलते इतने विकसित हो गए हम कि जन्म देने वाले ही बोझ लगने लगे। सबसे खराब स्थति शिक्षित संतानों की है। विजयपत सिंघानिया देश का जाना माना नाम है लेकिन बेटे ने उन्हें पाई पाई का मोहताज बना कर रख दिया।

मुंबई के एक रिहायशी इलाके में फ्लैट में माँ को मरे साल हो जाते हैं और बेटा अमेरिका से जब लौटता है तो घर में माँ का शव ही पूरी तरह नष्ट हो चुका होता है। ऐसी घटनायें अचम्भित करने के साथ उस शिक्षा पर प्रश्न खड़ा करती है जिसके दम पर हम खुद को सभ्य कहते है! जो संताने अपने दूध का कर्ज न उतार सके वे कैसे सभ्य हो सकती हैं?

जो जितना ज्यादा शिक्षित होता है वह उतनी क्षमता और ऊर्जा का उपयोग बुरे कामो में करता है। देश में एक वाक्या ऐसा ही हुआ, बहु अपने ससुर को खाने में स्लो पॉइजन दे रही थी बेटे ने शक होने पर जाँच की तब यह बात सामने निकल कर आई। प्रताड़ना के तरीके भी आधुनिक हो गए है। आज की मासूम पीढ़ी जो अपनी नजरों के सामने अपने माता-पिता को यह सब करते हुए देखेगी वह वैसा ही सब भविष्य में उनके साथ दोहराएगी। बच्चे परिवेश में ही सीखते है,आस-पास की घटनाओं का प्रभाव उनके मस्तिष्क पर तेजी से पड़ता है।

यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फण्ड के अनुसार 90 फीसद बुजुर्गो को सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए काम करना पड़ता है तो वही साढ़े पांच करोड़ बुजुर्ग ऐसे हैं जो रोज रात को भूखे पेट सोने को मजबूर है। अपना खून पसीना एक कर औलाद को पढ़ा लिखा वे लायक बनाते है लेकिन उनके बुढ़ापे में उनके लायक बच्चे ही नालायक बनकर उन्हें भूखा रहने पर विवश कर देते। देश के हर आठ में से एक बुजुर्ग को यह लगता है कि उसके रहने या नहीं रहने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।

जून 2014 के केअर एंड क्राइसिस इन ओल्ड ऐज होम के सर्वे के आँकड़ों पर भी गौर करें तो 62 प्रतिशत बुजुर्ग सम्मानजनक जीवन जीने के लिए वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। 63 प्रतिशत बुजुर्गो को घर में अकेलापन लगता है इसलिए वे आश्रम की राह चुनते है। कुल वृद्धजनों की आबादी का आधा लगभग 5 करोड़ वृद्ध गरीबी रेखा के नीचे हैं।

यदि हर समस्या के समाधान का ठीकरा सरकार के ऊपर फोड़ेंगे तो इससे कुछ ठीक नहीं होगा। यह समस्या सरकार द्वारा नहीं बल्कि समाज द्वारा हल हो यह आवश्यक है। सरकार ने तो वर्ष 2007 में मेंटेनेंस एंड वेलफेयर आॅफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट बना दिया था लेकिन परिणाम आज देखिये क्या रहा?

सरकार की जीडीपी का मात्र 0.03 प्रतिशत हिस्सा ही सरकार बुजुर्ग पेंशन के नाम पर खर्च करती है। एक संगठन के अनुमान के मुताबिक देश में 728 ओल्ड ऐज होम है इनमें से 547 की उपलब्ध जानकारी के अनुसार 325 होम नि:शुल्क है जबकि 95 ऐसे है जहाँ रहने के पैसे देना होते है वही 116 दोनों प्रकार के है। सर्वाधिक ओल्ड ऐज होम केरल में है जिनकी संख्या 124 के करीब है।

देश में आज 97000 बेड ही ओल्ड ऐज होम में उपलब्ध है अनुमान कहता है कि अगले 10 सालों में 9 लाख बिस्तरों की आवश्यकता पड़ने वाली है। स्थति कितनी भयानक होगी इससे अनुमान लगाया जा सकता है।

1 मई 2016 से शंघाई में तो कानून लागू कर दिया गया है कि बच्चे यदि अपने माता पिता से नहीं मिलते तो माता पिता को बच्चों पर केस करने का अधिकार होगा तथा बच्चों के क्रेडिट स्कोर कार्ड में यह जोड़ा जाएगा जिससे उन्हें मिलने वाले लोन, वित्तीय सुविधाएं,योजनाओं के लाभ से वंचित किया जा सके।

हमारे यहां के बुजुर्ग चाहे अपमान में रह लेंगे लेकिन अपने घर की बात चारदीवारी में रखने के चलते अपनी समस्या किसी से नहीं कहेंगे इसलिए हमारे यहां ऐसी व्यवस्था की कल्पना करना सही नहीं होगा। किन्तु सरकार के लिए आवश्यक है कि वर्द्धजनों को कष्ट देने की सही शिकायतों पर कड़ी कार्यवाही करते हुए सभी सरकारी योजनाओं के लाभ तथा सरकारी नौकरियो व सेवाओं से वंचित करने संबधी नियमो निर्माण करें।

-सौरभ जैन

 

 

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