राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर हो राज्य व केंद्र सरकार में सामंजस्य

Delhi Govt.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

दिल्ली की जनता प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच पिसती दिखाई दे रही है। केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ (Delhi Govt.) आम आदमी पार्टी ने 11 जून को रामलीला मैदान में महारैली करने की घोषणा की है। वास्तव में जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तब से ही केंद्र सरकार के साथ रिश्तों में कड़वाहट रही है और यह कड़वाहट मुख्यमंत्री द्वारा लै. गर्वनर व केंद्र सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन तक पहुंच गई। आपसी द्वंद्व का यह खेल आज तक जारी है। दिल्ली सरकार के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो 11 मई को निर्णय आया, उससे दिल्ली की आम आदमी पार्टी की बाछें खिल गई। इस निर्णय से दिल्ली की सरकार को अपने नौकरशाहों पर कार्यपालका और विधायी शक्तियां मिली।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि खुद की विधानसभा वाले (Delhi Govt.) केंद्र शासित प्रदेशों की हैसियत राज्यों के बराबर है और उनकी कार्यपालक शक्तियों का विस्तार उन सभी विषयों तक होगा, जिन पर उन्हें कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन दिल्ली चूंकि राष्टÑीय राजधानी है इसलिए विधि व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार केंद्र के पास रहेंगे। इस निर्णय से उत्साहित दिल्ली की सरकार ने तुरंत नौकरशाहों के तबादले के आदेश कर दिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार एलजी को सरकार की सलाह के अनुसार इसे स्वीकृति देनी थी लेकिन एलजी ने इन्हें कुछ दिनों के लिए लटका दिया और इस दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को एक अध्यादेश लाकर इस पर रोक लगा दी।

हालांकि अध्यादेश के पक्ष में भाजपा के अपने तर्क है। उनका मानना है कि चूंकि (Delhi Govt.) दिल्ली राष्टÑीय राजधानी है और बड़ी संख्या में राजनयिक मिशनों और अंतर्राष्टÑीय संगठनों की मेजबानी करता है। राजधानी शहर पर केंद्र सरकार का नियंत्रण विदेशी सरकारों के साथ प्रभावशाली समन्वय स्थापित करता है। अमेरिका, फ्रांस, बर्लिन आदि कई देशों में भी इस प्रकार की व्यवस्था है। लेकिन दिल्ली की सरकार का केंद्र की सरकार के साथ अब इस मामले में पेंच फंसा हुआ है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि सर्वोच्चय न्यायालय के फैसले के खिलाफ भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश दिल्ली के लोगों के अधिकारों का हनन है जो दिल्ली की प्रगति में बाधक है।

शक्तियों के हस्तांतरण की यह लड़ाई अब राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही है। राजनीतिक स्वार्थों की इस लड़ाई में विकास प्रभावित होता है और आखिरकार नुकसान जनता का होता है। राजनीतिक पार्टियों को प्रदेश व देश हित में कुछ हद तक अपने राजनीतिक स्वार्थों को तिलांजलि देकर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार के बीच सामंजस्य स्थापित करना चाहिए, इसी में ही देश, प्रदेश व जनता की भलाई है।