पशुओं को दें बस ये उपचार, दूध से कर देंगे मालोमाल

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नियमित खुराक पर दे अधिक ध्यान

एग्रीकल्चर डेस्क | पशु से अच्छा दूध प्राप्त करना हमारा हक है लेकिन ये भी जरूरी है कि हम उसकी नियमित खुराक पर भी ध्यान दें। सबसे पहले तो अच्छे दूध वाली नस्ल का चुनाव करना, समय-समय पर उसे कृमिनाशक दवा देना, टीकाकरण करवाते रहना, समय अनुसार पशु के गोबर, रक्त आदि कि जांच करवाना जरूरी है। इसके अलावा पशु को संतुलित आहार व खनिज तत्व देना अति लाजमी है।

अकसर देखने में आता है कि पशु बार-बार रीपीट होने लग जाता है जोकि एक बड़ी समस्या है। ये समस्या मुख्यत: पशु पर ध्यान न देने कि वजह से होती है क्योंकि पशु को संतुलित आहार नहीं मिल पाता व तय आयु पर शरीर का वजन पूरा नहीं हो पाता है। अधिकांश लोग तो इस समस्या से त्रस्त होकर पशु को ओने-पौने दामों में बेच देते हैं।

प्रजनन सबंधी मुख्य समस्याओं में नऐ दूध का न होना, फुरावट होना, पीछा दिखाना व बच्चेदानी का पलट जाना है। इन समस्याओं को लेकर कई बार पशुपालक पशु का किसी कुशल चिकित्सक से उपचार न करवाकर देसी नुक्सों से उपचार करने लग जाते हैं जिससे बाद में पशु का उपचार करना कठिन साबित हो जाता है। अगर पशुपालक इस और थोड़ा सा भी ध्यान दें तो इस समस्या से छुुटकारा पाया जा सकता है।

ये है उपचार

इस समस्या से त्रस्त पशुपालक अपने मवेशी पर थोड़ा सा ध्यान दें तो रीपीट होने की समस्या हट सकती है। इसके लिए बछड़ियों व कटड़ियों को नियमित रूप से उम्र के हिसाब से काफ स्टार्टर, ग्रोवर व फीड खिलाना अति जरूरी है तथा निर्धारित मात्रा में खनिज तत्व मुख्य रूप से दें तथा पशु के हीट में आने पर चिकित्सक की देख रेख में कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए। ये बात जरूर ध्यान में रखें कि पशु कि बच्चेदानी में संक्रमण होने पर उसका समय पर उपचार जरूर करवाया जाए।

जेर की समस्या है तो

कई बार पशु की ब्याने के बाद 6 से 8 घंटे के मध्य जेर नहीं गिरती जोकि एक समस्या तो है लेकिन सही उपचार से पशु कि जेर गिर जाती है अगर पशु कि इस समयावधि में जेर नहीं गिरती तो इसके लिए पशु को इकबोलिक दवा पशु चिकित्सक कि देख रेख में दें लेकिन हाथ से जेर निकलवाने से परहेज रखें क्योंकि इससे बच्चेदानी में जख्म होकर संक्रमण हो सकता है।

बंध पड़ने की समस्या

अप्रैल-मई तक नई तूड़ी आ जाती है तो पशुओं में बंध पड़ने की समस्या बढ़ जाती है। क्योंकि आज-कल गेहूं की कई किस्में हैं जो बाली निकालने के बाद भी दूसरी किस्मों के मुकाबले तेज हवा से जमीन पर नहीं लेटती क्योंकि किसान इन किस्मों को पसंद करते हैं। जब से इस तरह कि किस्में आई हैं पशुओं में बंध पड़ने का प्रतिशत बढ़ा है।

इसका मुख्य कारण गेहूं के तने में सैलुलोज का अधिक मात्रा में होना है जोकि दूसरे तत्वों के मुकाबले में हजम नहीं होता इसलिए नई तूड़ी के साथ ही ये उक्त समस्या व हाजमें कि गड़बड़ी बढ़ जाती है। इस समस्या से पशु कि आंतों में बहुत ज्यादा सूजन होने से पशु सख्त गोबर करता है व गोबर के साथ काफी जोर भी लगाता है। इस दौरान अगर पशु को समय पर सही उपचार नहीं मिलता तो उसकी मौत भी हो जाती है।

ये है उपचार

बंध पड़ने पर सबसे पूर्व योग्य चिकित्सक की देख-रेख में उपचार बेहद जरूरी है जिसके लिए प्रोबाईटिक्स पाऊडर का प्रयोग करें जोकि सैलुलोज व दाने-चारे को आसानी से हाजम करके आंतों की सूजन दूर कर लाभदायक जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाकर पशु को सामान्य गोबर पर लाता है। पशुपालक अपने पशुओं को नई तूड़ी डालना शुरू करें तो प्रत्येक पशु को 10 से 20 ग्राम प्रोबाईटिक्स पाऊडर लगातार 15 दिनों तक जरूर दें।

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