गड़बड़ी ईवीएम में या राजनीतिक दलों की सोच में ?

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद ईवीएम के रखरखाव को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं और ईवीएम के जरिये धांधली के प्रयासों का मामला गर्मा गया है। कांग्रेस पार्टी द्वारा मतदान के बाद ईवीएम वाले स्ट्रांग रूम के आसपास सीसीटीवी की मरम्मत के बहाने लैपटॉप और मोबाइल फोन के साथ संदिग्धों को देखे जाने और ईवीएम से छेड़छाड़ की गंभीर साजिश रचने के आरोप लगाए गए हैं और यह भी कहा गया है कि कई ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें अधिकारी पिछले दरवाजे से स्ट्रांग रूम के अंदर जाते देखे गए हैं।

प्रदेश में सागर तथा अनूपपुर में मतदान के दो-तीन बाद ईवीएम स्ट्रांग रूम में पहुंचने और भोपाल के स्ट्रांग रूम में तीन घंटे तक बिजली गुल रहने तथा उस दौरान सीसीटीवी काम न करने के गंभीर आरोप भी सामने आए हैं। अगर ये सभी आरोप सही हैं तो निश्चित रूप से यह बेहद गंभीर मामला है। हालांकि राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कांताराव द्वारा कहा गया है कि राज्य के स्ट्रांगरूम की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह पुख्ता है और स्ट्रांगरूम को सभी की उपस्थिति में सील किया गया है, सुरक्षा बलों की तैनाती है, इसलिए किसी तरह की आशंका नहीं होनी चाहिए। ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर उठ रहे आरोप नए नहीं हैं बल्कि अरसे से विपक्षी दल सदैव ईवीएम के विरोध में सुर बुलंद करते रहे हैं।

विधानसभा चुनावों तथा अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में ईवीएम के बजाय मतपत्रों के इस्तेमाल को लेकर 17 राजनीतिक दलों के प्रस्ताव को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए गत दिनों अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि ऐसी धारणा गलत है कि ईवीम के बजाय मतपत्रों के जरिये चुनाव ज्यादा विश्वसनीय है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्पष्ट किया कि हर मशीन के ठीक या गलत होने की संभावना रहती है और यह उपयोग करने वालों पर निर्भर करता है कि वे उसका कैसे इस्तेमाल करते हैं।

अदालत की इस टिप्पणी के बाद ईवीएम के सही इस्तेमाल की जिम्मेदारी और जवाबदेही अब चुनाव आयोग तथा संबंधित अधिकारियों की ही है। इससे पहले तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत बैलेट पेपर से मतदान कराए जाने की मांग को खारिज करते हुए कह चुके थे कि निष्पक्ष तथा पारदर्शी चुनावों के लिए देश में अत्याधुनिक वीवीपैट तथा ईवीएम मशीनों से ही मतदान कराया जाएगा। इसी वर्ष 27 अगस्त को निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव सुधार के मद्देनजर बुलाई गई मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की बैठक में सभी राष्ट्रीय व 51 राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था और बैठक में आयोग द्वारा ईवीएम तथा वीवीपैट से जुड़ी समस्याओं का संज्ञान लेकर शंकाओं के संतोषजनक समाधान का आश्वासन देते हुए सकारात्मक संकेत दिया गया था।

भले ही उसके बाद भी कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल ईवीएम के विरोध का राग अलापते रहे हैं किन्तु आयोग के इस तर्क को अब सुप्रीम कोर्ट ने भी पुख्ता कर दिया है कि कुछ दलों के विरोध के चलते मतपत्रों पर वापस लौटना सही नहीं होगा। दरअसल आयोग नहीं चाहता कि बूथ कैप्चरिंग का दौर वापस आए। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त रावत कह चुके हैं कि आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और लोगों को खुली चुनौती दी थी कि वे ईवीएम हैक करके दिखाएं किन्तु कोई आगे नहीं आया। उनका कहना है कि जो हारता है, वह किसी को तो जिम्मेदार ठहराता ही है, इसी तर्ज पर खेल में हारने पर रैफरी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है और चुनाव में हारने पर ईवीएम को।

2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की धमाकेदार जीत हो या कुछ अन्य राज्यों के चुनावों में पार्टी की सरकार बनने का मामला, हर मौके पर ईवीएम पर संशय की उंगलियां उठाई गई लेकिन यही आवाजें उस वक्त खामोश रही, जब इन्हीं ईवीएम की बदौलत कुछ उपचुनावों में विपक्षी दलों ने प्रचण्ड जीत हासिल की। जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीत लीं तो ईवीएम अच्छी थी लेकिन जैसे ही पंजाब व गोवा में बुरी तरह शिकस्त हुई और दिल्ली एमसीडी व विधानसभा उपचुनाव में उनके प्रत्याशी हारे तो उनको लगने लगा कि इससे छेड़छाड़ की गई है। जब उनको न्यौता दिया गया कि वे आएं और इसमें छेड़छाड़ को साबित करें तो वे ऐसा नहीं कर पाए।

चुनाव आयोग पर हो भरोसा: हालांकि कुछ अवसर ऐसे आए हैं, जब ईवीएम के पूरी तरह सुरक्षित होने के दावों पर सवालिया निशान लगे थे लेकिन अब चुनाव आयोग द्वारा दिए जा रहे इस भरोसे पर तो यकीन करना ही चाहिए कि ईवीएम को इस तरह बनाया गया है कि उसमें गड़बड़ी नहीं हो सकती और अब आयोग ऐसी मशीनें भी तैयार करा रहा है, जो छेड़छाड़ होते ही स्वत: बंद हो जाएंगी, साथ ही वीवीपैट के जरिये मतदाता को उसके मत की जानकारी देने वाली पर्ची मुद्रित करने की भी व्यवस्था की जा रही है।

ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग द्वारा यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि ईवीएम के फेल होने का प्रतिशत मात्र 0.6 फीसदी ही है। ऐसे में हम इस तथ्य को भी कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं कि चुनाव आयोग विभिन्न अवसरों पर तमाम राजनीतिक दलों के साथ-साथ अन्य लोगों को भी ईवीएम हैक करने की चुनौती दे चुका है और आश्चर्य की बात है कि ईवीएम पर सवाल उठाने वाला कोई भी दल या कोई भी व्यक्ति इस चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत तक नहीं जुटा सका। ऐसे में ईवीएम की साख पर इस प्रकार के सवाल बार-बार उठाए जाने का आखिर क्या औचित्य है?

योगेश कुमार गोयल

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