संतोषी सदा सुखी

everlasting happiness - sach kahoon

एक महात्मा भिक्षा के लिए एक किसान के द्वार पर पहुँचे, तो उन्होंने खिड़की से देखा कि पूरा परिवार चिंताग्रस्त मुद्रा में बैठा है। महात्मा ने उनकी चिंता का कारण पूछा। किसान ने बताया, ‘हमारे यहाँ इस बार फसल थोड़ी कम हुई है, अन्न इतना भर है कि आठ माह के लिए ही पर्याप्त होगा, हम शेष चार माह कैसे गुजारा करेंगे?’ महात्मा ने कहा, ‘मेरे साथ चलो, मैं प्रबंध करा देता हूँ?’ स्वामी जी उसे अपने एक परम शिष्य, अन्न के बड़े व्यापारी के यहाँ ले गए और किसान को उसकी आवश्यकता से दो-तीन बोरी अधिक अन्न दिलाकर विदा किया।

किसान अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक गाड़ी में अन्न रखकर गाँव की आरे चल पड़ा। गाँव के बाहर एक प्याऊ था, जहाँ एक वृद्धा अपनी किशोर नातिन के साथ राहगीरों को जल पिलाकर उनसे जो भी मिलता था, उससे गुजर-बसर करती थी। किसान ने खुशी-खुशी जल पिया और कुछ अन्न किशोरी को देने लगा। इस पर वृद्धा ने कहा कि अभी तो हमारे पास सात-आठ दिन के लिए पर्याप्त अन्न है। किसान सुनकर चकित हो गया, एक मैं हूँ जो आठ माह के लिए पर्याप्त अन्न होते हुए भी शेष चार माह के लिए चिंतित हूँ और इसे सात-आठ दिन का अन्न होने पर भी संतुष्टि है। उसे समझ आया कि संतोष संग्रह में नहीं, बल्कि मन की संतुष्टि में है।

राष्ट्रपति लिंकन की महानता

कहावत है कि क्रोध पर विजय प्राप्त करने वाला ही जितेन्द्रिय हो सकता है। सेना के एक प्रमुख अधिकारी ने अमेरिका के तत्कालीन रक्षामंत्री के ऑर्डर को ठीक से समझ न पाने के कारण कोई भूल कर डाली। जब रक्षामंत्री को यह बात मालूम हुई तो वह राष्ट्रपति लिंकन के पास पहुँचे और क्रोध से बिफरते हुए बोले, ‘श्रीमान्, काफी गड़बड़ हो गई है।’ लिंकन के पूछने पर रक्षामंत्री ने उन्हें विस्तार से सारी कहानी सुनाई। फिर बोला, ‘अब आप देखिए कि मैं उस जनरल के बच्चे की कैसी खिंचाई करता हूँ। अभी उसे पत्र लिखता हूँ।’ ठीक है उसे अवश्य पत्र लिखिए और उसमें जितने कठोर से कठोर शब्दों का प्रयोग कर सकते हो करिए, लिंकन ने कहा।

अपने नेता की स्वीकृति मिली तो रक्षामंत्री ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए खूब गालीगलौच भरा पत्र लिखा। पत्र पूरा हो जाने पर वह राष्ट्रपति की मेज पर पहुँचा और विनम्रता के साथ बोला, ‘श्रीमान्, आप भी पत्र का अवलोकन कर लें।’ बिना रक्षामंत्री की ओर देखे ही राष्ट्रपति लिंकन ने कहा, ‘ठीक है, इस पत्र को फाड़कर फेंक दीजिए, ऐसे पत्र मन की भड़ास निकालने के लिए लिखे जाते हैं। मैं भी सदैव यही करता हूँ। मैं समझता हूँ कि ऐसा करके आपने अपने क्रोध पर काबू पा लिया होगा।’

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