विश्व व्यापार संगठन को खतरा

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भले ही किसी एक विचारधारा विशेष के लोग विश्व व्यापार संगठन की आलोचना करते हैं फिर भी वास्तविकता यह है कि इस संगठन को बचाया जाना व मजबूत किया जाना जरूरी है। केन्द्रीय वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने खुलासा किया है कि विश्व व्यापार संगठन बड़े नाजुक दौर से गुजर रहा है। भारत की यह फिक्रमंदी वाजिब है। यदि इतिहास पर दृष्टियात करें तो उद्यौगिक प्रगति के बाद शक्तिशाली देशों के विकासशील व गरीब देशों से टकराव पैदा हो गए थे। इंग्लैंड व फ्र ांस ने भारत व अन्य देशों से कच्चा माल सस्ते दामों में लूटने के लिए हर हथकंडा अपनाया। पहले इन शक्तिशाली देशों ने मशीनरी व तकनीक से वंचित देशों के साथ व्यापार शुरु करने के बाद लूट को बरकरार रखने के लिए सत्ता पर भी कब्जा किया।

कोई दो राया नहीं कि आज लोकतंत्रीय व मानववादी युग में सीधे तौर पर राजनीतिक दखलंदाजी तो खत्म हो गई है परंतु व्यापार में तानाशाही की आदत ज्यों की त्यों है। यह प्रवृति ही आज विश्व व्यापार संगठन के संकट की मुख्य वजह है। यहां भी गुटबाजी पैदा हो रही है। शक्तिशाली देश अपना माल बेचने के लिए विकासशील देशों पर दवाब बढ़ा रहे हैं, खासकर किसानों को दी जा रहीं सब्सिडीस खत्म करने पर जोर दे रहे हैं। विकासशील देशों में सरकारों पर सार्वजनिक दवाब है जिस कारण ये देश पक्षपात के विरूद्ध एकजुट हो रहे हैं। अमेरिका-भारत पर किसानों की सब्सिडीज खत्म करने का दवाब डाल रहा है, जिसका भारत व चीन द्वारा विरोध करना जायज है। अमेरिका का विश्व व्यापार संगठन के प्रति रवैया काफी सख्त है।

चाहे ट्रंप कह रहे हैं कि अमेरिका इस संगठन से बाहर नहीं होगा परंतु उनका यह कहना अपने आप में दुनिया को अमेरिका की अहमियत का अहसास करवाना है। अमेरिका, भारत, चीन में किसी भी देश का इस संगठन से बाहर होना सारी दुनिया के व्यापार को गड़बड़ा सकता है। संगठन के प्रमुख रोबर्टो ऐजवेडो का यह कहना बिल्कुल ठीक है कि यदि विश्व व्यापार संगठन ना होता तो विश्व में फिरे से विश्व युद्ध होता। संयुक्त व्यापार की नींव ईमानदारी, निष्पक्षता व कल्याणकारी सोच पर टिकी होती है। जब किसी देश का किसान लड़खड़ाता है तो वह दुनिया से ज्यादा कमाने की इच्छा रखता है, जो विवादों का कारण बनती है। विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों को ईमानदारी से दूसरों के हितों की रक्षा करनी चाहिए। संयुक्त व्यापार के बिना किसी भी देश का विकास संभव नहीं। आर्थिक तानाशाही का समय निकल चुका है।

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