तमिलनाडु में सता पक्ष की तुच्छ राजनीति

Kairana News
कोर्ट ने तीन नामजद समेत चार लोगों के खिलाफ महिला के साथ में सामूहिक दुष्कर्म किये जाने का मामला दर्ज करने के आदेश दिए है।

तमिलनाडू में द्रमुक के वयोवृद्ध नेता एम करूणानिधि के निधन के साथ एक युग का अंत हो गया है। वे पिछले छह दशक से राजनीति में थे और पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे तथा उन्होंने राजनीति, प्रशासन, साहित्य, सिनेमा आदि तमिलनाडू के सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी छाप छोडी। उनके निधन से न केवल राज्य की राजनीति में अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भी एक शून्य पैदा हुआ है। चेन्नई में उनको अंतिम विदाई देने के लिए बडी संख्या में लोग जुटे।

प्रधानमंत्री मोदी, पांच राज्यों के मुख्यमंत्री तथा अनेक शीर्ष नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनके सम्मान में संसद की कार्यवाही एक दिन के लिए स्थगित की गयी हालांकि वे कभी भी सांसद नहंी रहे। तथापि उनकी प्रबल प्रतिद्वंदी अन्नाद्रमुक ने उनके निधन पर भी तुच्छ राजनीति की और यह राजनीति चेन्न्ई के मरीना बीच पर उनकी समाधि को लेकर हुई जहां पर पहले से तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की समाधियां हैं।

राज्य सरकार ने प्रोटोकॉल प्रक्रिया और पूर्वोद्दाहरण का उल्लेख करते हुए द्रुमक नेता, उनके गुरू सीएन अन्नादुरई की समाधि के नजदीक उनकी समाधिक बनाने की अनुमति नहंी दी। करूणानिधि के परिवार के लोगों ने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और न्यायालय ने सरकार के निर्णय को निरस्त किया। इससे स्पष्ट हो गया कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्धिता किस सीमा तक गिर सकती है। तथापि दोनों पार्टियों ने अपने बडे नेता खो दिए हैं और राज्य में राजनीतिक स्थिति अस्थिर सी हो गयी है।

विभिन्न राज्यों में आश्रय गृहों में अबोध लडकियों और महिलाओं के साथ यौन अत्याचारों की विभिन्न घटनाएं सामने आयी हैं। हमारे देश को पहले ही महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश घोषित किया जा चुका है और राज्यों से आ रही ऐसी भयावह खबरों ने देश को ओर शर्मसार किया है। बिहार के बाद उत्तर प्रदेश भी इस श्रेणी में शामिल हो गया जब देवरिया के एक आश्रय गृह से एक दस वर्षीय बालिका बाहर भाग निकली और उसने प्राधिकारियों को वहां रह रही बालिकाओं की दशा के बारे में सूचित किया जिनके साथ मुजफ्फरपुर आश्रय गृह की तरह यौन अत्याचार किए जा रहे थे।

अब तक 24 बालिकाओं को बचाया जा चुका है और 18 बालिकाएं गायब हैं। इस मामले में भी सीबीआई जांच होगी किंतु ये घटनाएं यही नहंी रूकती हैं। प्रतापगढ, पीलीभीत और हरदोई जिले में आश्रय गृहों का जिला मजिस्टेज्ट के छापों के बाद अनेक महिलाएं गायब मिली। इन आश्रय गृहों को चलाने वाले गैर-सरकारी संगठन महिलाओं के साथ अत्यचार कर रहे इन आश्रय गृहों को चलाने के लिए सरकारी धन भी मिलता है। उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में व्यापक रिपोर्ट मांगी है। केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय अंतत: जाग गया है और उसने इन घटनाओं की गहन जांच का निर्णय किया है।

दिल्ली के विधायकों को उपहार:

दिल्ली की आप सरकार ने 2019 के आम चुनावों और 2020 में विधान सभा चुनावों से पूर्व विकेन्द्रीकरण और विकास को पार्टी का मंत्र बना दिया है। पिछले मंगलवार को केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के 70 विधायकों के लिए एक बडा उपहार दिया है और विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि की राशि 4 करोड से प्रति वर्ष बढाकर 10 करोड कर दी है। विधायक इस बात से खुश हैं कि विधायक निधि को बढाने की उनकी मांग को स्वीकार किया गया है किंतु प्रश्न उठता है कि यह अतिरिक्त राशि आएगी कहां से और अनेक विधायकों ने अभी तक अपनी विद्यमान राशि का उपयोग भी नहंी किया है। सरकार के कार्यों में विकेन्द्रीकरण से क्या दिल्ली में विकास होगा कि ये विधायक अपने मतदाताओं को तुष्ट करेंगे। देखना यह भी है कि क्या शहरी विकास मंत्री के इस प्रस्ताव मेंं नौकरशाही कोई अडचन तो पैदा नहंी करेगी क्यंोकि दिल्ली में यह आम बात है। क्या दिली के राजनिवास से पहले ही इस बारे में कुछ खुसर-पुसर सुनाई दे रही है?

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हौसले बुलंद:

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। राज्य में स्थानीय निकायों के उपचुनावों में कांग्रेस ने सत्तारूढ भाजपा को हराया है। राज्य के नए कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इससे एक नई शुरूआत की है। कांग्रेस को 9 सीटें मिली हैं जिसमें से 3 सीटें कमलनाथ के निर्वाचन क्षेत्र में हैं। दूसरी ओर भाजपा को केवल 4 सीटें मिली हैं। इस वर्ष के अंत तक वहां विधान सभा चुनाव होने हैं। कमलनाथ का मानना है कि राज्य में बदलाव की हवा चल रही है और चौहान की जन आशीर्वाद योजना का पदार्फाश हो गया है। भाजपा ने कहा है कि इन चुनावों के परिणाम जनता के रूख का संकेत नहंी है। चुनावी पंडित राज्य में अभी दोनों दलों के 50-50 आसार बता रहे हैं।

हरियाणा में कोटा खारिज:

हरियाणा में आरक्षण के पक्षधरों को एक झटका लगा है। मंगलवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने खट्टर सरकार के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें पिछडे वर्गों में आय के आधार पर शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश और भर्ती में प्राथमिकता देने की अनुमति दी गयी थी। पिछडे वर्गों के तीन लाख रूपए तक आय वाले लोगों को प्राथमिकता देने के उपवर्गीकरण के बारे में न्यायालय ने कहा है कि यह स्वेच्छाचारी वर्गीकरण है। इसका तात्पर्य है कि राज्य सरकार एक हाथ से लाभ दे रही है और दूसरे हाथ से वापस ले रही है। इस आदेश से उन एमबीबीएस छात्रों का हौसला बढा है जिन्होने सरकार के इस निर्णय को चुनौती दी थी। नयायालय ने छात्रों के लिए नए सिरे से काउंसिलिंग करने के आदेश दिए हैं और कहा है कि आरक्षण के बारे में कोई उपवर्गीकरण नहीं किया जाएगा। आशा की जाती है कि राज्य सरकार इस आदेश से कुछ सबक लेगी।

झारखंड ने केन्द्र के सुझाव को अस्वीकार किया:

झारखंड ने केन्द्र के सुझाव को अस्वीकार किया और केन्द्र इस बात से सहमत है किंतु इससे भानुमति का पिटारा खुल सकता है। राशन के स्थान पर लाभार्थियों के खाते में खाद्य सब्सिडी के सीधे हस्तांतरण की केन्द्र की प्रायोगिक परियोजना को रघुवर दास सरकार ने स्वीकार नहंी किया है। केन्द्र की स्वीकृति मिलने के बाद राज्य सरकार ने इसे समाप्त कर दिया है और इसका कारण यह बताया है कि रांची के नागरी विकास खंड में इस परियोजना के कार्यान्वयन में प्रशासन को तकनीकी समस्या का सामना करना पडा। इस परियोजना के कार्यान्वयन में अनेक तकनीकी और कानूनी अडचनें हैं। इस प्रायोगिक परियोजना के अंतर्गत यदि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत राशन नहंी लिया गया तो लाभार्थियों को प्रति माह 1 रूपए प्रति किलोग्राम सब्सिडी के रूप में मिलेगा। यह विरोधाभासी है और इसलिए इस परयोजना को समाप्त कर दिया गया है। इस परियोजना को कर्नाटक, हरयिाणा और आंध्र प्रदेश ने भी लागू किया था। क्या इन राज्यों के लाभार्थी झारखंड से सबक लेकर इसे समाप्त करने की मांग करेंगे?

इंफा

 

 

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