क्रांतिकारी गंगू मेहतर से अंग्रेज क्यों खौफ खाते थे?

Revolutionary Gangu Mehtar

गंगू मेहतर विट्ठुर के शासक नाना साहब पेशवा की सेना में नगाड़ा बजाते थे। गंगू मेहतर को कई नामों से पुकारा जाता है। गंगू मेहतर को पहलवानी का भी शौक था। जिसकी वजह से उन्हें गंगू पहलवान के नाम से भी पुकारा जाता था। सती चौरा गांव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था, कुश्ती के दांव पेच एक मुस्लिम उस्ताद से सीखने के कारण गंगूदीन नाम से पुकारे जाने लगे और लोग इन्हें श्रद्धा प्रकट करने के लिए गंगू बाबा कहकर भी पुकारते थे। 1857 की लड़ा़ई में इन्होंने नाना साहब की तरफ से लड़ते हुए अपने शार्गिदों की मदद से सैंकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा था। और इस कत्ल ए आम से अंग्रेजी सरकार बहुत सहम-सी गई थी।

जिसके बाद अंग्रेजों ने गंगू मेहतर को गिरफ़्तार करने का आदेश दे दिया। गंगू मेहतर घोड़े पर सवार होकर वीरता से अंग्रेजों से लड़ते रहे। अंत में गिरफ़्तार कर लिए गए। जब वह पकड़े गए तो अंग्रेजों ने उन्हे घोड़े से बाँधकर पूरे शहर में घुमाया और उन्हें हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर जेल की काल कोठरी में रख दिया और तरह-तरह के जुल्म किये। गंगू मेहतर को फांसी की सजा सुनाई गई है। उसके बाद कानपुर में इन्हे बीच चौराहा पर 8 सितम्बर 1859 को फाँसी के फंदे पर लटका दिया जाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश भारत के इतिहास में इनका नामो निशान नहीं है।

यह नाम जातिवाद के कारण इतिहास के पन्नों में कहीं सिमट-सा गया है। शहीद गंगू मेहतर अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों को ललकारते रहे। “भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी की गंध है, एक दिन यह मुल्क आजाद होगा।” ऐसा कहकर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को क्रान्ति का संदेश दिया और देश के लिए शहीद हो गए। कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गई है। आजादी के इस वीर सपूत को शत-शत नमन!

 

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