जिन्दगी क्यों भार स्वरूप लगने लगती है?

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जीवन से जुड़ा एक बड़ा सवाल है कि विषम परिस्थितियां क्यों आती है? जिन्दगी क्यों भार स्वरूप लगने लगती है? क्यों हम स्वयं से ही खफा से रहने लगते हैं? इसका सबसे बड़ा कारण है हमने जीने के जो साफ-सुथरे तरीके थे या जो जीवनमूल्य थे उन्हें भुला दिया है। जिंदगी का मकसद अगर खुद को खुश रखते हुए अपने से जुड़े एवं आस-पड़ोस के लोगों की भलाई की चाहत है तो इनमें अब एक धुंधला-सा रंग चढ़ गया है। शायद यही वजह है कि हमारे समाज की सामूहिक जिंदगी और व्यक्तिगत जिन्दगी छीजती जा रही है, इसमें गिरावट दर्ज की जा रही है और अंतरात्मा की आवाज पर गौर करने के बजाय अनसुना करने, उसकी अवहेलना करने का प्रचलन, किसी चालू फैशन की तरह, जोर पकड़ता जा रहा है। आर्थर रूबिन्स्टीन ने तो कहा है कि ‘मैंने यह पाया है कि यदि आप जिंदगी को प्यार करते हैं, तो जिंदगी भी आपको प्यार करती है।’ हमारी समस्याओं का मूल कारण भी यही है कि हम जिन्दगी को प्यार करना ही भूल गये हैं।

आराम और सुकून से चल रही जिंदगी में अगर अचानक ऐसी कोई घटना घट जाए, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की तो ऐसी स्थिति में अधिकांश लोग बिलकुल घबरा जाते हैं। हालाँकि कई तो ऐसे बौखला उठते हंै कि बाकी लोग भी विचलित हो जाते हैं। सभी के जीवन में कभी-न-कभी विषम परिस्थितियाँ आती हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि आप उनसे घबराकर हार मान बैठें। ऐसी स्थितियों में सहजता एवं सहिष्णुता जरूरी है। मार्क ट्वेन ने कहा कि ‘जीवन मुख्य रुप से अथवा मोटे तौर पर तथ्यों और घटनाओं पर आधारित नहीं है। यह मुख्य रुप से किसी व्यक्ति के दिलो दिमाग में निरन्तर उठने वाले विचारों के तूफानों पर आधारित होती है।’

उतार-चढ़ाव, हर्ष- विषाद एवं आशा-निराशा का नाम ही जिन्दगी है, वेन डब्ल्यू डायर ने कहा भी है कि हर चीज या तो बढ़ने का एक अवसर है या बढ़ने से रोकने वाली एक बाधा। चुनाव आपको करना है। संतुलन एवं सहजता जरूरी है। मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार सहजता मनुष्य का प्राकृतिक गुण है, जो सबको आकर्षित करता है और एक-दूसरे को जोड़ने का काम भी करता है। यह विषम परिस्थितियों के बीच समता की स्थापना करता है। असफलता को सहन करने की शक्ति देता है। आइंस्टाइन जब कभी किसी प्रयोग में असफल हो जाते या किसी अन्य कारण से तनावग्रस्त होते, तो उसी समय वायलिन बजाने बैठ जाते। वायलिन बजाने में वे इतने मगन हो जाते थे कि उन्हें अपनी असफलता के विषय में कुछ भी याद नहीं रहता था। इस गतिविधि से वे पूरी तरह शांत हो जाते और नई ऊर्जा के साथ नये प्रयोग में जुट जाते थे।

जब भी हम जी-जान से किसी कर्म में लग जाते हैं तो सफलता मजबूर होकर हमारे कदम चूमती है। उसे चूमना ही होता है, वह बंधी हुई है नियम से, जो कालांतर से चला आ रहा है। यदि आप कहीं फेल हो गए हैं तो ऐसा नहीं है कि सृष्टि ने आपके साथ धोखा कर अपना नियम बदल दिया है। ऐसा नहीं होता, हमें सहजता एवं धैर्य से इन वितरीत परिस्थितियों का सामना करना चाहिए। जबकि अधिकांशत: देखने में आता है कि हम उन्हीं परिस्थितियों में साथ सहज रह पाते हैं जो हमारे मनोनुकूल होती हंै। जबकि हर स्थिति में सहजता जरूरी होती है क्योंकि ऐसा होने पर ही हम विषम परिस्थितियों में धैर्य बनाए रख सकते हैं और अपना आपा नहीं खोते हंै। आर्कविशप डेसमण्ड टुटु ने कहा कि ‘आप जहां भी हैं, वहीं पर अपना थोड़ा-सा क्यों न हो अच्छा काम करते रहें, यही छोटी-छोटी अच्छी बातें मिलकर संसार को जीत सकती हैं।’

तो क्या इंसानी समाज अपनी स्वभावगत उदात्त चीजों को सहेजने के बजाय इन्हें किसी कोने में पड़ी रद्दी की टोकरी में डालता जा रहा है? क्या इंसान किसी अंधेरे, संकरे बदबूदार, दमघुटे दरिया में बगैर पतवार संभाले बहता जा रहा है? क्या वह किन्हीं अनिश्चित और खतरनाक उद्देश्यों की ओर आंख मूंदे भागता जा रहा है? यकीनन नहीं, नहीं! वक्त आसमान में परवाज भरती चिड़िया के पंख पर भले ही सवार हो, लेकिन इंसान की तबीयत ही कुछ ऐसी है कि वह पंख के पार भी देखता है, भारी पहाड़ों तक को लांघता है, वक्त से जूझता है और जिंदगी की दिशा में नए-नए रास्ते तलाशता है। मैर्कस औयरिलियस ने कहा कि ‘यदि आप किसी बाह्य कारण से परेशान हैं, तो परेशानी उस कारण से नहीं, अपितु आपके द्वारा उसका अनुमान लगाने से होती है, और आपके पास इसे किसी भी क्षण बदलने का सामर्थ्य है।’

परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हो सबसे पहले जरूरत है शांत स्वभाव की। कहते हैं न कि बुरे वक्त में समझदार मनुष्य पहले से भी ज्यादा समझदार हो जाता है और फिर यही समय तो आपके धैर्य, सोच और सहनशीलता की परीक्षा का होता है। ऐसी स्थिति में सबसे पहले शांत रहकर अपना दिमाग पूरी तरह इसमें लगा देना चाहिए ताकि बद से बदतर होती स्थिति को सुधारने पर विचार कर सकें। अपनी समस्या का जिक्र केवल अपने चुनिंदा विश्वसनीय परिचितों से ही करें, जो आपको ऐसे समय में सही सलाह दे सकें। ज्यादा लोगों को बताने से स्थिति आपके विपरीत भी हो सकती है और हास्यास्पद भी। सी. डब्ल्यू. वेन्डेट ने कहा कि ‘जीवन में सफलता इतना अधिक प्रतिभा अथवा अवसर का विषय नहीं है जितना वह लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता और डटे रहने का है।’

अधिकतर देखने में आया है कि विषम परिस्थितियों में लोग अपने इष्ट को या तो अचानक बहुत याद करने लगते हैं या फिर उनसे शिकवा-शिकायत और धमकी भरी बातें शुरू कर देते हैं। ऐसा व्यवहार ठीक नहीं, विषम परिस्थितियाँ तो केवल आपकी परीक्षा लेती हैं। कई लोग घबराकर इसे अपने पर आई मुसीबत मानते हैं और इसकी जिम्मेदारी वे दूसरों पर डालने लगते हैं। ऐसे में अमूमन नकारात्मक सोच पैदा हो ही जाती है, लेकिन इसे दरकिनार कर सकारात्मक सोच पर ही स्वयं को केंद्रित करना चाहिए।

धैर्य से हर कदम फूँक-फूँककर चलने से आखिरकार आप विषम परिस्थिति पर विजय पा ही लेते हैं। सहजता व्यक्तित्व के विकास की सीढ़ी है। यह एक ऐसा गुण है, जो व्यक्ति की एक अलग पहचान बनाता है। आशा, उम्मीद की ये किरणें बदले हुए मायनों और मकसदों में भी बुराई और भलाई का भेद सिखाती हैं। ये बताती हैं कि कितनी भी गाढ़ी निराशा क्यों न हो, यह बस चंद दिनों की मेहमान होती है कि इससे आगे इंसानी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के एहसासों का खुला आसमान छिटका पड़ा है।

इस दिशा में इकलौती कोशिश भी एक अहम शुरूआत का पहला कदम साबित होती है, जरूरत बस बदले सुरों में चीजों को स्वीकार करने की तैयारी की है। बड़ी बातों के मायने होते हैं तो छोटी बातों के भी। कितनी ही बार बड़े काम आसानी से हो जाते हैं, पर छोटी चीजें देर तक अटकाए रहती हैं। बड़ी मुसीबतें और दुख झेल लिए जाते हैं, छोटे-छोटे दुखों से उबरना कठिन हो जाता है। दरअसल शुरू में हमें छोटे कामों की अहमियत ही नहीं पता चलती। मुक्केबाज मोहम्मद अली कहते हैं,दर्द, सामने खड़ा पहाड़ नहीं देता, जिस पर चढ़ाई करनी है। परेशान जूते में फंसा छोटा कंकड़ करता है। यही कंकड़ जीवन को हरा-भरा नहीं होने देता।
-ललित गर्ग

 

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