कमजोर तू नहीं, तेरा वक्त है,
व्यर्थ में ही यों न झिझक।
मुश्किलें तो वक्त के साथ बदलती हैं,
इन्हीं से तो जिन्दगी संवरती है।
ग्रीष्म में सूरज का भी होता है तिरस्कार,
शीत में उसका ही होता हैं इन्तजार।
उजियाला तो हर अंधेरी रात बाद होता है,
वक्त कहां किसी के लिए ठहरता है।
अपने भूत को तुझे भुलाना होगा,
भविष्य में तभी तो संघर्ष होगा।
जीवन बस हुनर का ही तो खेल है,
बिना इसके सब बेमेल है।
सागर की अपनी क्षमता है,
मांझी भी कब-कहां थकता है।
ग्रहण तो चन्द्र पर भी लगता है,
फिर चांदनी रात भी वही करता है।
वर्षा भी सूखे में सयानी लगती है,
बाढ़ में वहीं भयावह बनती है।
जीवन में कभी खुशी तो कभी गम है,
टिकता वही है जिनके हौंसलों में दम है।
-अवधेश माहेश्वरी
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