युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बना फतेहगढ़ का अखाड़ा

Arena of Fatehgarh

यहां से निकलते हैं सेना, पुलिस के जवान और अंतराष्ट्रीय पहलवान

  • बच्चों को कबड्डी और कुश्ती के दांव पेच सिखा रहे संजीत कौशिक

जुलाना(सच कहूँ/ कर्मवीर)। जुलाना-नंदगढ़ पहुंच मार्ग पर छोटा सा गांव है फतेहगढ़, जिसे आसपास के इलाके में छान्या नाम से भी जाना जाता है। सांय करीब 6 बजे का समय है और गांव से बाहर सरकारी स्कूली से सटी खाली जमीन (निर्माणाधीन मिनी स्टेडियम) पर दर्जनों बच्चे कुश्ती और कबड्डी के दांव पेंच लगा रहे हैं। इन बच्चों को सरकार के खेल विभाग का कोई कोच नहीं बल्कि गांव का ही युवक संजीत कौशिक और एक वृद्ध पहलवान जयभगवान ही दांव पेंच सीखा रहे हैं। माहौल पूरी तरह से खेलमय है। पसीने से तर बतर सभी खिलाड़ियों की आंखों में कुछ खास करने का सपना है।

क्योंकि इसी गांव की मिट्टी ने पिछले 19 वर्षों में कई सेना और पुलिस के जवान दिये हैं तो कई खिलाड़ियों ने अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर अपना दमखम दिखाकर नाम कमाया है। इस अखाड़े के शुरू होने की दास्तां है तो मार्मिक, लेकिन इसके शुरू होने से गांव के बच्चों का स्वास्थ्य मजबूत हो ही रहा है, उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की नई राह भी मिल रही है।

पिता का सपना कर रहे पूरा

गांव निवासी संजीत कौशिक (46) बताते हैं कि उनके पिता भैयाराम कौशिक सरकारी स्कूल में हिंदी अध्यापक थे। उनकी खेलों के प्रति बड़ी रूचि थी। जिसके चलते वे स्कूल में बच्चों को बैडमिंटन और कुश्ती के लिए न केवल प्रेरित करते थे, बल्कि समय निकालकर उन्हें इन खेलों के गुर भी सिखाते। उनके पिता का सपना था कि गांव के बच्चे खेलों में अंतराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाएं। लेकिन अचानक वर्ष 1990 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई। संजीत कौशिक ने बताया कि उस दौरान वह नौंवी कक्षा का छात्र था। कुछ वर्ष बाद मन में आया कि क्यों न पिताजी का सपना साकार किया जाए। इसी सपने को जह्न में लेकर अपने खेत के एक कोने में 5-7 बच्चों को ही कबड्डी और कुश्ती के गुर सिखाने लगे।

नामी पहलवान जयभगवान का मिला साथ

इस कार्य में अपने जमाने के नामी पहलवान रहे गांव निवासी जयभगवान (63) ने सहयोग देना शुरू किया। गांव के बच्चों को खेलों के प्रति जागरूक किया गया और देखते ही देखने उनके अखाड़े में बाल खिलाड़ियों की संख्या बढ़ने लगी।

खिलाड़ियों ने अंतरराष्टÑीय स्तर तक चमकाया नाम

बाल खिलाड़ी युवा हुए तो वे जिला, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्टÑीय स्तर पर नाम कमाने लगे। इसी अखाड़े की मिट्टी में पसीना बहाने वाली मनीषा दलाल ने वर्ष 2010 के एशियाड खेलों में कबड्डी गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम की सदस्या रही। मनीषा इस समय हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात है। सुदेश दुहन कुश्ती खेलते हुए 4 विदेशी टूर किए और 800 मीटर की दौड़ में स्टेट अवार्ड जीता। इसके बाद वह कुश्ती कोच के पद पर नियुक्त हुई। इस तरह से फतेहगढ़ के अखाड़े से निकले कई युवा हरियाणा, दिल्ली व चंडीगढ़ पुलिस में तैनात हैं तो कई युवा भारतीय सेना में जाकर देश की रक्षा कर रहे हैं।

अब दो स्थानों पर चल रहे अखाड़े

संजीत कौशिक ने बताया कि 8 वर्ष पहले गांव में पंचायती जमीन में मिनी खेल स्टेडियम मंजूर हुआ था। स्टेडियम के नाम पर उस जमीन पर कुछ खास काम तो नहीं हुआ, लेकिन उसी जमीन एक टुकड़े पर अब अखाड़ा चलाया जा रहा है। जिसमें सुबह-शाम दर्जनों बच्चें खेल के गुर सीखते हैं। इसी तरह से जुलाना कस्बे में जेबीएम स्कूल के खेल मैदान में इसी तरह का अखाड़ा शुरू किया गया है, जिसमें जुलाना कस्बा और निकटवर्ती गांवों के युवा कुश्ती और कबड्डी खेलने आते हैं। दोनों ही स्थानों पर वे अपनी सहयोगियों के साथ बच्चों को खेल के गुर निरंतर सीखा रहे हैं।

इन होनहारों ने चमकाया अखाड़े का नाम

1. मनीषा दलाल, वर्ष 2010 के एशियाड खेलों में कबड्डी गोल्ड मेडल, अब हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर

2. सुदेश दुहन, 800 मीटर की दौड़ में स्टेट अवार्डी, अब कुश्ती कोच

3. सरोज कबड्डी स्टेट मेडल

4. पूनम कुश्ती स्टेट मेडल

5. प्रदीप कुमार कबड्डी स्टेट मेडल।

6. जसमेर सिंह (सेना)

7. बिजेन्दर सिंह (सेना)

8. मुकेश कुमार चंडीगढ़ पुलिस

9. अजय कुमार चंडीगढ़ पुलिस

10. सुनील कुमार सेना में

11. सीटू देहली पुलिस

12. बिट्टू सेना में

13. भतेरी कबड्डी जिला मेडल

14. सुमन हरियाणा पुलिस ।

15. सागर सेना में।

16. अनिल कुमार सेना में।

17. सुनील कुमार सेना में।

18. जसमेर सेना में।

 

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