(पुण्यतिथि 05 मई के अवसर पर…) मुंबई (एजेंसी)। वर्ष 1960 में प्रदर्शित ब्लॉकबस्टर फिल्म मुगल-ए-आजम के मधुर संगीत को आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती है, लेकिन इसके गीत को संगीतबद्ध करने वाले संगीत सम्राट नौशाद ने पहले मुगल-ए-आजम का संगीत निर्देशन करने से इंकार कर दिया था।
कहा जाता है मुगल-ए-आजम के निर्देशक के. आसिफ एक बार नौशाद के घर उनसे मिलने के लिए गए। नौशाद उस समय हारमोनियम पर कुछ धुन तैयार कर रहे थे तभी के. आसिफ ने 50 हजार रुपए के नोटों का बंडल हारमोनियम पर फेंका। नौशाद इस बात से बेहद क्रोधित हुए और नोटों से भरा बंडल के. आसिफ के मुंह पर मारते हुए कहा कि ऐसा उन लोगों के लिए करना, जो बिना एडवांस फिल्मों में संगीत नहीं देते, मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा। बाद में के. आसिफ के मान-मनौवल पर नौशाद न सिर्फ फिल्म का संगीत देने के लिए तैयार हुए बल्कि इसके लिए एक भी पैसा नहीं लिया।
लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में 25 दिसंबर 1919 को जन्मे नौशाद का बचपन से ही संगीत की तरफ रुझान था और अपने इस शौक को परवान चढ़ाने के लिए वे फिल्म देखने के बाद रात में देर से घर लौटा करते थे। इस पर उन्हें अक्सर अपने पिता की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। उनके पिता हमेशा कहा करते थे कि तुम घर या संगीत में से एक को चुन लो। एक बार की बात है कि लखनऊ में एक नाटक कंपनी आई और नौशाद ने आखिरकार हिम्मत करके अपने पिता से बोल ही दिया- ‘आपको आपका घर मुबारक, मुझे मेरा संगीत…।’ इसके बाद वे घर छोड़कर उस नाटक मंडली में शामिल हो गए और उसके साथ जयपुर, जोधपुर, बरेली और गुजरात के बड़े शहरों का भ्रमण किया।
नौशाद के बचपन का एक वाकया बड़ा ही दिलचस्प है।
लखनऊ में भोंदूमल एंड संस की वाद्य यंत्रों की एक दुकान थी जिसे संगीत के दीवाने नौशाद अक्सर हसरतभरी निगाहों से देखा करते थे। एक बार दुकान मालिक ने उनसे पूछ ही लिया कि वे दुकान के पास क्यों खड़े रहते हैं? तो नौशाद ने दिल की बात कह दी कि वे उसकी दुकान में काम करना चाहते हैं। वे जानते थे कि इसी बहाने वे वाद्य यंत्रों पर रियाज कर सकेंगे। एक दिन वाद्य यंत्रों पर रियाज करने के दौरान मालिक की निगाह नौशाद पर पड़ गई और उसने उन्हें डांट लगाई कि उन्होंने उसके वाद्य यंत्रों को गंदा कर दिया है लेकिन बाद में उसे लगा कि नौशाद ने बहुत मधुर धुन तैयार की है तो उसने उन्हें न सिर्फ वाद्य यंत्र उपहार में दे दिए बल्कि उनके लिए संगीत सीखने की व्यवस्था भी करा दी।