MSG Bhandara: 77वें स्थापना माह भंडारे में बड़ी तादाद में पहुँची साध-संगत

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MSG Bhandara: 77वें स्थापना माह भंडारे में बड़ी तादाद में पहुँची साध-संगत (छाया: सुशील कुमार)

देश-दुनिया में मनाया डेरा सच्चा सौदा स्थापना माह का पवित्र भंडारा

  • क्लॉथ बैंक मुहिम के तहत जरूरतमंद बच्चों को वितरित किए वस्त्र

सरसा (सच कहूँ/सुनील वर्मा)। MSG Bhandara: सर्वधर्म संगम डेरा सच्चा सौदा के 77वें स्थापना माह का भंडारा रविवार को शाह सतनाम-शाह मस्ताना जी धाम डेरा सच्चा सौदा सरसा सहित देश-दुनिया में धूमधाम से मनाया गया। पावन भंडारे पर आयोजित नामचर्चा सत्संग में बड़ी तादाद में साध-संगत ने शिरकत की। इस अवसर पर क्लॉथ बैंक मुहिम के तहत 77 जरूरतमंद बच्चों को वस्त्र वितरित किए गए। बता दें कि एमएसजी दातार बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने सन् 1948 के मई माह में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की, जिसे साध-संगत ने पावन भंडारे के रूप में मनाया। MSG Bhandara

सुबह 10 बजे पावन भंडारे की शुरूआत हुई। इसके पश्चात कविराजों ने भजनों व कव्वालियों के माध्यम से साध-संगत को निहाल किया। पावन भंडारे पर पहुंची साध-संगत ने ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का इलाही नारा बोलकर सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा के स्थापना माह के भंडारे की बधाई दी। इस अवसर पर साध-संगत ने बड़ी-बड़ी स्क्रीनों के माध्यम से पूज्य गुरु जी के पावन वचनों को श्रद्धापूर्वक श्रवण किया। इसके पश्चात भारतीय संस्कृति और संस्कारों को दर्शाती एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई, जिसमें दिखाया गया कि दुनिया में भारत की संस्कृति शीर्ष पर है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के चलते धीर-धीरे देश की युवा पीढ़ी भारत की संस्कृति से दूर होती जा रही है। देशवासियों को देश की संस्कृति से जोड़ने के लिए पूज्य गुरु जी के दिशा-निर्देशन में डेरा सच्चा सौदा लगातार कार्य कर रहा है। MSG Bhandara

डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया कि पूज्य गुरु जी युवा पीढ़ी को सत्संगों के माध्यम से देश की संस्कृति से जोड़ने के लिए जागरूक कर रहे हैं। भारत वर्ष की संस्कृति और संस्कारों को बचाने के लिए तथा युवा पीढ़ी में चरित्र निर्माण के लिए डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरुओं ने अपने अनुयायियों में अध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक और इंसानियत के गुणों को भरा जिससे उनका दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल गया। डॉक्यूमेंट्री का संदेश रहा कि आओ नेक इन्सान बनें, सब धर्मों का सम्मान करें, अपना व अपनी आने वाली पीढ़ियों के, सुनहरे भविष्य का निर्माण करें। तत्पश्चात पूज्य गुरु जी के नशों के खिलाफ जागरूक करते गीत ‘जागो दुनियां दे लोको’ और ‘आशीर्वाद मांओ का’ चलाए गए। पावन भंडारे की समाप्ति पर सेवादारों ने बड़ी तादाद में आई हुई साध-संगत को कुछ ही मिनटों में लंगर-भोजन और प्रसाद वितरित कर दिया।

छाया: सुशील कुमार

वचनों पर अमल करने से छू सकते हैं बुलंदियां: पूज्य गुरु जी

सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि सत्संग में क्यों आना चाहिए? सत्संग में क्या मिलता है? क्यों जरूरी है सत्संग पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इन्सान अपने-अपने काम धंधे में मस्त है। दिन-रात दुनियावी काम धंधों में मस्त रहने की वजह से आज के घोर कलियुग में इन्सान का इन्सानियत से भी विश्वास उठता जा रहा है। दूसरे शब्दों में इन्सानियत खत्म होती जा रही है, मानवता खत्म हो रही है। कारण, काम-धंधों में बिजी रहने की वजह से दिमाग पर लोड (बोझ) बढ़ता है, बहुत असर आता है, दिमाग (माइंड) डिस्टर्ब हो जाता है, टेंशन हो जाती है, परेशानियां आ जाती हैं। MSG Bhandara

टेंशनें, परेशानियां सिर्फ मालिक से दूर नहीं करती बल्कि बंदा अपने आप से भी दूर हो जाता है, उसे होश ही नहीं रहती कि उसे अपने लिए क्या करना है? आत्मा के लिए क्या करना है? शरीर के लिए क्या करना है? क्योंकि टेंशन, चिंता एक ऐसी चिता है जो जीते जी इन्सान को जलाती रहती है। एक वो चिता होती है जो मरणोपरांत जला देती है। तो कहानी खत्म हो जाती है। लेकिन ये चिंता ऐसी चिता है जो हमेशा चलती रहती है, कभी मार देती है, आदमी फिर जिंदा हो जाता है, फिर मरता है, फिर जिंदा होता है। तो ये टेंशन की वजह से शरीर में बहुत सारी बीमारियां भी लग जाती हैं और उन बीमारियों की वजह से फिर कुछ अच्छा नहीं लगता। चिड़चिड़ापन आ जाता है, दिलोदिमाग में हमेशा कहीं ना कहीं गुस्सा दिलोदिमाग में बेचैनी छाई रहती है। बीमारियों की वजह से शरीर नकारा सा होने लगता है। इन्सान के अंदर जीने की चाह तक खत्म हो जाती है। कई बार तो आपने सुना होगा कि लोग सुईसाइड कर जाते है, जो कि बिल्कुल गलत है, ऐसा नहीं करना चाहिए।

छाया: सुशील कुमार

हमारे धर्मों के अनुसार, आत्मघाती महापापी। इसलिए कभी भी सुईसाइड का तो सोचो भी ना। पर ये संभव कैसे हो? क्योंकि जब तक आदमी सत्संग में नहीं आता तो उसकी आत्मा की शक्ति नहीं बढ़ती यानि सोल पावर नहीं बढ़ती और जब तक आत्मिक शक्ति नहीं बढ़ेगी आत्मबल नहीं आता और आत्मबल नहीं आएगा तो वो परेशानियों से हमेशा दबा रहेगा, टेंशनों में घिरा रहेगा। इसलिए सत्संग जरूरी है, कि आप सत्संग में आएं, सुनें, अमल करें ताकि आपकी आत्मा को शक्ति मिले और आत्मबल से आप बुलंदियों को छू जाएं। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आत्मबल ऐसी शक्ति है, ऐसा बल है, जिसके अंदर आ जाता है वो रिवर्स हो सकता है यानि जिन गम, चिंता, टेंशनों की वजह से शरीर का नुकसान हुआ, काम धंधे में नुकसान हुआ। सुमिरन और सेवा करने से, आत्मिक शक्तियां जागृत होने से, आत्मबल आने से वो इन्सान फिर से शरीर को तन्दुरूस्त कर लेता है और काम-धंधे में बुलंदियों को छू जाता है। ऐसा हमारे करोड़ों बच्चों के साथ हुआ है।

पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि आज आदमी सत्संग में आकर लाभ उठा रहा है, जोकि भागों वाला है, नसीबों वाला है। क्योंकि कलियुग में सत्संग में आना आसान नहीं है। यहां सात ताकतें इंसान और परमात्मा के बीच में है और ये ही सत्संग से दूर रखती है। इनमें है काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, मन और माया। इन्हें चोर भी कहा जाता है क्योंकि ये इंसान के श्वासों को चुराती भी है, शक्ति इसलिए कहा जाता है कि ये आत्मा को दबाती है। काम वासना के कीड़े आज बढ़ते जा रहे हैं। आज इंसान नर-मादा के रिश्ते में सिमटकर रह गए हैं। राम-नाम का निरंतर जाप करके इंसान सातों चोरों से छुटकारा पा सकता है। MSG Bhandara

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