नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को भारत के निर्वाचन आयोग को बिहार राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति प्रदान कर दी है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि आयोग को मतदाता पहचान के लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वैध प्रमाण के रूप में स्वीकार करने की संभावना पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। Supreme Court News
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने 25 जून को इस प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह 28 जुलाई को पुनः इन याचिकाओं पर विचार करेगी। इस संदर्भ में चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक अपना लिखित पक्ष दाखिल करने का समय दिया गया है।
प्रक्रिया जारी रहेगी, कोई अंतरिम आदेश नहीं
अदालत ने इस विषय में कोई भी अंतरिम निर्देश पारित नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि बिहार में मतदाता सूची का यह विशेष पुनरीक्षण बिना किसी बाधा के चलता रहेगा। न्यायालय ने कहा कि यह मामला देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ों से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह मताधिकार जैसे मौलिक विषय को स्पर्श करता है।
याचिकाकर्ताओं ने प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की मांग की, किंतु न्यायालय ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मतदाता सूची का प्रारूप 1 अगस्त को प्रकाशित किया जाएगा और 28 जुलाई को ही इस मामले पर सुनवाई होनी है। इसलिए फ़िलहाल किसी रोक का औचित्य नहीं बनता।
राजनीतिक विपक्ष ने जताई आपत्ति
निर्वाचन आयोग की इस कार्यवाही को लेकर विपक्षी दलों में रोष व्याप्त है। कांग्रेस पार्टी ने इसे ‘सत्तारूढ़ दल के इशारे पर की गई चुनावी गड़बड़ी की कोशिश’ बताया है। अब तक इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में लगभग दस याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं, जिनमें इस प्रक्रिया को ‘असंवैधानिक’ कहा गया है।
इन याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस, राजद और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) जैसे संगठन शामिल हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि यह विशेष पुनरीक्षण इसलिए आवश्यक है ताकि सभी योग्य नागरिकों के नाम सूची में जोड़े जा सकें, अपात्र व्यक्तियों के नाम हटाए जा सकें, और पूरी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी एवं विश्वसनीय बन सके। Supreme Court News
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