कौन था नूर खान, जिसके नाम पर बना पाकिस्तान एयरबेस, भारत की सेना ने किया था तबाह!

Noor Khan Airbase
Noor Khan Airbase कौन था नूर खान, जिसके नाम पर बना पाकिस्तान एयरबेस, भारत की सेना ने किया था तबाह!

Noor Khan Airbase: भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुए चार दिन के सैन्य टकराव की गूंज अब भी दोनों देशों में सुनाई दे रही है। इस दौरान भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के कई अहम सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया। इन्हीं में सबसे अधिक चर्चा में रहा रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस। इस पूरे घटनाक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना दिया पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार के उस बयान ने, जिसमें उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि भारतीय ड्रोन हमलों में नूर खान एयरबेस को नुकसान पहुँचा और वहाँ तैनात कुछ सैनिक घायल हुए। इस स्वीकारोक्ति के बाद एक स्वाभाविक सवाल उठा—आखिर नूर खान कौन थे, जिनके नाम पर पाकिस्तान का इतना महत्वपूर्ण एयरबेस बना हुआ है?

नूर खान कौन थे? Noor Khan Airbase

नूर खान सिर्फ पाकिस्तान के एक सैन्य अधिकारी नहीं थे, बल्कि वे उन दुर्लभ व्यक्तित्वों में शामिल थे जिन्होंने भारत और पाकिस्तान—दोनों की वायु सेनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन भारतीय वायुसेना से शुरू होकर पाकिस्तान वायुसेना के सर्वोच्च पद तक पहुँचा और जीवन के अंतिम वर्षों में वे पाकिस्तान की सैन्य नीतियों के मुखर आलोचक बन गए।

नूर खान का जन्म 1923 में हुआ था, उस समय जब भारत और पाकिस्तान एक ही देश थे। उन्होंने रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज (RIMC) से शिक्षा प्राप्त की और 6 जनवरी 1941 को अविभाजित भारतीय वायुसेना (IAF) में पायलट ऑफिसर के रूप में कमीशन पाए।

द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवी पायलट

उस दौर में भारतीय वायुसेना में भारतीय अधिकारियों की संख्या बेहद सीमित थी, लेकिन नूर खान को शुरू से ही एक प्रतिभाशाली और साहसी पायलट के रूप में जाना जाता था। उन्होंने वेस्टलैंड वापिति, हॉकर हार्ट और हॉकर ऑडैक्स जैसे विमानों पर प्रशिक्षण लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने भारत–बर्मा फ्रंट पर कई जोखिम भरे मिशन उड़ाए। उनके साथियों के अनुसार, उड़ान भरना नूर खान के लिए सिर्फ पेशा नहीं बल्कि जुनून था, और वे सबसे कठिन परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटते थे।

बंटवारे के बाद पाकिस्तान वायुसेना का चुनाव

1947 के विभाजन के समय नूर खान के सामने भारत या पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का कठिन निर्णय था। उनका पैतृक क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया था और कई करीबी साथी अधिकारी भी पाकिस्तान वायुसेना में जा रहे थे।
इन्हीं कारणों से उन्होंने पाकिस्तान वायुसेना (PAF) को चुना। पाकिस्तान में उनका करियर तेजी से आगे बढ़ा और 1965 में वे पाकिस्तान वायुसेना के प्रमुख (Air Chief Marshal) बने।

1965 का युद्ध और आत्ममंथन

1965 के भारत–पाक युद्ध के दौरान नूर खान पाकिस्तान वायुसेना के मुखिया थे। वर्षों बाद उन्होंने खुलकर स्वीकार किया कि:
1965 का युद्ध पाकिस्तान ने शुरू किया था
देश इस युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार नहीं था
युद्ध के बाद सच्चाई की जगह प्रचार को बढ़ावा दिया गया
निष्पक्ष समीक्षा न होने के कारण ही 1971 जैसी बड़ी हार की जमीन तैयार हुई
उनकी यह ईमानदार स्वीकारोक्ति उन्हें पाकिस्तान के कई अन्य सैन्य नेताओं से अलग बनाती है।

पाकिस्तान की सैन्य सोच के आलोचक

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में नूर खान पाकिस्तान की सैन्य और रणनीतिक सोच के कटु आलोचक बन गए।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि: 1965 का युद्ध पाकिस्तान की गलती थी। भारत ने उस समय केवल आत्मरक्षा की।
भारत–पाक युद्ध किसी धर्म की लड़ाई नहीं थी। पाकिस्तान की समस्याओं की जड़ उसकी बार-बार युद्ध अपनाने वाली नीति है। उनके ये बयान पाकिस्तान के भीतर असहजता पैदा करने वाले माने जाते हैं।

नूर खान एयरबेस और ऑपरेशन सिंदूर का विरोधाभास

नूर खान के नाम पर बना एयरबेस आज पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों में से एक है। मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना ने इस एयरबेस को निशाना बनाया—ऐसा पाकिस्तान के आधिकारिक बयान से भी संकेत मिलता है। यह इतिहास का एक गहरा विरोधाभास है कि जिस व्यक्ति ने कभी भारतीय वायुसेना में सेवा की, उसी के नाम पर बने एयरबेस को दशकों बाद भारत ने एक सैन्य कार्रवाई में निशाना बनाया। नूर खान का जीवन भारत–पाक रिश्तों के जटिल इतिहास का प्रतीक है—जहाँ एक ही व्यक्ति साहस, पेशेवर ईमानदारी, आत्मालोचना और ऐतिहासिक विडंबना—सबका प्रतिनिधित्व करता है। ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में नूर खान एयरबेस की चर्चा सिर्फ एक सैन्य घटना नहीं, बल्कि उपमहाद्वीप के साझा और बंटे हुए इतिहास की याद भी है।