नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में काउंटर हलफनामा दाखिल किया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) को पहचान के लिए मान्य नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह दस्तावेज पहले से मौजूद मतदाता सूची के आधार पर बनाया गया होता है। चुनाव आयोग ने कहा कि यह पुनर्विचार प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के अंतर्गत एक नई शुरूआत के रूप में चलाई जा रही है। ऐसे में पूर्व के दस्तावेजों को स्वीकार करने से इस प्रक्रिया की वैधता प्रभावित होगी। वोटर आईडी केवल पहले से पंजीकृत मतदाता की पुष्टि करता है, यह नया पंजीकरण या उसकी सत्यता का विकल्प नहीं हो सकता। चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में आधार को भी नए नामांकन के लिए उपयुक्त दस्तावेज मानने से इनकार किया है।
आयोग ने कहा कि आधार केवल पहचान का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। आयोग ने आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 का उल्लेख करते हुए बताया कि आधार संख्या का होना भारत की नागरिकता का प्रमाण नहीं देता। हालांकि, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार को अन्य दस्तावेजों के साथ सहायक रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रस्तुत दस्तावेजों की सूची मात्र संकेतात्मक है, पूर्ण नहीं। राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से बाहर रखने पर आयोग ने फर्जी राशन कार्डों की बड़ी संख्या को वजह बताया। चुनाव आयोग ने यह हलफनामा 24 जून, 2025 के अपने एसआईआर आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की गई है।