Reliance Industries: अंबानी को तगड़ा झटका, 66 हजार करोड़ स्वाहा, व्यापार में मची हलचल

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Reliance Industries: अंबानी को तगड़ा झटका, 66 हजार करोड़ स्वाहा, व्यापार में मची हलचल

Reliance Industries:  अनु सैनी। यूरोपीय संघ (EU) ने हाल ही में एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसने वैश्विक ऊर्जा व्यापार में हलचल मचा दी है। EU ने ‘थर्ड नेशन’ यानी किसी भी तीसरे देश से आने वाले रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध (Ban) लगा दिया है। इसका सीधा असर भारत पर देखने को मिल रहा है, खासकर रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों पर, जो रूसी कच्चे तेल को खरीदकर रिफाइंड करने के बाद यूरोप को एक्सपोर्ट करती थीं।

क्या है EU का नया प्रतिबंध? Reliance Industries

अब यूरोप का कोई भी देश, दुनिया के किसी भी हिस्से से रूसी कच्चे तेल को रिफाइंड किए हुए प्रोडक्ट्स के रूप में भी नहीं खरीद सकेगा। यानी, यदि भारत या कोई और देश रूसी कच्चे तेल को रिफाइन कर यूरोप को बेचता था, तो वह अब संभव नहीं होगा। यह नियम इसीलिए लाया गया है ताकि रूसी तेल पर पूरी तरह से आर्थिक दबाव बनाया जा सके और उसकी आय के स्रोतों को रोका जा सके।

भारत पर सीधा प्रभाव

भारत, जो वर्तमान में लगभग 15 अरब डॉलर (₹1.25 लाख करोड़) के रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों का सालाना निर्यात यूरोप को करता था, अब उस व्यापार के खतरे में पड़ जाने की संभावना है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024-25 के वित्तीय वर्ष में भारत का पेट्रोलियम एक्सपोर्ट 27% घट चुका है — 19.2 अरब डॉलर से गिरकर 15 अरब डॉलर रह गया।
वहीं भारत रूस से सबसे सस्ते दामों पर तेल खरीद रहा था। मौजूदा समय में भारत की क्रूड ऑयल बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 44% से ज्यादा है, जो भारत की रिफाइनिंग लागत को कम करने और मार्जिन बढ़ाने में मदद करती थी।

रिलायंस इंडस्ट्रीज को सबसे बड़ा झटका

इस फैसले का सबसे गंभीर प्रभाव देश की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) पर पड़ा है। रिलायंस रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी आयातक (Importer) कंपनियों में से एक है। दिसंबर 2024 में, RIL ने रूसी कंपनी रोजनेफ्ट के साथ 10 वर्षों के लिए एक समझौता किया था, जिसके तहत वह रोजाना 5 लाख बैरल तेल आयात करती थी। इस डील का सालाना मूल्य करीब 13 अरब डॉलर था और इससे रिलायंस की रिफाइनिंग रणनीति का आधार बन गया था।
रिलायंस, रूस से मिडिल ईस्ट ग्रेड की तुलना में 3-4 डॉलर प्रति बैरल सस्ते दामों पर तेल खरीदकर उसे भारत में रिफाइन करती थी और यूरोप को डीजल, पेट्रोल जैसे उत्पाद निर्यात करती थी। लेकिन EU के इस नए प्रतिबंध के बाद अब रिलायंस को यूरोप के लिए यह व्यापार पूरी तरह बंद करना होगा।

शेयर बाजार में भारी गिरावट | Reliance Industries

EU के फैसले के बाद सोमवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों में 3.29% की भारी गिरावट दर्ज की गई। कंपनी का शेयर 1474.95 रुपए पर खुला और दिन के कारोबार के दौरान गिरकर 1423.05 रुपए तक पहुंच गया। अंत में यह 1428.20 रुपए पर बंद हुआ। शुक्रवार को यह शेयर 1476.85 रुपए पर बंद हुआ था। इसका मतलब है कि एक दिन में ही रिलायंस के शेयर ने करीब 50 रुपए की गिरावट दर्ज की।

मार्केट कैप में ₹66,000 करोड़ की गिरावट

इस गिरावट का सीधा असर रिलायंस इंडस्ट्रीज के मार्केट कैप पर पड़ा है। शुक्रवार को कंपनी का मार्केट कैप ₹19,98,543 करोड़ था जो सोमवार को गिरकर ₹19,32,707 करोड़ पर आ गया। यानी सिर्फ एक दिन में ही कंपनी की कुल बाजार पूंजी ₹65,835 करोड़ कम हो गई।

क्या कहते हैं जानकार?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट केवल शुरुआत हो सकती है। अगर रिलायंस को जल्द ही कोई नया बाजार नहीं मिलता या EU के इस निर्णय में कोई ढील नहीं दी जाती, तो कंपनी को और नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि, कंपनी के पास एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के विकल्प मौजूद हैं, जहां वह अपने रिफाइंड प्रोडक्ट्स बेच सकती है, लेकिन यूरोपीय बाजार का नुकसान फिलहाल भारी दिखाई दे रहा है।

ट्रंप के बयानों का नहीं पड़ा असर, लेकिन EU ने किया वार

पिछले कुछ समय से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका की सरकार लगातार रूस से तेल खरीद पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे, लेकिन भारत और चीन जैसे देशों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। वहीं EU ने रूस की कमाई रोकने के लिए सबसे सख्त और प्रभावी कदम उठाया — थर्ड पार्टी के जरिए भी रूसी तेल पर रोक।

भविष्य की राह

अब भारत और खासकर रिलायंस इंडस्ट्रीज के सामने बड़ी चुनौती यह है कि वह रिफाइंड प्रोडक्ट्स के लिए नया एक्सपोर्ट मार्केट ढूंढे। संभवतः यह मध्य एशिया, अफ्रीका या दक्षिण अमेरिका हो सकता है, लेकिन वहाँ यूरोप जैसा बड़ा और स्थिर बाजार नहीं है। साथ ही रूस से तेल खरीदने की रणनीति पर भी पुनर्विचार करना पड़ सकता है। EU के इस नए निर्णय ने न सिर्फ रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाया है, बल्कि भारत और खासकर रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों के लिए चिंता का कारण बन गया है। यह फैसला न केवल भारत के ऊर्जा व्यापार की दिशा को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक तेल व्यापार के समीकरणों को भी बदल देगा।