एक नवम्बर को पंजाब ने अमृतसर व हरियाणा में गुरुग्राम में अपना स्वर्ण जयंति समारोह मनाया। दोनों ही प्रदेशों ने 1966 के वक्त के संघर्ष के दिनों को याद किया व वर्तमान की उपलब्धियों पर गर्व किया। दोनों राज्य खुश हैं कि वह 50 वर्ष के हो चुके हैं। कृषि प्रधान दोनों राज्यों ने देश के खाद्यान भण्डारों में बेहतरीन योगदान दिया है। बावजूद इसके इन राज्यों के किसान खुदकुशियां कर रहे हैं। खुदकुशी के इस रूझान के आर्थिक, कृषिगत व सामाजिक कई कारण हैं, जिन्हें भलिभांति समझकर उनका सम्पूर्ण हल किए जाने की आवश्यकता है। दोनों राज्यों के मध्य नदी जल बंटवारा, राजधानी का बंटवारा एवं भाषाई आधार पर कुछ जिलों के फेरबदल की मांग अभी भी एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है। इस समस्या का ठोस व सबको संतुष्ट कर देने वाला कोई हल अभी तक नजर नहीं आ रहा, जिसके चलते दोनों प्रदेशों के लिए ये मुद्दे बेहद जटिल हो रखे हैं। उधर 50 वर्ष में दोनों राज्यों का स्वरूप व राजनीति काफी बदल चुके हैं और भविष्य में अब ये स्थाई आकार लेते जा रहे हैं। यहां राजधानी की यदि बात न करें, तब भूगौलिक तौर पर अब आगे इन राज्यों में किसी बदलाव की कोई गुंजाईश नहीं है। हरियाणा में रह रहे पंजाबी भाषी लोगों ने अपना रिश्ता पूर्णत: हरियाणा से जोड़ लिया है व पंजाब में रह गए हिंदी व बागड़ी भाषी लोगों ने अपना रिश्ता पूर्णत: पंजाब से जोड़ लिया है, यहां कोई टकराव अब नहीं रहा। पंजाब में जरूर उसकी मातृभाषा पंजाबी का स्तर गिर गया है, वहां अब हिंदी व अंग्रेजी ने अपनी अच्छी खासी पैठ बना ली है, लेकिन पंजाब में पहुंच रहे प्रवासी पंजाबी से जुड़ रहे हैं। पंजाब का एक वर्ग अभी भी प्रदेश में पंजाबी के मान-सम्मान के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन भाषा भी एक बहते हुए जल की तरह होती है, जो नित्य प्रति अपना आकार, चाल-ढाल बदलती रहती है, जिसे यथावत बनाए रख सकना काफी जटिल होता है। भाषा के अलावा बात करें, तब दोनों प्रदेशों को अपने जल स्त्रोतों को मिल बांटकर उसका उपयोग करना चाहिए। प्राकृतिक स्त्रोत सबके सांझे हैं, ऐसे में इन पर विवाद किसी के भी हित में नहीं। दोनों प्रदेशों में उद्योगों के लिए बेहद माकूल माहौल है, दोनों प्रदेश शिक्षित हैं। ऐसे में ये अपने युवाओं के बल पर बेहतरीन भविष्य बना सकते हैं। कृषि, पशुधन, वानिकी के लिए भी दोनों प्रदेशों का समृद्ध इतिहास रहा है, इस क्षेत्र में अभी भी दोनों प्रदेश अग्रणी है, आगे भी यह ऊंचाई ये राज्य बनाए रख सकते हैं। अभी दोनों राज्यों में चिंता का विषय बढ़ रहा प्रदूषण, बीमार हो रही आबादी व महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध हैं। इन्हें यदि नियंत्रित न किया गया, तो दोनों ही प्रदेशों की समृद्धि को नजर लग सकती है। पंजाब नशे, प्रदूषण व नारी विरूद्ध हिंसा के चलते काफी हद तक हरियाणा से पिछड़ भी गया है। हरियाणा में जातीय तनाव है, जो हरियाणा की उपलब्धियों पर एक धब्बे की तरह है। खेलों में दोनों ही राज्य प्रयास कर रहे हैं, परंतु हरियाणा इसमें काफी आगे निकल चुका है। भारत के ये दोनों राज्य अपने आपमें बड़ा व छोटा भाई की मिसाल हैं। अत: यहां के राजनेताओं को सदैव यही प्रयास करने चाहिए कि इनमें मतभेद न बढ़ें और दोनों राज्य अपना हीरक जयंति समारोह एकसाथ व एक नई ईबारत के साथ मनाएं।
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