US Pakistan Relations: अमेरिकी नीति में पाक-प्रेम या रणनीतिक भूल?

US Pakistan Relations
US Pakistan Relations: अमेरिकी नीति में पाक-प्रेम या रणनीतिक भूल?

US Pakistan Relations: अमेरिका स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र समर्थक देश बताता है, लेकिन जब वह भारत और पाकिस्तान के बीच की स्थिति को आंकता है, तो बार-बार दोनों देशों को एक ही तराजू में तौलने की गलती करता है। यह नासमझी है या कोई रणनीतिक चालाकी, यह आज गंभीर विचार का विषय है। भारत एक सशक्त लोकतांत्रिक देश है, जहाँ संविधान सर्वोच्च है और जनता की इच्छा सर्वोपरि। इसके विपरीत पाकिस्तान में लोकतंत्र केवल एक मुखौटा है, जिसके पीछे सैन्य शासन अपनी मनमानी करता है। वहां वास्तविक सत्ता सेना के हाथों में है, और हर चुनी हुई सरकार सेना की कठपुतली बनकर रह जाती है।

पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। आजादी के बाद से अब तक वहां शायद ही कोई प्रधानमंत्री ऐसा रहा हो जो अपना कार्यकाल पूरा कर पाया हो। हुसैन सुहरावर्दी से लेकर इमरान खान तक, लगभग सभी निर्वाचित प्रधानमंत्रियों को या तो बर्खास्त कर दिया गया, जेल में डाला गया या जान से मार दिया गया। इमरान खान, जिन्हें सेना का समर्थन मिलने पर सत्ता मिली थी, जैसे ही उन्होंने स्वतंत्र रूप से बोलना शुरू किया, उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया और तोशखाना मामले में जेल भेज दिया गया। इससे पहले जुल्फिकार अली भुट्टो को सैन्य शासन के विरोध में फांसी दी गई थी। उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो को 2007 में एक आत्मघाती हमले में जान गंवानी पड़ी, जिसकी साजिश में आतंकी संगठन शामिल थे। US Pakistan Relations

नवाज शरीफ, जो तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, उन्हें भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल भेजा गया और आजीवन सार्वजनिक पद के लिए अयोग्य घोषित किया गया। परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने एक समय पाकिस्तान में तानाशाही शासन चलाया था, अंतत: निर्वासन में मर गए। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र केवल नाम मात्र का है, असली शासन सेना के इशारे पर चलता है। अब सवाल यह उठता है कि अमेरिका जैसे देश, जो खुद को लोकतंत्र का संरक्षक मानते हैं, वे बार-बार भारत और पाकिस्तान को एक नजर से क्यों देखते हैं? जब भारत की सीमाओं पर पाक प्रायोजित आतंकवाद हमला करता है, तब अमेरिका शांति और संयम का पाठ भारत को भी पढ़ाता है। यह दृष्टिकोण न केवल अनुचित है बल्कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की गरिमा का भी अपमान है।

अमेरिका को यदि वास्तव में लोकतंत्र की परवाह है, तो उसे पाकिस्तान की असलियत को स्वीकार करते हुए उसे आतंकवाद-समर्थक और सैन्य-शासित राष्ट्र घोषित करना चाहिए। उसके साथ व्यापार, सैन्य सहयोग और आर्थिक सहायता रोकनी चाहिए। भारत को भी अब स्पष्ट और सशक्त संदेश देना चाहिए कि वह पाकिस्तान जैसे अस्थिर और लोकतंत्र विरोधी देश की किसी भी तुलना को अस्वीकार करता है। पाकिस्तान को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहानुभूति दिलवाना, उन लोगों के साथ अन्याय है जो सच्चे लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं। समय आ गया है कि वैश्विक राजनीति में नैतिकता, पारदर्शिता और सच्चाई को प्राथमिकता दी जाए। भारत और पाकिस्तान को एक तराजू में तौलना न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी घातक है। भारत ने हमेशा शांति की बात की है, लेकिन वह अपनी संप्रभुता और लोकतंत्र की कीमत पर कोई समझौता नहीं करेगा। दुनिया को इस अंतर को समझना ही होगा।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)