नई दिल्ली। Reliance Industries News: रिलायंस इंडस्ट्रीज ने नये साल में केजी बेसिन पर सरकार के साथ 24.7 करोड़ डॉलर का विवाद सुलझने की उम्मीद जतायी है। कंपनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस विवाद अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अंतिम चरण में है और साल 2026 में इस पर फैसला आ सकता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास साल 2002 से केजी-डी6 ब्लॉक का परिचालन है। कंपनी ने तर्क दिया है कि उत्पादन साझेदारी अनुबंध के तहत गठित प्रबंधन समिति, जिसमें सरकार के दो प्रतिनिधि शामिल हैं, हर फैसले पर वीटो का अधिकार रखती है। कमेटी की पूर्व स्वीकृति के बिना न तो कोई खर्च किया जा सकता है और न ही कोई निर्णय लागू होता है। रिलायंस के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने इन सभी प्रक्रियाओं का पूरी तरह पालन किया है और अब तक सरकार ने कंपनी पर किसी अनियमितता का आरोप भी नहीं लगाया है। इसके बावजूद, खर्च हो जाने के बाद कुछ लागतों को अमान्य ठहराया जाना अनुबंध की भावना के विपरीत है।
वहीं, सरकार का कहना है कि रिलायंस द्वारा दिखाये गये कुछ खर्च लागत-वसूली के दायरे में नहीं आते, इसलिए उससे विंडफॉल टैक्स (अप्रत्याशित मुनाफे पर कर) की मांग की गयी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज का कहना है कि नयी खनन लाइसेंसिंग नीति के तहत हुए अनुबंध में यह स्पष्ट है कि आॅपरेटर पहले अपनी पूरी लागत वसूल करेगा, उसके बाद ही सरकार को लाभ में हिस्सा मिलेगा। विज्ञप्ति में कहा गया है कि परियोजना में सरकार की ओर से कोई प्रत्यक्ष निवेश नहीं हुआ, जबकि व्यावसायिक जोखिम मुख्य रूप से आॅपरेटर ने उठाया। इसके बावजूद सरकार को अब तक पेट्रोलियम के रूप में पर्याप्त मुनाफा मिला है। साथ ही, बाजार आधारित कीमतों के प्रावधान के बावजूद गैस की बिक्री कम दाम पर की गई, जिससे देश को सस्ती गैस मिली और सरकार को सब्सिडी पर खर्च कम करने में मदद मिली। Reliance Industries
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