बचपन का सबसे बड़ा दुश्मन है बाल मजदूरी

Child wages of childhood is the biggest enemy

अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। यह दिवस सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है जो 1950 से मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य विश्व के 2.5 अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। कानूनी कागजों और प्रावधानों में घरेलू काम, सड़क, ढाबों, होटलों, पंक्चर की दुकानों गाड़ियों में हवा भरने सहित विभिन्न धंधों में बाल श्रम पर सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है। इसके लिए कानून बना कर अधिनियमों व उप नियमों का उल्लंघन कर किसी बच्चे से काम लेने पर जुमार्ना व सजा का प्रावधान तथा पुनर्वास तक की योजना निर्धारित की। पढ़ना लिखने के दिन गरीबी और परिवार का पेट पालने के लिए बाल वर्ग घुटते मन से बचपन को पिसने में लगा हुआ है। नन्हें बाल हाथों में पुस्तक कलम की जगह बेलचा, कुदाल, रिक्शा-ठेला हैंडिल, जूते, गिलास आदि देखने को मिल रहा है।

भारत में गरीबी कुपोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीति, बाल विवाह और बॉल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन है। आजादी के 73 साल के बाद भी हम इनसे निजात नहीं पा सके है। बच्चे देश का भविष्य है यह सुनते सुनते हमारे कान पक चुके है। मगर देश के कर्णधार आज तक बचपन को सुरक्षित जामा नहीं पहना पाए है। इससे अधिक हमारा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। 1959 में बाल अधिकारों की घोषणा को 20 नवंबर 2007 को स्वीकार किया गया। बाल अधिकार के तहत जीवन का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण, स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा, मनोरंजन, नाम, राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा से सुरक्षा, बदसलूकी, दुर्व्यवहार, बच्चों का गैर-कानूनी व्यापार आदि शामिल है।

बाल अधिकार बाल श्रम और बाल दुर्व्यवहार की खिलाफत करता है जिससे वह अपने बचपन, जीवन और विकास के अधिकार को प्राप्त कर सकें। बच्चों के सर्वांगीण विकास को मद्देनजर रखते हुए सबसे पहले बच्चों की शिक्षा पर अपना ध्यान देना होगा। सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाने में अव्वल रहता है। मगर गरीब बच्चे सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा समान स्तर पर मिलनी जरूरी है। देश में गरीबी के कारण भी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ कीएक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब 120 करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं।

भारत के संविधान में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से ऐसे कार्य या कारखाने आदि में नहीं रखा जाये। कारखाना अधिनियम, बाल श्रम निरोधक कानून आदि में भी बच्चों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है। मगर बच्चे आज भी घरेलू नौकर का कार्य करते हैं।  बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाये हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल-कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं।

चाय की दुकानों पर, फल-सब्जी से लेकर मोटर गाड़ियों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे-मोटे उद्योग धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं। राजस्थान, एम.पी., यू.पी., हरियाणा, पंजाब सहित विभिन्न प्रदेशों में बिहार और बंगाल के बच्चे मजदूरी करते देखने को मिल जायेंगे। सरकारी प्रयासों से कई बार प्रशासन ने ऐसे बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराकर उनके घरों पर भेजा मगर गरीबी के हालात इनकी प्रगति एवं विकास में अवरोध बने हुए हैं। जितने बच्चे बाल श्रम से मुक्त कराये जाते हैं, उससे अधिक बच्चे फिर बाल मजदूरी में फंस जाते हैं।

बच्चों को पढ़ने लिखने और खेलने कूदने से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर यत्न करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके। सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।
-बाल मुकुन्द ओझा

 

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