बचपन पर भारी पड़ते मोबाइल!

Infinitely, Mobile, Childhood!

आॅनलाइन गेम्स खेलने वाला हर व्यक्ति गेमिंग एडिक्शन का शिकार

Infinitely mobile at childhood!

प्रमोद भार्गव ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले दिनों रोगों के अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण (आईसीडी) में डिजिटल और विडियो गेम की लत को एक तरह का डिसआॅर्डर बताते हुए इसे मानसिक बिमारी यानी मनोविकार के रूप में वगीर्कृत किया है Infinitely mobile at childhood!।डब्लयूएचओ के इस वर्गीकरण में शामिल की गई बीमारियों का चिकित्सकीय इलाज करवाना जरूरी माना जाता है।डब्ल्यूएचओ ने डिजिटल माध्यमों पर गेमिंग की लत के अध्ययन के बाद बताया कि इस बीमारी का अपना ही एक साँचा होता है,इसके शिकार रोगियों में गेमिंग की लत इस हद तक बढ़ सकती है कि वह अपने जीवन के किसी भी अन्य पहलू की अपेक्षा गेमिंग को अधिक महत्वपूर्ण मानने लगते हैं।ऐसा नहीं है कि आॅनलाइन गेम्स खेलने वाला हर व्यक्ति गेमिंग एडिक्शन का शिकार है।

नींद, खानपान और शारीरिक गतिविधियां प्रभावित

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इसके लिए उस व्यक्ति के साल भर के गेमिंग पैटर्न को देखने की जरूरत होती है।अगर उसकी गेम खेलने की लत से उसके निजी, पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक और व्यवसायिक कामों पर असर पड़ने लगे। साथ ही गेमिंग की वजह से नींद, खानपान और शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होने लगे। तभी उसे ‘गेमिंग एडिक्ट’ यानी बीमारी का शिकार माना जा सकता है। इस तरह के लोग वीडियो गेम से उनके व्यवहार में बदलाव आने के कारण वे वास्तविक नहीं आभासी संसार में जीना शुरू कर देते हैं। गेम्स की दुनिया को सच मानते हुए बच्चे इसे वास्तविक जीवन में भी अपनाने की सोचते है। वो रोजमर्रा की जिंदगी में वीडियो गेम के करेक्टर की तरह व्यवहार करने लगते हैं। इससे धीरे-धीरे उनके व्यवहार में गुस्सा और जिद्दीपन आने लग जाता है।

पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। आज के डिजिटल युग में ‘बिना इंटरनेट सब सून’ वाली स्थिति है। बच्चे, युवा यहां तक कि हर उम्र के लोग इंटरनेट पर चैटिंग, आॅनलाइन गेम व शॉपिंग करते हैं। लेकिन चिंता इस बात की है कि आज बच्चों का बचपन रचनात्मक कार्यों की जगह डेटा के जंगल में गुम हो रहा है और बदलते परिवेश में बच्चों के दोस्त, खेल का मैदान, पार्क, सब कुछ इंटरनेट के एक एप्लीकेशन पर सिमट गया है।आउटडोर गेम्स से ज्यादा तवज्जो अब इंटरनेट गेम्स को मिलने लगी है।जिस उम्र में बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए उनका हमउम्र साथियों के साथ खेलना-कूदना, हंसना-बोलना जरूरी होता है, वे हाथ में मोबाइल लिए या फिर कंप्यूटर में कोई कृत्रिम गेम खेल रहे होते हैं।

पहले गली-मोहल्ले तथा खेल के मैदानों में सुबह-शाम बच्चों को खेलते हुए देखा जा सकता था। अब खेल मैदान भी खत्म हो रहे हैं और बचपन एक कमरे तक सिमट कर रह गया है। उनके खेल व मनोरंजन के तरीके बदल गए हैं। बच्चे पहले लुका-छिपी, गिल्ली- डंडा, रस्सी कूद, क्रिकेट, फुटबॉल, पतंग उड़ानें जैसे पारंपरिक खेलों से अपना मन बहलाते थे, वहीं अब बच्चे इन खेलों से दूर हो गए हैं। बच्चे अब सामूहिक खेलों के बजाय अकेले खेले जाने वाले मोबाइल गेम में ही अपना अधिकांश समय बिता रहे है, इससे सामूहिकता में रहने की परंपरा लगभग खत्म हो रही है।ऐसे बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास भी उतना नहीं हो पाता है जितना बाहर खेलने वाले बच्चों का होता है।शारीरिक श्रम नहीं करने से ये बच्चे कमजोर भी ज्यादा हो रहे हैं। खेल या व्यवहार में संवेदना के गायब होने का प्रभाव बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर पड़ रहा है।

आभासी संसार और तकनीकी गैजेट्स इंसान की सहूलियत तक सीमित नहीं हैं। इनके अजब-गजब इस्तेमाल की सनक इन्हें जानलेवा बना रही है। तभी तो पोकेमोन गो और द ब्लू व्हेल जैसे गेम्स बच्चों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। दुखद आभासी खेल के कारण जान देने के ऐसे वाकये रुक नहीं रहे हैं। साइबर संसार की अनदेखी-अनजान दुनिया में अपनी समझ और दिमाग को गिरवी रखने का यह कैसा जंजाल है? यह वाकई विचारणीय है कि तकनीक और सनक का यह मेल आत्मीयता, आपसी संवाद और सामाजिकता तो छीन ही रहा है, अब हमारा विवेक भी इसकी बलि चढ़ रहा है।लगातार टीवी व मोबाइल के सामने रहने से इनकी आंखे भी कमजोर होती है। यही वजह है कि आजकल छोटे बच्चों के जल्दी चश्में लग रहे है।

एक अध्ययन के मुताबिक 12 से 20 साल के किशोर बच्चों में इंटरनेट गेमिंग डिसआॅर्डर काफी तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक कि अमेरिका और यूरोप के मुकाबले एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसआॅर्डर के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे है। गौर करने वाली बात है कि स्मार्ट फोन की लत को चीन, कोरिया और ताईवान ने तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट वाली बीमारी में शुमार किया हैं। अभिभावकों के दबाव के बाद इंटरनेट की जानी-मानी चीनी कंपनी टेनसेंट ने किंग आॅफ ग्लोरी जैसे अपने लोकप्रिय खेल के लिए समय निर्धारित कर दिया है। 12 साल से कम उम्र के बच्चे दिन में केवल एक घंटे तक लॉग इन कर पाते हैं ,वही बड़े बच्चे केवल दो घंटे तक ही यह गेम खेल सकते हैं।साथ ही बच्चों के उम्र के दावे की जांच की भी पुख्ता व्यवस्था की गयी है। दक्षिण कोरिया में तो रात 12 बजे से सुबह 6 बजे तक 16 साल से कम के बच्चों के आॅनलाइन खेल पर प्रतिबंध है यह प्रतिबंध पिछले 7 साल से लागू है।जापान में तो जब बच्चे जरूरत से ज्यादा समय किसी गेम पर बिताते हैं तो कंप्यूटर पर अपने आप चेतावनी सामने आ जाती है।

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