पाक सरकार द्वारा बातचीत का न्यौता व हैवानियत

Invitation And Negotiation By The Pak Government

भारत-पाकिस्तान में सबंधों में यह बात सच्चाई बन गई है कि जब भी सुधार की उम्मीद बंधी है तो सीमा पर कुछ ऐसा घटित हो जाता है जो बनी बनाई खेल को बिगाड़ देता है। पाक के नए बने प्रधानमंत्री इमरान खान ने पड़ौसी देशों के साथ संबंध सुधारने का बयान देकर भारत की तरफ इशारा किया था। इसी तरह पाकिस्तान ने किसी ओर लड़ाई न लड़ने की बात कहकर कश्मीर मामले के बारे में नरम रूख अपनाने का संकेत दिया था। अब पाक की नई सरकार ने भारत के साथ बातचीत की पेशकश की। चिट्ठी आने से पहले ही पाक सैनिकों ने भारतीय बीएसएफ के एक जवान के साथ हैवानीयत करते हुए उसकी गर्दन व एक टांग काट दी और एक आंख निकालकर ले गए। पाकिस्तानी सेना यह बात अच्छी तरह जानती है कि ऐसी करतूत कभी भी भारत को बातचीत के लिए तैयार नहीं करेगी।

यह हैवानीयत इमरान सरकार के लिए चुनौती है। यह प्रतीत हो रहा है कि पाकिस्तान की सेना अपना दबदबा समाप्त करने के लिए तैयार नहीं। इमरान सरकार के लिए भी यह सख्त संदेश है कि सेना किसी भी शासक को अपनी इच्छा से काम करने देने के हक में नहीं। सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है कि वह सेना के परंपरागत अंदाज व दबदबे के खिलाफ बहादुरी कैसे दिखाएंगे? भारत प्रत्येक मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है, बशर्तें कि सीमा पर अमन कायम हो। बातचीत दोनों देशों के लिए सबसे बड़ी जरूरत है और पाकिस्तान में सेना व आतंकवादियों ने बातचीत के हालात खत्म करने के लिए हमेशा ही कोई न कोई साजिश बनाई है। अटल बिहारी वाजपाई व नवाज शरीफ लाहौर ऐलाननामा जारी कर अमन शांति के लिए हाथ बढ़ाते हैं तो कारगिल में पाक सेना हमला करती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाहौर जाते हैं तो पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हमला हो जाता है। भारत बातचीत की अहमीयत को समझता है, लेकिन बात तो तब ही बनेगी जब पाकिस्तान के शासक पूरी इच्छा शक्ति व बहादुरी से सेना व आतंकवादी संगठनों की परवाह न करते हुए मित्रता का हाथ बढ़ाएंगे। इमरान खान को यह समझना होगा कि यदि वह पाकिस्तान की राजनीति में नई इबारत लिखना चाहते हैं, तो चुनौतियों से निपटने के लिए बहादुरी दिखाएं, क्योंकि सत्ता प्राप्ति उद्देश्य नहीं बल्कि देश के लिए काम करने का केवल जरिया है।

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