खफा-खफा से धरतीपुत्र

Farmers in the center of politics

कृषि बिलों को लेकर आजकल देश के काश्तकारों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। केंद्र की मंशा है, 2022 तक इनकी आमदनी को दोगुना किया जाए। धरती के लालों का मंडियों में शोषण समाप्त हो। फसलों की लागत कम हो। उत्पादन में आशातीत वृद्धि हो। अंतत: धरतीपुत्र खुशहाल हों। मोदी सरकार ने इसके लिए एक देश-एक बाजार का मार्ग प्रशस्त किया ताकि कोई कारोबारी काश्तकारों से छल न कर सकें। इससे पूर्व चुनिंदा उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर कर दिया। किसानों को लगता है, ये कृषि अध्यादेश कारोबारियों के हित में हैं। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य-एमएसपी को समाप्त करना चाहती है। मंडियों को बंद करने की गहरी साजिश है।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग छोटे और मझले काश्तकारों का अस्तित्व समाप्त करने का षड्यंत्र है। इन विधेयकों में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल को भी साजिश की बू आई तो उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हालांकि इससे पूर्व लोकसभा में मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक के अलावा कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य विधेयक कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पेश किए। आवश्यक वस्तु- संशोधन विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है।

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने लोकसभा में इन विधेयकों को किसानों को बर्बाद करने वाला बताया जबकि केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफा देने के बाद कहा, किसानों की बहन और बेटी बनकर उनके साथ खड़े होने में उन्हें गर्व है। पदमश्री भारत भूषण त्यागी की राय इन विधेयकों की मुखालफत करने वालों से जुदा है। उन्होंने इन बिलों को किसानों के लिए वरदान बताते हुए कहा, ये महज कानून ही नहीं बनेंगे बल्कि मेरे किसान भाइयों के लिए स्वर्णिम द्वार की मानिंद होंगे। यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि विधेयकों को किसानों का रक्षा कवच बताते हुए कहा, 21वीं सदी में भारत का किसान बंधनों में नहीं रहेगा। खुलकर खेती करेगा। जहां मन होगा, अपनी उपज बेचेगा। यहां ज्यादा पैसा मिलेगा, वहां बेचेगा। किसी बिचौलिया का मोहताज नहीं रहेगा।

पंजाब, हरियाणा, यूपी के अलावा देश के दीगर सूबों के किसानों में इन पारित बिलों को लेकर खासा गुस्सा है। पंजाब और हरियाणा में तो काश्तकार इन बिलों का जमकर विरोध कर रहे हैं। किसानों ने 24 से 26 सितम्बर तक रेल रोको आंदोलन की घोषणा की है। 25 सितम्बर को राज्य बंद का आह्वान भी किया है। किसानों को आशंका है, मंडियां खत्म हो गयीं तो एमएसपी नहीं मिलेगा। वन नेशन-वन एमएसपी होना चाहिए। कीमत तय करने की कोई प्रणाली नहीं है। डर है कि इससे निजी कंपनियों को किसानों के शोषण का जरिया मिल जाएगा। किसान मजदूर बन जाएगा। कारोबारी जमाखोरी करेंगे। इससे कीमतों में अस्थिरता आएगी। खाद्य सुरक्षा खत्म हो जाएगी।

इससे आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी बढ़ने का अंदेशा है। दूसरी ओर विधेयकों में किए गए प्रावधान ये दर्शाते हैं, ये बिल धरतीपुत्रों के लिए मील का पत्थर साबित होंगे। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक में सरकार ने प्रावधान किया है, उपज कहीं भी बेच सकेंगे। इससे किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे। आॅनलाइन बिक्री होगी। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान समझौता से किसानों की आय बढ़ेगी। बिचौलिया खत्म होंगे। आपूर्ति चेन तैयार होगी। आवश्यक वस्तु-संशोधन से अनाज, दलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज अब अनिवार्य वस्तु नहीं रहेंगे। इनका भण्डारण होगा। कृषि में विदेशी निवेश आकर्षित होगा।

पदमश्री त्यागी इन प्रावधानों में सुर से सुर मिलाते हैं। कहते हैं, इससे न केवल उत्पादों की लागत घटेगी बल्कि आय में भी वृद्धि होगी। एक देश-एक बाजार को धरतीपुत्रों का भाग्यविधाता बताते हुए कहते हैं, इससे वे शोषण मुक्त हो जायेंगे। विधेयकों की आड़ में हो रही जमकर सियासत की आलोचना करते हैं। पदमश्री कहते हैं, एमएसपी किसानों और उपभोगताओं दोनों के हित में है। नए कानूनों से राष्ट्र, उत्पादक और उपभोक्ता तीनों खुशहाल होंगे। जमाखोरी खत्म होगी। लॉबिंग की विदाई हो जाएगी। विकेन्द्रीयकरण होगा। पदमश्री त्यागी कहते है, दरअसल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध भी जायज नहीं है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का डिजाइन समझना होगा। सच्चाई यह है, इसमें किसानों की साझेदारी होती है। सरकार की भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर पैनी नजर होती है। काश्तकारों को प्रॉडक्ट बेस वर्किंग की मानसिकता को त्यागना होगा। यदि किसान सच में खुशहाल होना चाहता है तो उसे बाजार की बारीकियों को भी समझना होगा।

सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी की शिरोमणि अकाली दल सबसे पुरानी और भरोसेमंद दोस्तों में एक है। मौजूदा समय में इसके केवल दो ही सदस्य-सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल लोकसभा में हैं। दरअसल सुखबीर चाहते थे, इन बिलों को पेश करने से पहले किसानों को विश्वास में लिया जाए। उन्हें उम्मीद थी, शंकाओं का समाधान हो जाएगा। वह यह भी चाहते थे, इन बिलों को चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए था। वह कहते हैं, पंजाब के किसानों ने देश को आत्मनिर्भर बनाया है। पंजाब ने 1980 में अनाज की जरुरत की 80 फीसदी आपूर्ति की।

अब केंद्रीय पूल में 50 फीसदी अनाज की आपूर्ति करता है। इन बिलों के पारित होने के बाद आहत शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बादल ने कहा, ये विधेयक किसानों की 50 साल की तपस्या को बर्बाद कर देंगे। उनका गुस्सा चरम पर है। बोले, एनडीए में रहेंगे या नहीं, यह फैसला भी जल्द ले लेंगे। कांग्रेस के महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा, किसानों की आजीविका को खत्म करने के लिए ये तीनों कानून लाए जा रहे हैं। आप के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा, हमारी पार्टी बिल के खिलाफ वोट करेगी, जबकि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर बोले, तीनों विधेयक क्रांतिकारी साबित होंगे। पदमश्री भारत भूषण त्यागी कहते हैं, मुखालफत भम्र का फेर है। उन्होंने उम्मीद जताई, सरकार और काश्तकारों के प्रतिनिधि एक टेबल पर बैठेंगे तो काश्तकारों के गुस्से का सकारात्मक पटाक्षेप हो जाएगा।

                                                                                                          -श्याम सुंदर भाटिया

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।