पीएम मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में लिया बड़ा फैसला
नई दिल्ली (एजेंसी)। Caste Census: बिहार विधानसभा चुनावों से पहले सरकार ने राजनीतिक महत्व का एक बड़ा कदम उठाते हुए देश में आम जनगणना में जातियों की गणना कराने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को यहां हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया। Caste Based Census
रेल, सूचना प्रसारण, इलैक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।’’ जनगणना इस साल सितंबर से शुरू की जा सकती है। इसे पूरा होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरूआत में आएंगे। हालांकि जनगणना कब से शुरू होगी, इसके बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है। बता दें कि वर्ष 2021 में कोविड महामारी के चलते जनगणना को टाल दिया गया था। आमतौर पर ये प्रत्येक 10 साल में होती है।
वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने आज तक जाति जनगणना का विरोध किया है। आजादी के बाद की सभी जनगणनाओं में जातियों की गणना नहीं की गई। वर्ष 2010 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा। तत्पश्चात एक मंत्रिमण्डल समूह का भी गठन किया गया था, जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति आधारित जनगणना की संस्तुति की थी। इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना के बजाय, एक सर्वे कराना ही उचित समझा जिसे एसईसीसी के नाम से जाना जाता है। इस सब के बावजूद कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दलों ने जाति जनगणना के विषय को केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया। Caste Based Census
सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा कि जनगणना का विषय संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 पर अंकित है और यह केंद्र का विषय है। हालांकि, कई राज्यों ने सर्वे के माध्यम से जातियों की जनगणना की है। जहां कुछ राज्यों में यह कार्य सूचारू रूप से संपन्न हुआ है, वहीं कुछ अन्य राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से और गैरपारदर्शी ढंग से सर्वे किया है। इस प्रकार के सर्वे से समाज में भ्रांति फैली है। इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा सामाजिक ताना बाना राजनीति के दबाव में न आए, जातियों की गणना एक सर्वे के स्थान पर मूल जनगणना में ही सम्मिलित होनी चाहिए।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि समाज आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश की भी प्रगति निर्बाध होती रहेगी। उल्लेखनीय है कि सरकार के इस फैसले का बिहार विधानसभा के सितंबर अक्टूबर में होने वाले चुनाव की दृष्टि से देखा जा रहा है जहां विपक्षी इंडी गठबंधन द्वारा उठाई गई जातीय जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ रही है। केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार के इस फैसले को बिहार की राजनीति में उलटफेर करने वाला निर्णय माना जा रहा है।
किस पार्टी का क्या रुख रहा | Caste Based Census
विपक्ष
कांग्रेस सहित बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्टÑीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, एनसीपी शरद पवार देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं। हालांकि तृणमूल का रुख अभी साफ नहीं है। राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका दौरे पर भी जातिगत जनगणना को सही बताया था।
सत्ता पक्ष
पहले भाजपा जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी और विपक्ष पर जातिगत जनगणना के जरिए देश को बांटने की कोशिश का आरोप लगा रही थी। हालांकि बिहार में भाजपा ने ही जातिगत जनगणना का सपोर्ट किया था। बिहार ने अक्टूबर 2023 में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए थे। जो ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य है।
किसने क्या कहा?
- जाति जनगणना का फैसला दर्शाता है कि सरकार देश और समाज के विकास के लिए प्रतिबद्ध है: केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय
- यह फैसला हमारी जीत है। हमारी बात सरकार को माननी पड़ी : तेजस्वी यादव
- यह कांग्रेस की जीत है। आखिरकार मोदी सरकार को जाति जनगणना करानी पड़ रही है: उदित राज
कानून में करना होगा संशोधन
जनगणना एक्ट 1948 में एससी-एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6% और एसटी 8.6% थी।
अंग्रेजों के जमाने में होती थी जातिगत जनगणना
- 1881 में देश में पहली बार अंग्रेज शासकों ने जनगणना के साथ जातिगत जनगणना करवाई थी।
- 1931 तक चलता रहा ये सिलसिला
- वर्ष 1941 में जातिगत जनगणना तो हुई लेकिन आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए।
- संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता के बाद जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बी.आर. अंबेडकर और मौलाना आजाद जैसे नेताओं वाली देश की पहली कैबिनेट ने समाज में विभाजनकारी असर की आशंका के चलते जातिगत जनगणना न करवाने का निर्णय लिया।
- स्वतंत्रता के पश्चात 1951 में पहली जनगणना हुई लेकिन उसमें सिर्फ एससी-एसटी की गणना हुई। ये भी इसलिए क्योंकि संविधान में आरक्षण की बाध्यता थी। Caste Based Census
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